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खजाने में कैद : राजा के वेश में छलिया को मंत्री ने किया खजाने में कैद कहानी

खजाने में कैद: राम नगरी का राजा था रामसिंह। वह बहुत ही वीर एवं प्रजापालक था। एक बार राजा शिकार खेलकर वापस आया, तो रानी को उसका स्वभाव काफी बदला सा लगा। पहले वह महल में आता, तो हंसकर बातें करता। महल के कामों में रुचि लेता। मगर शिकार से आने के बाद बिल्कुल गुमसुम नौकर उसे सोने के कमरे में ले गया। अब राजा वहां से बाहर ही न निकलता। किसी से अच्छी तरह बातचीत भी नहीं करता था। उसने सबको कमरे में आने की मनाही कर रखी थी। यहां तक कि वह रानी और राज्य के स्वामिभक्त मंत्री से भी बात नहीं करता था।

खजाने में कैद

खजाने में कैद

रानी रूपमती राजा के बदले हुए व्यवहार को समझ नहीं पा रही थी। इतना हंसमुख राजा एक दिन में कैसे बदल गया! कहीं राजा को कोई बीमारी तो नहीं हो गई? रानी चिंता में घुली जा रही थी। राजा की हालत पर उसे तरस भी आता और गुस्सा भी ।

रानी ने अपने विश्वासपात्र बूढ़े मंत्री शेरसिंह से सलाह लेनी उचित समझी। शेरसिंह रानी एवं राजा का सच्चा हितैषी था। वह राजा के पिता के समय से ही मंत्री था। राजा को तो उसने गोद में खिलाया था। राजा भी अपने बूढ़े मंत्री को बहुत मानता था।

रानी ने मंत्री को अपनी शंका बताई। मंत्री भी कुछ इसी तरह सोच रहा था। उसने रानी से कहा–” राजा साहब मुझसे हर छोटे-बड़े मामले में सलाह लिया करते थे। अब न जाने क्या हो गया है। दूर से देखकर ही भगा देते हैं। इस बात की जांच-पड़ताल करनी चाहिए।

मंत्री की बात सुनकर रानी और चिंतित हो गईं। उसने मंत्री से कहा–“आप अनुभवी हैं। कोई ऐसी तरकीब निकालिए, जिससे पता चले कहीं राजा के वेश में यह कोई दूसरा नहीं। तो मंत्री ने कुछ सोचकर कहा- “रानी जी, इसका पता एक ही बात से लगाया जा सकता है। राजमहल के गुप्त खजाने को खोलने व बंद करने का रहस्य मुझे या राजा जी को ही मालूम है। यदि वह व्यक्ति राजा रामसिंह ही है, तो उसे वह रहस्य पता होगा। ” मंत्री की इस बात से रानी सहमत थी। अगले दिन सुबह मंत्री शेरसिंह, राजा रामसिंह के पास गया। राजा ने उसे टालने की बहुत कोशिश की, मगर मंत्री ने कहा-“मुझे बहुत जरूरी काम है। “

इसके बाद मंत्री कहने लगा- “महाराज, इस वर्ष राज्य में निर्माण कार्य अधिक होने की वजह से व्यय कुछ अधिक हो गया है। राजकोष में बहुत कम धन रह गया है। अब हमें अपने गुप्त खजाने से कुछ धन निकालना पड़ेगा। “

मंत्री की इस बात को सुनकर राजा चौकन्ना हो गए। संभलकर बोला–” क्या कहा, गुप्त खजाने से धन निकालना पड़ेगा। ठीक है, मैं भी यही सोच रहा था। तुम जल्दी से धन निकाल कर मेरे पास आओ। मैं सब देख लूंगा।”

राजा की इस बात पर मंत्री चकित रह गया। वह राजा का विश्वासपात्र था। फिर भी राजा गुप्त खजाने की चाबी अपने पास रखता था। राजा किसी दूसरे को वहां जाने की आज्ञा नहीं देता था। स्वयं ही खजाने का समय- समय पर निरीक्षण करता था। इस राजा की असंगत बात सुन उसका शक और भी बढ़ गया।

वह जानबूझकर बोला- “महाराज, आप चलते तो ठीक रहता। मुझे खजाने को बंद करने वाला मंत्र भी ठीक तरह से याद नहीं। कभी पहले खजाना बंद भी नहीं किया।

‘अच्छा चलो, मैं चलता हूँ। तुम जानते हो, मेरी तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है। इसलिए खजाने के अंदर तुम ही जाना।” राजा ने कहा।

” बहुत अच्छा, महाराज” कहकर मंत्री राजा के साथ खजाने की ओर चल पड़ा। खजाने के द्वार पर पहुंचकर उसने मंत्र पढ़कर खजाने का दरवाजा खोला।

फिर वह राजा से बोला- “महाराज, इस राज्य की परंपरा के अनुसार राजा ही खजाने में जाता है। आपने यह परंपरा अब तक निभायी है, इसे तोड़िए मत। आप स्वयं अंदर जाकर धन ले आइए।

राजा खजाने के भीतर चला गया। राजा के अंदर जाते ही मंत्री ने खटाक से खजाने का दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर राजा ने पीछे मुड़कर देखा। वह घबराकर चिल्लाया- “मंत्री, तुमने दरवाजा क्यों बंद कर दिया? जल्दी दरवाजा खोलो।

मंत्री बोला- “महाराज, आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं? आप तो हमेशा ऐसे ही करते हैं। दरवाजा बंद करके अंदर जाते हैं, फिर अंदर से मंत्र पढ़कर आप स्वयं ही दरवाजा खोलते हैं।”

राजा क्रोधित होकर बोला- “जल्दी से दरवाजा खोलो, वरना तुम्हारी खैर नहीं। मैं तुम्हें सूली पर लटकवा दूंगा।”

मन ही मन मुस्कराता मंत्री बोला–“महाराज, आपको क्या हो गया है? आपने मुझे ऐसे अपशब्द आज तक नहीं बोले। और भला इसमें मेरा कसूर भी क्या है? यदि आपको मंत्र याद नहीं आ रहा, तो गुप्त मार्ग से निकल आइए। वह रास्ता तो आप जानते ही हैं।

यह सुनकर राजा और भी झल्ला उठा। वह बोला “नहीं, इस समय मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। जल्दी दरवाजा खोलो। मेरा दम घुटा जा रहा है। “

अब मंत्री को पूरा यकीन हो गया, यह राजा रामसिंह के वेश में कोई छलिया है। वह बोला- “महाराज, आप ही बताइए, मैं कर भी क्या सकता हूं। मंत्र याद करके आप दरवाजा खोलने की कोशिश कीजिए या गुप्त दरवाजा है। आप कोशिश तो कीजिए, तब तक मैं महारानी जी से पूछकर आता हूँ, शायद उनको कुछ मालूम हो।” यह कहकर मंत्री वहां से चला गया।

वह रानी के पास पहुंचा। रानी को सारी बातें बतलाई। कहा-” यह निश्चित ही हमारा राजा नहीं है। मगर है कौन? जरूर कोई चालबाज है। राजा कहां हैं, इसे जरूर पता है। मैं इसी से सारी बातें जान लूंगा।

इसके बाद मंत्री खजाने की ओर गया। राजा अंदर बेचैन था। मंत्री के आने की आहट सुन इस बार राजा ने गिड़गिड़ाकर उससे दरवाजा खोलने के लिए कहा।

मंत्री बोला–“तुम्हारा भेद तो खुल ही चुका है। केवल एक शर्त पर दरवाजा खोला जा सकता है। बताओ, हमारे राजा कहां हैं? तुम कौन हो? ठीक-ठीक उत्तर दो, वरना यहीं पड़े-पड़े दम तोड़ दोगे।

राजा बने उस धूर्त ने कहा- “मैं मशहूर ठग कालू हूं। राजा रामसिंह एक दिन अकेले हो शिकार खेलने गए, तो वह रास्ता भूलकर मेरी गुफा के बाहर आ पहुंचे। उन्होंने मुझसे पानी मांगा। राजा को जंगल में अकेला देखकर मुझे एक योजना सूझी। मैं मुखौटे बनाना जानता हूं। मैंने सोचा, यदि मैं राजा रामसिंह की जगह राजा बन जाऊं, तो मुझे सारी जिंदगी काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सोचकर मैंने राजा को पानी देते समय उसमें बेहोशी की दवा मिला दी। जब राजा बेहोश हो गया, तो मैं उसको अपनी गुफा में ले गया। फिर मैंने हू-ब-हू राजा की शक्ल जैसा ही मुखौटा तैयार किया। मेरा डीलडौल व रंग तो राजा जैसा है ही। नकली मुखौटा पहना, फिर राजा के वस्त्र पहनकर राजमहल चला आया। “

सोचा था, कुछ दिन यहां रहकर महल में रहने के कायदे सीख – समझ जाऊंगा। मगर जल्दी ही भेद खुल गया। मैं यहां से धन लेकर भागने की योजना बना रहा था। इसलिए गुप्त खजाने की बात सुनकर लालच में आ गया। मैं राजा को अपनी गुफा में बंद कर आया हूं। गुफा जंगल के पार, नदी के किनारे है।

सारी बातें सुनकर मंत्री ने सिपाहियों को ठग के बताए स्थान पर भेजा। वे कुछ समय बाद राजा को लेकर महल में आ गए।

राजा को देखकर रानी और राज्य की जनता प्रसन्न हो उठी। राजा ने मंत्री को गले लगा लिया। ठग को देश निकाला दे दिया गया।

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