Telegram Group (100K+) Join Now

कवि देव का जीवन परिचय, Dev Biography in Hindi

कवि देव का जीवन परिचय:- रीतिकाल के प्रमुख कवि देव का पूरा नाम देवदत्त था। ये इटावा के रहने वाले थे। इनका जन्म संवत् 1730 (सन् 1673) माना जाता है। इनकी रचनाओं के अध्ययन से प्रतीत होता है कि ये किसी एक आश्रयदाता के पास नहीं रहे। इनकी चित्तवृत्ति एक स्थान पर नहीं लगी।

अधिक घूमने के कारण ही में सर्वतोमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हो गए थे। इनके प्रमुख आश्रयदाता राजा भोगीलाल थे। औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में भी देव कुछ समय तक रहे थे। इन्होंने राज दरबारों का आडंबरपूर्ण एवं चाटुकारिता से भरा जीवन निकट से देखा था। बाद में उन्हें इस जीवन से वितृष्णा हो गई। ये संवत् 1824 (सन् 1767 ई.) तक जीवित रहे।

कवि देव का जीवन परिचय

कवि देव का जीवन परिचय

Dev Biography in Hindi

मुख्य बिंदुजानकारी
पूरा नामदेवदत्त
जन्मसन् 1730
जन्म स्थानउत्तर प्रदेश के इटावा जिले में
मृत्युसन् 1824
रचनाएँ‘भावविलास’, ‘अष्टग्राम’, ‘भवानीविलास’, ‘सुजान-विनोद’,
‘प्रेमतरंग’, ‘रागरत्नाकर’, ‘प्रेमचंद्रिका’, ‘रसानंद हरी’ तथा ‘प्रेमदीपिका’

यह भी पढ़े – मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय? मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कहा हुआ था?

कवि देव की रचनाएँ

वैसे तो कवि देव के ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक बताई जाती है परंतु अभी तक इनके 27 ग्रंथों का पता लगा है। रीतिकाल के कवियों में इतनी अधिक रचनाएँ किसी दूसरे कवि की नहीं मिलतीं। इनके प्राप्य ग्रंथों में ‘भावविलास’, ‘अष्टग्राम’, ‘भवानीविलास’, ‘सुजान-विनोद’, ‘प्रेमतरंग’, ‘रागरत्नाकर’, ‘प्रेमचंद्रिका’, ‘रसानंद हरी’ तथा ‘प्रेमदीपिका’ आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। इनकी रचनाओं में अनेकानेक विषय हैं। यौवन, श्रृंगार आदि से लेकर इनका झुकाव ज्ञान और वेदांत की ओर भी रहा।

विशेषताएँ

देव हमारे सामने कवि और आचार्य दोनों रूपों में आते हैं। इन्होंने रस, अलंकार शब्द-शक्ति और काव्यांगों का 2 खूब वर्णन किया। देव में कवित्व शक्ति और मौलिकता खूब थी। इनका सर्वोपरि गुण इनकी रससिक्तता थी। इनकी रचना में रसहीन पद्य मिलना कठिन है। इनकी रुचि श्रृंगार रस की और अधिक थी। देव ने रसों के संबंध में अपनी प्रतिभा खूब दिखाई है। कहीं-कहीं तो देव की कल्पना बहुत ही सूक्ष्म और गूढ़ हो गई है। देव बहुत और विविध विषयों के पंडित थे। अक्षर मैत्री पर विशेष रूप से ध्यान रखते थे।

भाषा

देव की भाषा मंजी हुई और कोमल ब्रजभाषा है। यह प्रवाहमयी है। इस भाषा में अनुप्रासों की अनुपम छटा और प्रसाद गुण गांभीर्य है। इन्होंने जहाँ-वहाँ मुहावरों का भी प्रयोग किया है। इनका एक उदाहरण देखिए-

साँसन ही मैं समीर गयो अरु,
आंसुन ही सब नीर गयो ढरि;
तेज गयो गुन लै अपनी अरु,
भूमि गई तनु को तनुता करि।
‘देव’ जिय मिलिबेई का आस कै,
आसहु पास अकास रह्यो भरि;
जा दिन तें मुख फेरि हरै हँसि,
हेरि हियो जू जियो हरिजू हरि॥

बहुत से विद्वान इन्हें आचार्य कोटि में रखते हैं; परंतु इन्हें कवि कहना ही अधिक उचित होगा। देव अपनी अत्यधिक विद्वत्ता, यात्रा और अनुभवों के कारण उस काल के काव्य-संबंधी प्रत्येक क्षेत्र में उतरे। यह निश्चय ही कहा जा सकता है कि देव का स्थान हिंदी साहित्य में पर्याप्त ऊँचा है। यदि बिहारी सूक्ष्मता और अर्ध-गौरव के धनी थे, तो देव विषयों और शैलियों की विविधता के वास्तव में ये रीतिकाल के प्रगल्भ और प्रतिभा संपन्न कवि थे।

यह भी पढ़े – केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय? केदारनाथ अग्रवाल का जन्म कहा हुआ था?

Updated: March 14, 2023 — 1:21 pm

Subscribe with Google News:

Telegram Group (100K+) Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *