केशवराव हेडगेवार का जीवन परिचय, डा० हेडगेवार का जन्म नागपुर में वि०सं०. 1846 में हुआ था। उनके पिता बलीराम पंत महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थे, वे धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके तीन पुत्र थे- महादेव शास्त्री, सीताराम और केशवराव केशवराव अपने भाइयों में सबसे छोटी वय के थे।
केशवराव हेडगेवार का जीवन परिचय

Keshav Baliram Hedgewar Ka Jeevan Parichay
पूरा नाम | केशव बलिराम हेडगेवार |
जन्म | वि०सं०. 1846 |
जन्म स्थान | नागपुर |
पिता का नाम | बलीराम पंत |
मृत्यु | 21 जून, 1940 |
क्रान्तिकारियों के इतिहास में कई ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी मिलते हैं, जो पहले तो क्रान्तिकारी थे, किन्तु बाद में हिन्दू संगठनवादी बन गये। उन्होंने हिन्दू संगठनवादी बनकर अपना अंतिम जीवन हिन्दुओं के संगठन में ही व्यतीत किया।
इस कोटि के क्रान्तिकारियों में विनायक दामोदर सावरकर, लाला लाजपतराय और भाई परमानन्द का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जा सकता है। डा० केशवराव भी उसी क्रम में आते हैं। वे पहले महान् क्रान्तिकारी थे, किन्तु बाद में हिन्दू संगठनवादी बन गये।
उन्होंने हिन्दुओं के संगठन के लिए ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। उन्होंने क्रांतिकारी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के रूप में जो सेवाएं की हैं, उनके कारण उनका जीवन महान् तो बन गया है, वे अमर भी हो गये हैं।
डा० केशवराव को प्रायः लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के रूप में ही जानते हैं। किन्तु वास्तविक बात तो यह है कि वे अपने जीवन के प्रारंभिक और मध्यकाल में महान् क्रान्तिकारी थे। उनका सान्निध्य अरविन्द घोष, भाई परमानन्द, लोकनाथ चक्रवर्ती, सुखदेव और राजगुरु आदि महान् क्रान्तिकारियों से था।
उन्होंने क्रान्तिकारी के रूप में बड़े-बड़े कष्ट भी सहन किये थे। उन कष्टों को सहन करने के पश्चात् ही उन्हें यह अनुभव प्राप्त हुआ था कि भारत की एकता और अखंडता के लिए हिन्दुओं का संगठन करना आवश्यक है। उन्होंने इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
कहना ही होगा कि 1947 ई० में जब भारत का विभाजन हुआ, तो उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने महत्त्वपूर्ण सेवाएं की थीं। उनकी सेवाओं से ही वे घने और काले बादल छंट गये थे, जो पाकिस्तान की ओर से उठ रहे थे।
12 वर्ष की अवस्था में ही केशवराव अपने माता-पिता के स्नेह से वंचित हो गये। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् उनका पालन-पोषण और उनकी देख-रेख उनके बड़े भाई महादेव शास्त्री के द्वारा हुई।
महादेव शास्त्री पंडिताई करते थे। उनकी आर्थिक अवस्था अच्छी नहीं थी। फलस्वरूप डा० हेडगेवार को बाल्यावस्था में अभावमय जीवन व्यतीत करना पड़ा था। किन्तु उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था। इसका कारण यह था कि उन्हें व्यायाम से अधिक प्रेम था। वे प्रतिदिन व्यायाम तो करते ही थे, सन्ध्या- प्रातः दौड़ भी लगाया करते थे।
देशभक्ति का अंकुर हेडगेवार के हृदय में बाल्यावस्था में फूट उठा था। वे बाल्यावस्था में ही अपने देश के महान पुरुषों का आदर करते थे और बड़े प्रेम से उनके चरित्र पढ़ा करते थे। ज्यों-ज्यों वय की सीढ़ियों पर चढ़ते गये, उनके मन का यह भाव भी प्रबल होता गया। वे महान पुरुषों के चरित्र केवल पढ़ते ही नहीं थे, उनके चरित्रों के सांचे में अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न भी किया करते थे।
हेडगेवार अपने देशप्रेम के कारण विद्यार्थी जीवन में कई बार संकट में पड़ गये। थे। जिन दिनों वे हाईस्कूल में पढ़ रहे थे, उन्होंने बन्देमातरम् आन्दोलन प्रारंभ किया था। प्रधानाचार्य बन्देमातरम् का विरोधी था। अतः उसने हेडगेवार को स्कूल से निकाल दिया।
उन्होंने यवतमाल में जाकर दूसरे स्कूल में अपना नाम लिखाया। किन्तु उनके नाम लिखाने के बाद ही वह स्कूल बन्द कर दिया गया। अन्त में उन्होंने पूना से हाईस्कूल की परीक्षा पास की।
1910 ई० में हेडगेवार कलकत्ता गये। वे कलकत्ता में मेडिकल कॉलेज में पढ़ने लगे। महाराष्ट्र लॉज में रहा करते थे। उन्हीं दिनों उनका परिचय क्रान्तिकारियों से हुआ। उन दिनों कलकत्ता में क्रान्तिकारियों की एक गुप्त समिति काम करती थी।
उस समिति का नाम अनुशीलन समिति था। क्रान्तिकारियों से परिचय होने पर हेडगेवार भी अनुशीलन समिति के सदस्य बन गये और गुप्त रूप से क्रान्तिकारी कार्य करने लगे। सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी नलिनी किशोर गुह ने अपने एक संस्मरण में हेडगेवार के सम्बन्ध में लिखा है- अनुशीलन समिति भारत में अंग्रेजी राज्य को उलट देना चाहती थी।
समिति के सदस्य भारत की स्वतंत्रता के कार्यों में सदा लगे रहते थे। 1908 ई० में समिति को गैरकानूनी ठहरा दिया गया। उसके पश्चात् समिति गुप्त रूप से कार्य करने लगी। समिति की ओर से मुझे एक कार्य सुपुर्द किया गया। उन दिनों मेडिकल कॉलेज में कुछ महाराष्ट्रीय और पंजाबी विद्यार्थी भी पढ़ते थे। मुझसे कहा गया कि मैं उनमें विप्लववाद का प्रचार करूं।
मैं गुप्त रूप से मेडिकल कालेज के पंजाबी और महाराष्ट्रीय छात्रों से मिलने जुलने लगा। बहूबाजार के महाराष्ट्र लॉज में कई मराठी विद्यार्थी रहते थे। मैंने उन विद्यार्थियों से सम्पर्क स्थापित किया। उन विद्यार्थियों में हेडगेवार ही मुझे ऐसे मिले, जिनके हृदय में देशभक्ति थी और जो देश की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान करने के लिए प्रस्तुत थे।
हेडगेवार महाराष्ट्र लॉज में बड़े उत्साह के साथ गणेश उत्सव का आयोजन किया करते थे। वे तिलक आदि नेताओं के भाषण बड़े प्रेम से पढ़ा करते थे। समय-समय पर भाषण भी दिया करते थे। उनके भाषण बड़े ओजस्वी और भावमय होते थे।
महाराष्ट्र लॉज में रहते हुए हेडगेवार कलकत्ता के बड़े-बड़े क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। नलिनीकुमार गुहा से उनकी घनिष्ठता थी। गुहा ने ही उनका बड़े-बड़े क्रान्तिकारी नेताओं से परिचय कराया था। गुहा के प्रयत्नों से ही वे अनुशीलन समिति के सदस्य बने थे।
अनुशीलन समिति का सदस्य बनने के पूर्व उनके देशप्रेम, उनकी कर्मठता और उनके साहस की भली प्रकार परीक्षा ली गई थी। सर्वप्रकार से खरा सिद्ध होने पर ही वे अनुशीलन समिति के सदस्य बनाये गये थे।
उन्हीं दिनों डा० हेडगेवार सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी अरविन्द घोष के सम्पर्क में आये। अरविन्द घोष मानकतल्ला बमकांड के मुकद्दमे से छूटकर आये थे, कॉलेज स्क्वायर में अपने एक मित्र के घर रहते थे। प्रथम भेंट में ही हेडगेवार अरविन्द घोष के प्रेमपात्र बन गये थे। वे उनका बड़ा आदर करते थे। इसका फल यह हुआ कि हेडगेवार बड़े विश्वासपात्र समझे जाने लगे। उन पर बड़े से बड़े कार्य का दायित्व छोड़ा जाने लगा।
डा० हेडगेवार जब तक कलकत्ता में रहे बराबर क्रान्तिकारी कार्यों में योग देते रहे। डाक्टर की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् वे नागपुर लौट गये। नागपुर में भी वे में उन्हीं कार्यों को करने लगे, जिन्हें वे कलकत्ता में किया करते थे।
हेडगेवार ने डाक्टरी की उपाधि अवश्य प्राप्त की थी, किन्तु उन्होंने डाक्टरी नहीं की। उन्होंने अविवाहित रहकर देश-सेवा का व्रत लिया। वे बड़ी निर्भीकता के साथ महाराष्ट्र में विप्लव के लिए आग जलाने लगे। फलतः सरकारी गुप्तचर उनके पीछे लग गये, उन पर कड़ी दृष्टि रखने लगे।
डा० हेडगेवार का नाम गुप्तचर विभाग की सूची में पहले से ही लिखा हुआ था। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने बन्देमातरम् आन्दोलन चलाया था। अतः उस समय भी उनका नाम विद्रोहियों में लिखा गया था। कलकत्ता के विद्यार्थी जीवन में तो उनका नाम बार बार विद्रोहियों की सूची में लिखा गया।
उनके नाम को कलकत्ता से कई बमकांडों से भी जोड़ा गया था। अतः जब वे डाक्टरी की उपाधि लेकर नागपुर आये, तो सरकारी गुप्तचर उनके पीछे लग गये। उन पर कड़ी दृष्टि रखी जाती थी। डॉ० हेडगेवार जहां भी जाते थे, गुप्तचर उनका पीछा करते थे। उनका घर या बाहर रहना कठिन हो गया था।
1920 और 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन की आंधी चली। यद्यपि आन्दोलन अहिंसात्मक था। डॉ० हेडगेवार के सिद्धान्तों के विरुद्ध था किन्तु स्वतंत्रता का आन्दोलन तो था ही। हेडगेवार अपने को रोक नहीं सके। वे आन्दोलन में सम्मिलित हो गये।
उन्होंने कई सभाओं में ऐसे भाषण दिये, जो बड़े उत्तेजनामय थे। फलतः वे बन्दी बनाये गये और उन पर मुकद्दमा चलाया गया। मुकद्दमे में उन्हें एक वर्ष का सपरिश्रम कारावास का दंड दिया गया।
कारागार से छूटने पर डॉ० हेडगेवार पुनः क्रान्तिकारी कार्यों में लग गये। 1930 ई० में जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण वे पुनः गिरफ्तार कर लिये गये और उन्हें फिर सजा दी गई। जेल ही में उन्होंने गढ़वाल दिवस मनाया था और भूख हड़ताल भी की थी।
डॉ० हेडगेवार ने 1915 से लेकर 1925 तक के सभी राष्ट्रीय आन्दोलनों में प्रकट और गुप्त रूप में भाग लिया। वे उन आन्दोलनों में भाग लेने के कारण इस परिणाम पर पहुंचे कि भारत को स्वतंत्रता शक्ति से ही प्राप्त हो सकती है। जब तक संगठन के द्वारा शक्ति प्राप्त नहीं की जायेगी, तब तक भारत स्वतंत्र नहीं हो सकता।
अतः उन्होंने शक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से 1925 ई० में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। वे संघ के द्वारा भारतीय जनता को बलवान बनाकर अंग्रेजी शासन को समाप्त करना चाहते थे। किन्तु उनका स्वप्न पूर्ण नहीं हो सका। 1940 में उनका स्वर्गवास हो गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ डॉ० हेडगेवार के प्रयत्नों का परिणाम है। उन्होंने अपनी साधना से एक ऐसी सुदृढ़ संस्था स्थापित की, जो अनुशासनप्रिय तो है ही, देशभक्ति की भावनाओं से पूर्ण भी है। कुछ लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर साम्प्रदायिकता का दोषारोपण करते हैं, किन्तु यह बिल्कुल निराधार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विशुद्ध राष्ट्रीय संस्था है। उसका सारा कार्यक्रम भारतीयता पर आधारित होता है। भारत की सीमा के भीतर जितने लोग निवास करते हैं, संघ उन्हें भारतीय मानता है और उनमें एकता स्थापित करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। वह विभाजन और पृथकता का विरोधी है, किन्तु यह उसकी राष्ट्रीयता का सबसे बड़ा गुण है, सबसे बड़ी विशेषता है।
सुप्रसिद्ध योगेशचन्द्र चटर्जी ने डा० हेडगेवार के सम्बन्ध में अपने संस्मरण में लिखा है- “यदि 1940 ई० में डा० हेडगेवार का स्वर्गवास न हो गया होता तो कदाचित् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक दूसरा ही चित्र देखने को मिलता। वर्धा से लौटते समय मैं डा० हेडगेवार से मिलने के लिए उनके निवास स्थान पर गया।
मेरे साथ सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी त्रिलोकनाथ चटर्जी भी थे। डा० हेडगेवार ने बंग-भंग आंदोलन के समय त्रैलोक्यनाथ को ही अधीनता में अनुशीलन समिति में कार्य किया था। वे उस समय कलकत्ता नेशनल कालेज के विद्यार्थी थे। डा० हेडगेवार ने मुझे बताया कि वे युवकों को बिना किसी राजनीतिक उद्देश्य के शारीरिक शिक्षा देते हैं,
क्योंकि बीच में राजनीतिक उद्देश्य के आ जाने के कारण संगठन में बाधा उपस्थित होती है। उन्होंने मुझे यह भी बताया था कि विश्वयुद्ध के दिनों में उनके 40 हजार स्वयंसेवक मौन नहीं रहेंगे। वे भारत की स्वतंत्रता के लिए अवश्य कुछ करेंगे। किन्तु दूसरे वर्ष ही लू लगने के कारण डा० हेडगेवार का स्वर्गवास हो गया और वह कार्य नहीं हो सका, जिसे वे करना चाहते थे।
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