जीवन में खेलों का महत्व निबंध: कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। यदि मनुष्य अपना सम्पूर्ण विकास करना चाहता है तो उसके शरीर का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। शरीर की स्फूर्ति ही मस्तिष्क की स्फूर्ति होती है।
जीवन में खेलों का महत्व निबंध

जिस व्यक्ति के शरीर की रक्त-शिराएँ वेगवती होती हैं, उस व्यक्ति का मस्तिष्क भी अधिक सक्रिय रहता है। स्वस्थ व्यक्ति दीर्घजीवी भी होता है। अतः यदि हम चाहते हैं कि हम अपने जीवन का पूर्ण उपयोग करें और निरन्तर योग्यता प्राप्त करें तो हमें स्वस्थ रहना चाहिए। शरीर को स्वस्थ बनाने में खेलों का विशेष योगदान है। खेल स्वास्थ्य का सर्वोत्तम साधन हैं। उत्तम स्वास्थ्य जीवन की सफलता की कुंजी है।
मन और मस्तिष्क से खेल का सम्बन्ध
खेल का सम्बन्ध मनुष्य के मन और मस्तिष्क से होता है। खिलाड़ी अपनी रुचि के अनुसार ही खेल चुनता है। रुचि तब तृप्त होती है, जब रुचि के अनुकूल मनुष्य को कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। जैसे-जैसे मनुष्य को आत्म-तुष्टि प्राप्त होती है, वैसे-वैसे उसका विकास होता जाता है।
दिन भर मानसिक श्रम के बाद खेलना मनुष्य के लिए आवश्यक है। केवल एक ही प्रकार का कार्य करते रहने से और केवल मानसिक श्रम करते रहने से मस्तिष्क थक जाता है। शरीर भी अपने में थकान और उदासीनता का अनुभव करता है।
यदि व्यक्ति खेल के मैदान में नहीं उतरता है तो भोजन के बाद वह निश्चय ही निद्रा में निमग्न हो जायेगा। मानसिक कार्य करने की उसकी शक्ति समाप्त हो जायेगी। प्रातःकाल जब वह सोकर उठेगा तो नई ताजगी और उत्साह का अभाव ही पायेगा। वास्तविकता तो यह है कि खेल में जिसकी रुचि नहीं है, उस व्यक्ति का जीवन उदासीन और निराशामय रहता है।
इसके विपरीत जिस व्यक्ति की खेल में रुचि है, वह सदैव प्रसन्न रहता है और अन्त में विजयी होता है। खिलाड़ी व्यक्ति पराजय से कभी विचलित नहीं होता है। वह जीवन में आने वाले संघर्षो तथा उतार-चढ़ाव से त्रस्त न होकर उनका डटकर सामना करता है।
खेल का महत्व
खेल एक ओर मनोरंजन का अच्छा साधन हैं तो दूसरी ओर समय के सदुपयोग का मनोरंजन का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। मनोरंजन से मनुष्य की थकावट और उदासीनता दूर होती है। इसलिए मनुष्य मनोविनोद को जीवन में अपनाता है।
मैदान में खिलाड़ी खेलता है। वह खेलते समय दिन भर की थकान, घटनाएँ इत्यादि को भूल जाता है। खेल के मैदान में उसका मन निर्मल हो जाता है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों की खेल में रुचि नहीं है, वे अपना अमूल्य समय व्यर्थ में नष्ट करते हैं। खेल के मैदान में मनुष्य अपने समय का सदुपयोग करते हैं।
व्यक्ति में खेल के मैदान में सहयोग और मित्रता की सामाजिक भावना का उदय होता है, जिसकी जीवन में पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है और जिससे जीवन सजता, सँवरता और निखरता है। इसे ही ‘खिलाड़ी भावना’ कहा गया है। खेल के मैदान में व्यक्ति एक-दूसरे के शत्रु रहकर भी मित्रता का व्यवहार करते हैं।
आपस में उनमें बहुत प्रेम रहता है। उनमें सहयोग और सहानुभूति की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। खेलने से अनुशासन का गुण विकसित होता है। खेल द्वारा जीवन में संघर्ष करने की भावना पैदा होती है, जिसे हम ‘खिलाड़ी की प्रवृत्ति’ कहते हैं। इस प्रकार खेलों से अनुशासन, एकता, साहस तथा धैर्य की शिक्षा मिलती है।
खिलाड़ी के यह गुण ही उसके भावी जीवन का निर्माण करते हैं। व्यावहारिक जीवन में भी खेल का बहुत महत्व है। विद्यार्थी जीवन में खेल के कारण विद्यार्थी लोकप्रिय होता है, वह सबका समान रूप से स्नेहभाजन होता है।
शिक्षा पूर्ण कर लेने के पश्चात् जब वह जीवन क्षेत्र में प्रवेश करता है और किसी पद का प्रत्याशी बनता है, तब खेल उसके लिए निर्वाचन में सहायक सिद्ध होता है। खिलाड़ी प्रत्याशी के रूप में जहाँ भी जाते हैं, सफलता प्राप्त करते हैं। नौकरियों में उनको प्राथमिकता दी जाती है। सरकार अब खिलाड़ियों को विशेष सुविधाएँ भी देती है।
उपसंहार
हम देखते हैं कि जीवन में खेल का बहुत महत्व है। दुर्भाग्य यह है कि खेल और शिक्षा के सम्बन्ध में एक भ्रम हमेशा रहा है कि जो छात्र खिलाड़ी होता है, वह बुद्धिमान नहीं हो सकता; जो बुद्धिमान है, वह खिलाड़ी नहीं हो सकता।
प्रायः खेल और पढ़ाई को एक-दूसरे का विरोधी माना गया है। लेकिन यह बात सत्य नहीं है। खेल और पढ़ाई का उचित समन्वय करके व्यक्ति अपना शारीरिक एवं मानसिक विकास करके जीवन में आगे बढ़ सकता है। विश्व की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन हतोत्साहित करने वाला है।
इसका कारण यह है कि हमारे यहाँ आर्थिक संसाधनों की कमी है। इसके साथ ही साथ प्रतिभाओं का चयन करने में भी हम असमर्थ हैं। आज आवश्यकता है कि पंजाब की तरह भारत के सभी राज्यों में खेल-कूद अनिवार्य घोषित कर दिया जाय और केवल धन के कारण प्रतिभाओं का सर्वनाश रोका जाय।
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