ज्वार भाटा किसे कहते है? ज्वार भाटा कितने प्रकार के होते हैं?

ज्वार भाटा किसे कहते है:- समुद्र का जल नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है तथा दो बार नीचे उतरता है। ऐसा क्यों होता है? आप जानते हैं कि ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु में आकर्षण बल होता है। सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा आदि आपसी आकर्षण के कारण ही ब्रह्माण्ड में (समान स्थिति) में टिके हैं। सूर्य का आकर्षण बल, चन्द्रमा की अपेक्षा अधिक है परन्तु पृथ्वी के अत्यधिक निकट होने के कारण चन्द्रमा के आकर्षण बल का प्रभाव पृथ्वी की सतह पर सूर्य की अपेक्षा अधिक होता है। सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ‘ज्वार’ तथा सागरीय जल के नीचे गिरकर सागर की ओर पीछे लौटने को ‘भाटा’ कहते हैं।

ज्वार भाटा किसे कहते है

ज्वार भाटा किसे कहते है

ज्वार भाटा के प्रकार

  1. दीर्घ ज्वार या बृहद ज्वार (Spring Tides)
  2. लघु ज्वार

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दीर्घ ज्वार (Spring Tides)

परिक्रमा करते हुए जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा तीनों एक सीध में आ जाते हैं तो सूर्य और चन्द्रमा की सम्मिलित आकर्षण शक्ति का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। अतः उस समय सबसे अधिक ऊँचे ज्वार आते हैं। जिन्हें दीर्घ ज्वार या बृहद ज्वार (Spring Tides) कहते हैं। यह स्थिति महीने में दो बार पूर्णमासी तथा अमावस्या को होती है।

लघु ज्वार

इसके विपरीत जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं, तो सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। जिसके कारण निम्न या लघु ज्वार आता है। यह स्थिति प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की सप्तमी-अष्टमी को होती है।

ज्वार-भाटा से लाभ

इससे मनुष्यों को व्यापार, मछली पकड़ने तथा नौका संचालन में सहायता मिलती है। ज्वार के समय तट के पास पानी की गहराई बढ़ जाती है। फलस्वरूप जहाज बन्दरगाहों (पत्नी) तक सुरक्षित और आसानी से पहुँच जाते हैं माल उतारने व चढ़ाने के बाद जहाज भाटे के साथ गहरे सागर में वापस लौट जाते हैं। ज्वार से उठी जल की दीवार नदी के मुहाने से नदी में प्रवेश करती है, जिसे ज्वारीय बोर कहते हैं। इससे जलयान ज्वार नद मुख पत्तनों तक जाते हैं। भारत के कुछ बन्दरगाह (पत्तन) तो ज्वार-भाटा पर ही निर्भर हैं। गुजरात का कांडला तथा पश्चिम बंगाल का कोलकाता ऐसे ही बन्दरगाह हैं। इन्हें ज्वार नदमुख पत्तन कहा जाता है।

ज्वार-भाटा समुद्र तट पर बसे नगरों का कूड़ा-कचरा या नदियों द्वारा बिछाई गई मिटटी को बहा ले जाते हैं। इनके द्वारा समुद्र में पाई जाने वाली सीप, कौडियाँ, घोंघे, मछलियाँ आदि तट तक आ जाते हैं. जिससे इन्हें पकड़ने में आसानी होती है। ज्वार-भाटा से जल विद्युत का उत्पादन भी हो सकता है। फ्रांस, इटली, रूस, कनाडा तथा जापान में ज्वारीय विद्युत का प्रयोग किया जाता है।

महासागरीय जलधाराएँ (Oceanic current)

महासागरीय जल की गतियों में धाराएँ सबसे अधिक शक्तिशाली होती हैं। इनके द्वारा महासागरों का जल हजारों किलोमीटर तक बहा लिया जाता है। महासागरों में एक निश्चित दिशा में नदी की तरह बहते जल को महासागरीय धारा कहते हैं। ये धाराएँ कम चौड़ी और तेज गति वाली होती हैं। इनकी गति दो से दस किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है, लेकिन कभी-कभी महासागरों का जल एक चौड़े और धीमी गति से बहने वाले प्रवाह (Drift) का रूप ले लेता है। इनकी गति एक से तीन किलोमीटर प्रति घंटे होती है।

महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति पृथ्वी के घूर्णन, जल के तापमान और खारेपन में भिन्नता के कारण होती है। महासागरीय जल के तापमान के आधार पर सागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं

  1. गर्म (उष्ण) जलधारा
  2. ठण्डी जलधारा

जो जलधाराएँ भूमध्य रेखा (गर्म क्षेत्र) से ध्रुवों (ठण्डे क्षेत्र) की ओर बहती हैं, उनका जल गर्म होता है। अतः उन्हें गर्म जलधारा कहते हैं। इसी प्रकार ऐसी जलधाराएँ जो ध्रुवों (ठण्डे क्षेत्र) की ओर से भूमध्य रेखा (गर्म क्षेत्र) की ओर बहती है, उनके जल का तापमान कम होता है, अतः उन्हें ठण्डी जलधारा कहते हैं। गर्म जलधारा लाल रंग से तथा ठण्डी जलधारा नीले रंग से दिखाई गयी है।

गल्फ स्ट्रीम जलधारा

यह अटलांटिक महासागर की एक प्रमुख गर्म जलधारा है। गल्फ स्ट्रीम की धारा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के मेक्सिको की खाड़ी से उत्पन्न होकर उत्तर की ओर प्रवाहित होती है। आगे चलकर पछुवा पवनों के प्रभाव में आकर यह अचानक पूर्व की ओर मुड़ जाती है और यूरोप महाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचती है।

इस गर्म जलधारा के प्रभाव से यूरोप का उत्तर पश्चिमी तट सर्दियों में भी जमने नहीं पाता, जबकि उत्तरी अमेरिका का उत्तर-पूर्वी तट बर्फ से जम जाता है। इसी कारण यूरोप महाद्वीप के सभी बड़े बन्दरगाह वर्ष भर आवागमन के लिए खुले रहते हैं।

लेबेडोर की धारा

यह एक ठण्डी जलधारा है। यह आर्कटिक सागर से प्रारम्भ होकर न्यूफाउण्डलैण्ड के पास गल्फस्ट्रीम जलधारा से मिलती है। यह कनाडा के लेब्रेडोर पठार के पूर्वी तट के किनारे से बहती है। अतः इसे लेब्रेडोर जलधारा के नाम से जाना जाता है। लेब्रेडोर की ठण्डी धारा के साथ बर्फ के बड़े-बड़े खण्ड (आइसबर्ग) न्यूफाउण्डलैण्ड तक आते हैं। सोचिए, आइसबर्ग की उत्पत्ति कैसे होती है ?

क्यूरोशियो जलधारा

मानचित्र में देखकर बताइए कि प्रशान्त महासागर में उत्तरी और दक्षिणी विषुवतीय धाराएँ किस दिशा में बहती हैं जब उत्तरी विषुवतीय जलधारा फिलीपीन्स के पास मुड़कर उत्तर की ओर बढ़ती है तो क्यूरोशियो जलधारा की उत्पत्ति होती है। यह एक गर्म जलधारा है। जापान तट के पास यह जलधारा पछुवा पवन के प्रभाव में आकर पूर्व की ओर मुड़ जाती है। यह जलधारा अटलांटिक महासागर की गल्फस्ट्रीम जलधारा के समान है। यह एशिया महाद्वीप के पूर्वी तट से चलकर उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचती है। यहाँ इसे कैलीफोर्निया की जलधारा के नाम से जाना जाता है।

क्यूराइल की जलधारा

यह जलधारा आर्कटिक महासागर का ठण्डा जल, प्रशान्त महासागर में लाती है। यह एक ठण्डी जलधारा है। इसकी तुलना अटलांटिक महासागर की लेब्रेडोर जलधारा से की जा सकती है। जब यह क्यूरोशियो की गर्म जलधारा से मिलती है तो वहाँ पर कोहरा पड़ता है जो जलयानों के लिए हानिकारक होता है। गर्म एवं ठण्डी जलधाराओं के मिलने से यहाँ समुद्री घासें मिलती है, जिसे मछलियाँ खाती हैं। इसी कारण से यह क्षेत्र मत्स्य उद्योग के लिए विश्वविख्यात है।

जलधाराओं का तटीय क्षेत्र पर प्रभाव

समुद्री जलधाराओं का प्रभाव सबसे अधिक तटीय भागों पर होता है। ये जिन तटीय भागों से होकर बहती हैं, अपने स्वभाव (गर्म या ठण्डी) के अनुसार वहाँ के मौसम और जलवायु को प्रभावित करती हैं। यह प्रभाव लाभप्रद तथा हानिप्रद दोनों प्रकार का हो सकता है। जैसे-

  • गर्म जलधाराओं के ऊपर चलने वाली हवाएँ नमी प्राप्त करके तटीय भागों में वर्षा करती हैं। इसके विपरीत ठण्डी जलधाराएँ वर्षा रोकती हैं, जिससे वहाँ मरुस्थलीय दशाएँ पायी जाती हैं।
  • जैसे यूरोप महाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी तट के बन्दरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं। गर्म जलधाराओं के प्रभाव के कारण ठण्डे स्थानों के बन्दरगाह सालभर खुले रहते हैं।
  • गर्म तथा ठुण्डी जलधाराओं के मिलने के स्थान पर कोहरा पड़ता है जिससे जलयानों को क्षति पहुँचती है। “लेकिन मछलियों के लिए जलधाराओं का यह मिलन आदर्श स्थिति पैदा करता है क्योंकि यहाँ प्लैंक्टन नामक घास उत्पन्न होती है जो मछलियों का भोजन है। ऐसे भागों में संसार के प्रसिद्ध मत्स्य केन्द्र पाए जाते हैं।
  • ठण्डी जलधाराओं में बड़े-बड़े हिमखण्ड (Ice-berg) बहते रहते हैं, जिनसे टकराने पर जलयान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

सुनामी (Tsunami)

महासागरीय जल की एक अन्य गति सुनामी है। सुनामी जापानी शब्द है, जिसका अर्थ होता है विनाशकारी लहरें । समुद्र की तलहटी में भूकम्प आने से सुनामी लहरें उत्पन्न होती हैं। इनका तटीय भागों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। आपने सुना ही होगा कि भारत के पूर्वी तट पर 26 दिसम्बर 2004 में आई सुनामी लहरों से अत्यधिक क्षति हुई थी।

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