कालिदास का जीवन परिचय: महाकवि कालिदास का नाम संस्कृत महाकवियों और श्रेष्ठ नाटककारों में लिया जाता है। आपका ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक विश्व में विख्यात है। आप महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। कालिदास बचपन में बड़े मूर्ख थे। उनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर था।
वे पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे। कालिदास इतने बड़े कवि और नाटककार कैसे बन गये? इसकी एक बड़ी विचित्र कथा है। कालिदास के जीवनकाल में शारदानन्द नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी पुत्री विद्योत्तमा थी। वह बड़ी सुन्दर और परम विदुषी थी। इसकी सुन्दरता और ज्ञान की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई थी।
कालिदास का जीवन परिचय

विद्योत्तमा
विद्योत्तमा की प्रतिज्ञा थी कि वह उसी व्यक्ति के साथ विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा। बड़े-बड़े विद्वान् शास्त्रार्थ करने आये किन्तु विद्योत्तमा को कोई हरा न सका। पंडित लोग उससे जलने लगे। उन्होंने किसी महामूर्ख के साथ उसका विवाह करा देने का निश्चय कर लिया। वे महामूर्ख की खोज में निकल पड़े।
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मूर्ख की खोज
खोज करते-करते उन्होंने एक मूर्ख व्यक्ति को देखा। वह मूर्ख जिस डाल पर बैठा था उसी को काट रहा था। उन्होंने उसे बुलाया और कहा कि हम तुम्हारा विवाह एक सुन्दर राजकुमारी के साथ करा देंगे किन्तु तुम कुछ भी मत बोलना। मूर्ख राजी हो गया।
शास्त्रार्थ
पण्डितों ने उसे बहुत कीमती वस्त्र पहनाये और विद्योत्तमा के पास शास्त्रार्थ के लिए ले गये। पंडितों ने विद्योत्तमा से कहा, “यह हमारे गुरुजी हैं। ये से बड़े विद्वान हैं। यह आपके साथ शास्त्रार्थ करेंगे। इन्होंने आजकल मौन धारण कर लिया है। ये जो कुछ भी कहेंगे इशारे से कहेंगे।
हम उसका मतलब आपको समझायेंगे।” इशारों से शास्त्रार्थ आरम्भ हुआ। विद्योत्तमा ने एक उँगली उठाई। मूर्ख ने समझा कि यह कहती है कि मैं तेरी एक आँख फोड़ दूँगी, मूर्ख ने दो उँगली उठाकर बताया कि मैं तेरी दोनों आँखें फोड़ दूँगा।
विद्योत्तमा का अभिप्रायः था कि ईश्वर एक है। पण्डितों ने दो उँगलियों का मतलब यह बताया कि गुरुजी का मतलब है कि सृष्टि में ईश्वर और जीव दो हैं। फिर विद्योत्तमा ने यह बताने के लिए कि पाँच तत्वों से जीव बनता है। पाँचों उँगली फैलाकर दिखायीं।
मूर्ख ने समझा कि यह थप्पड़ मारने को कहती है। मूर्ख ने घूँसा दिखाया। पण्डितों ने समझाया कि पाँचों तत्वों के मिलने से सृष्टि बनती है। अलग-अलग रहने से नहीं।
विवाह
विद्योत्तमा ने अपनी हार स्वीकार कर ली। दोनों का विवाह हो गया। विवाह की रात मूर्ख ऊँट का बलबलाना सुनकर बोल उठा “उद्र उट्र” यह सुनकर उसने समझ लिया कि पण्डितों ने जलकर मेरा विवाह एक महामूर्ख से करा दिया है। उसने उस मूर्ख को राजमहल से निकाल दिया।
उपसंहार
मूर्ख ने अपना बड़ा अपमान समझा और काली के मन्दिर में तपस्या करने लगा। काली के मन्दिर में इस मूर्ख ने आवाज सुनी, “तू कठिन परिश्रम कर विद्याध्ययन कर” काली की आज्ञा से उसने कठिन परिश्रम करना आरम्भ कर दिया और अपना नाम कालिदास रखा।
कालिदास ने बड़े परिश्रम और बड़ी लगन से विद्या का अध्ययन किया। कुछ ही वर्षों में ये संस्कृत के बड़े विद्वान हो गये। आपने कुमार सम्भव, मेघदूत और रघुवंश नाम के तीन काव्य और अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविका मित्र तथा विक्रमोर्वशीयम् तीन नाटक लिखे। कवि लोग कालिदास को संस्कृत का सर्वश्रेष्ठ कवि मानते हैं।
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