केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय:- हिन्दी काव्य की प्रगतिवादी धारा के मूर्धन्य कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, सन् 1919 ई० में कमासिन गाँव, बाँदा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इन्होंने स्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से तथा एल-एल०बी० की परीक्षा डी० ए० वी० कॉलेज, कानपुर से उत्तीर्ण की।
केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय

Kedarnath Agarwal Biography in Hindi
मुख्य बिंदु | जानकारी |
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नाम | केदारनाथ अग्रवाल |
जन्म | 1 अप्रैल, 1919 ई० |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन ग्राम |
मृत्यु | 22 जून, 2000 ई० |
कार्यक्षेत्र | वकील, कवि |
सम्मान | सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, उ० प्र० संस्थान द्वारा लखनऊ द्वारा विशिष्ट सम्मान, साहित्य अकादमी सम्मान, मध्यप्रदेश साहित्य द्वारा तुलसी सम्मान और मैथिलीशरण गुप्त सम्मान |
रचनाएँ | ‘युग की गंगा’, ‘नींद के बादल’, ‘लोक और आलोक’, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’, ‘पंख और पतवार’, ‘हे मेरी तुम’, ‘मार प्यार की थापें, ‘अपूर्वा’, ‘बोले बोल अबोल’, ‘अनहारी-हरियाली’, ‘खुली आँखें खुले खुले डैने’ तथा ‘पुष्प-दीप’ आदि। |
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केदारनाथ अग्रवाल प्रमुख सम्मान
हिन्दी-साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा इन्हें सन् 1989 ई० में साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि तथा बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी द्वारा सन् 1994 ई० में डी०लिट्० की उपाधि प्रदान की गयी। केदारनाथजी के साहित्यिक अवदान का सम्मान करते हुए इन्हें समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया, जिनमें सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, उ०प्र० हिन्दी संस्थान लखनऊ का विशिष्ट सम्मान, साहित्य अकादमी सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् भोपाल का तुलसी एवं मैथिलीशरण गुप्त सम्मान प्रमुख हैं।
साहित्य रचना
बहुमुखी प्रतिभा के धनी केदारनाथजी ने जिन विभिन्न विधाओं में साहित्य रचना की, उनमें निबन्ध, उपन्यास, यात्रा-वृत्तान्त, पत्र-साहित्य और कविताएँ मुख्य रूप से सम्मिलित हैं। इन्होंने कुल 24 काव्य-संग्रहों, 1 अनुवाद, 3 निबन्ध संग्रहों, 2 यात्रा – वृत्तान्तों तथा 1 पत्र – साहित्य की रचना की। इनके इस रचना-संसार का विस्तार सन् 1947 ई० से लेकर 1996 ई० तक है। इनका प्रथम काव्य-संग्रह ‘युग की गंगा’ सन् 1947 ई० में प्रकाशित हुआ। इनका निधन 22 जून, सन् 2000 ई० को हुआ।
काव्य-सौन्दर्य
हिन्दी-काव्य में जनवादी चेतना के सजग प्रहरी केदारजी की कविता की प्रमुख चिन्ता मनुष्य और जीवन है। इनकी कविताएँ व्यापक जीवन-सन्दर्भों के साथ ही मनुष्य की सौन्दर्य-चेतना से उत्प्रेरित करती हैं। ये प्रगतिवादी हिन्दीकविता में स्वकीया प्रेम के विरले कवि हैं। ये वस्तुतः घरती और धूप के कवि के साथ-साथ लोक-जीवन, प्रकृति और मानव की संघर्ष-चेतना के चितेरे हैं।
ये अपने रचनात्मक विस्तार में यत्र-तत्र प्रगतिवाद के प्रचलित मुहावरों का निषेध करते हुए नये ढंग को प्रगतिशीलता गढ़ते दृष्टिगत होते हैं, जिसकी आस्था मनुष्य और जीवन में है। जनता के श्रम, सौन्दर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन करनेवाले केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी की प्रगतिवादी कविता के सर्वथा विचित्र शिल्पकार हैं।
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