गुर्दे की पथरी का कारण, लक्षण, इलाज, भोजन, पथरी का परीक्षण, प्रकार और यौगिक उपचार

गुर्दे की पथरी का कारण, लक्षण, इलाज, भोजन, पथरी का परीक्षण, प्रकार और यौगिक उपचार क्या है। अधिकांशतः आजकल लोग मूत्र एवं प्रजनन प्रणाली से सम्बन्धित रोगों से पीड़ित मिलते हैं। यद्यपि मूत्र एवं प्रजनन प्रणाली दो अलग-अलग प्रणालियाँ (सिस्टम) पर, उन दोनों की प्रक्रियाएँ एक ही अंग में पूरी होती हैं। अतः इसके रोग (Kidney Stone) दोनों ही प्रणालियों को प्रभावित करते हैं । तंत्र-विज्ञान इस प्रणाली को जल-तत्व से जोड़ता है। लेकिन, प्राणिक स्तर पर इसे अपान वायु से जुड़ा माना जाता है।

गुर्दे की पथरी का कारण

गुर्दे की पथरी का कारण

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गुर्दे की पथरी का कारण

अतीन्द्रिय स्तर (इन्द्रियों के बोध से परे) इसका नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से माना जाता है। स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान मेरुदण्ड में मूलाधार के कुछ ऊपर तथा मूत्रेन्द्रिय के ठीक पृष्ठ प्रदेश अर्थात् जननांग क्षेत्र में है। यह जननांगों तथा उनसे सम्बन्धित ग्रन्थियों को प्रभावित एवं नियंत्रित करता जब जल तत्व, अपान वायु या स्वाधिष्ठान चक्र में व्यतिक्रम (विघ्न, बाधा आती है तो इस प्रणाली के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

मूत्र प्रणाली के संदर्भ में यहाँ गुर्दे (किडनी) की पथरी पर चर्चा प्रस्तुत है। इसे अँग्रेजी में Renal Calculi कहते हैं । गुर्दे (किडनी) क्या है और इनका क्या कार्य है, यह समझ लेना आवश्यक है। गुर्दे (किडनी) रक्त-शुद्धि की प्राकृतिक प्रणाली है जो वस्तुत: हमें वरदान के रूप में प्राप्त हुए हैं। गुर्दे (किडनी) दो होते हैं जिनका आकार सेम की तरह होता है । गुर्दों से एक-एक मूत्र नलिका मूत्राशय से जुड़ी है। इनका मुख्य कार्य रक्त में मिले हानिकारक तत्वों को छानकर उन्हें मूत्र के रूप में शरीर से बाहर फेंकना है। ये रक्त में विशिष्ट गुरुत्व बनाये रखकर रक्त को स्थिर भी बनाये रखते हैं।

पथरी का कारण

गुर्दे यदि ठीक प्रकार से, किन्हीं कारणवश ठीक काम नहीं करते तो पेशाब के माध्यम से निकाले जाने वाले विषैले तत्व जैसे यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम क्लोराइड, सल्फेट व फास्फेट गुर्दों में जमकर पथरी का रूप धारण कर लेते हैं जो अधिकांशतः गुर्दे में बिना किसी लक्षण के शांत पड़े रहते हैं। परन्तु, जब कभी मूत्र प्रवाह के साथ मूत्रनली (यूरीनरी ट्यूब) में उतरकर फंस जाते हैं तो अन्दरूनी कोमल त्वचा को छील देते हैं जिससे असहनीय दर्द, जलन एवं पेशाब में रक्त आने लगता है।

गुर्दे की पथरी बनने के अन्य कारण भी हैं। जैसे-

  1. खान-पान में बदपरहेजी अर्थात् भोजन में प्रोटीन की अधिकता के कारण एसिडिटी बढ़ जाती है जो माँस, अमलोत्पादक पदार्थ मैदा, शक्कर, चाय, कॉफी, तीक्ष्ण तथा खट्टे पदार्थ, मसालों के अधिक सेवन से उत्पन्न होती है।
  2. यूरिक एसिड तथा कैल्शियम के दोषपूर्ण पाचन से या पैरा थाइराइड ग्रन्थियों के सही काम न करने से कई आकारों में पथरी बनने लगती है।
  3. जब कोई व्यक्ति नमक का सेवन तो पर्याप्त मात्रा में करता है पर पानी बहुत कम पीता है या दूषित जल का सेवन करता है तो पेशाब गाढ़ा बनता है जो पथरी का कारण बनता है।
  4. गठिया, हाइपर कैल्सियूरिया, हाइपर थाइराइडिज्म, वृक्क रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज आदि रोग भी इसके कारण हो सकते हैं।
  5. कभी-कभी दवाइयाँ जैसे : डाइयूरेटिक्स कैल्शियम सम्बन्धित, एंटासिड्स आदि का सेवन भी रोग का कारण बनता है।

पथरी के लक्षण

  • पथरी की किन्हीं रोगों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता और वह गुर्दे (किडनी) में वगैर किसी पीड़ा के शान्त पड़ी रहती है।
  • सामान्य रूप में रोगी को कमर के पीछे अत्यधिक पीड़ा होती है। अन्दर गहराई में टूटन की सी आवाज होती है। इसके अतिरिक्त पेट में भी काफी तेज दर्द महसूस होता है।
  • कभी-कभी रीनल कौलिक में इतने जोर का दर्द होता है कि उल्टियाँ तक होने लगती है।
  • जब पथरी स्थान बदलती है तो मूत्राशय के पास दर्द का अनुभव होता है। जब यह मूत्र के प्रवाह के साथ मूत्रनली (यूरीनरी ट्यूब) में उतरकर फंस जाती है तब पेशाब रुक-रुक कर आने लगता है, पेशाब में जलन एवं उसमें रक्त भी आने लगता है। यदि रोगी के मूत्राशय में संक्रमण है तो बुखार आता है तथा ठंड लगती है।
  • जब पथरी गुर्दे (किडनी) से नीचे उतरकर मूत्र-वाहिनी नलिका (यूरेटर) में आकर फंस जाती है और वहाँ से भी वह धीरे-धीरे और नीचे उतरना शुरू कर देती है तो कमर में भीषण दर्द एवं वेदना होती है जो बढ़कर जननेन्द्रिय तक फैल जाता है। यह दर्द कई दिनों तक भी चल सकता है। इसमें उल्टी आती है तथा काफी पसीना आता है। पेशाब करने की इच्छा होने पर भी पेशाब थोड़ा-थोड़ा ही होता है। यह रक्तयुक्त भी हो सकता है।

पथरी का परीक्षण (डायग्नोसिस)

इसकी पहचान कर पाना साधारणतः बड़ा कठिन है अतः अल्ट्रासाउण्ड हेलिकल सीटी स्कैन अथवा इण्ट्राविनस पायलोग्राम करके जाना जाता है।

आधुनिक चिकित्सा

पथरी के रोगी को पानी काफी मात्रा में पीना चाहिये जिससे पेशाब के प्रवाह से वह स्वतः नली में उतर आये। पर, यह सम्भावत: चार मिलीमीटर बड़ी पथरी होने पर होती है। यदि, यह पाँच मिलीमीटर से नौ दस मिलीमीटर होती है तब तो इसके उपचार जिसे लिथोट्रीसि कहते हैं, की आवश्यकता पड़ती है। इसमें उपचार बड़ी पथरी तोड़कर छोटे टुकड़े कर नली से बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। यदि सफलता नहीं मिलती है तो फिर शल्य चिकित्सा का ही विकल्प रह जाता है। पर इस प्रक्रिया के बाद साइड इफेक्ट भी होते हैं और पथरी पुनः होने का खतरा रहता है।

पथरी के प्रकार

1. ऑक्जेलेट पथरी

जब भोजन में ऐसे पदार्थ अधिक होते हैं जिनमें ऑक्जेलेट की प्रचुर मात्रा होती है। जैसे-टमाटर, पालक एवं अन्य हरे पत्तों वाली सब्जियाँ अथवा जब लगातार गाढ़ा पेशाब ही आता रहता है तो इस प्रकार की पथरी निर्मित हो जाती है।

2. कैल्शियम या फास्फेट पथरी

इस प्रकार की पथरी का आकार कुछ बड़ा होता है। जब पेशाब क्षारीय होता है अथवा कैल्शियम के चयापचय में कुछ गड़बड़ी होती है तब इस प्रकार की पथरी बनने लगती है। इस पथरी के बनने के अन्य कारण होते हैं-लम्बे समय तक बिस्तर पर आराम करते रहना, बुढ़ापे में हड्डियों के घुलने के कारण रक्त में कैल्शियम की मात्रा घट जाना या अधिक कैल्शियम युक्त (जैसे दूध) पदार्थों के अधिक सेवन करना।

यूरिक अम्ल तथा यूरेट पथरी

इस प्रकार की पथरी होने के कारण होते, गाउट (गठिया) होना, ज्यादा प्रोटीनयुक्त आहार (माँस, मछली, अंडा आदि) () का सेवन निरन्तर करना।

यौगिक उपचार

पथरी को बार-बार बनने से रोकने के लिए छोटी पथरी या उसके चूर्ण को बाहर निकालने के लिए यौगिक क्रियाएँ सार्थक एवं कारगर होती है। यदि गुर्दे में पथरी बनना शुरू हुआ है तो महामुद्रा, योगमुद्रा तथा उड्डियान बन्ध का अभ्यास करने मात्र से पथरी निकल सकता है।

आसन

  1. सूर्य नमस्कार के दो अथवा अधिक चक्र अपनी क्षमतानुसार
  2. त्रिकोणासन
  3. वज्रासन
  4. उष्ट्रासन
  5. शशांकासन
  6. भुजंगासन
  7. ताड़ासन
  8. कटि चक्रासन
  9. उदराकर्षणासन
  10. शलभासन
  11. चक्रासन
  12. मत्स्येन्द्रासन
  13. पश्चिमोत्तानासन
  14. हंसासन
  15. मयूरासन
  16. कूर्मासन आदि।

उक्त आसनों का चयन योग चिकित्सक के मार्गदर्शन में तथा अपनी शारीरिक क्षमतानुसार करना चाहिये।

प्राणायाम

1.नाड़ी शोधन प्राणायाम
2.भस्त्रिका प्राणायाम
गुर्दे की पथरी का कारण

उक्त प्राणायामों का अभ्यास बन्ध सहित करना चाहिये।

शिथिलीकरण

गुर्दे की पथरी से तनाव पनपता है तथा ऐसीडिटी उत्पन्न होती है। इनके निवारण के लिए योगनिद्रा एवं शवासन उपयोगी होता है।

ध्यान

अपनी सुविधानुसार पर अपने कल्याण को प्राथमिकता देते हुए अपने इष्ट आदि का ध्यान यथासंभव करना चाहिये इसमें अजपाजप एवं नादयोग उपयोगी है।

भोजन सम्बन्धी सावधानी

  • पूर्ण रूप से सन्तुलित ताजा एवं प्राकृतिक भोजन का सेवन लाभकारी होता है। फल, फलों का रस हल्की उबली हुई गूदेदार सब्जियाँ लेने से पेशाब अधिक क्षारीय होता है जो पथरी को बनने से रोकता है।
  • अम्लोत्पादक पदार्थ जैसे-मैदा, केक, चाऊमीन, मैगी, जंकफूडडिब्बा बन्द भोजन से सर्वथा परहेज करें।
  • टमाटर, पालक का सेवन तो शीघ्र ही बन्द कर देना चाहिये क्योंकि उनसे ऑक्जेलिक अम्ल की मात्रा तीव्रता से बढ़ती है जो पथरी के बनने में सहायक होती है।
  • नमक का सेवन कम मात्रा में करें। पर पानी तो ज्यादा से ज्यादा पीना चाहिये । गर्मी के मौसम में कम से कम बीस गिलास पानी अवश्य ही पीना चाहिये।

अन्य उपयोगी सुझाव

  1. प्रतिदिन पैदल अवश्य चलें। खासतौर पर शाम के भोजन के बाद तो जरूर ही टहलें।
  2. सप्ताह में कम से कम 5-7 दिन पसीना बहने तक व्यायाम करें।
  3. गाजर व कच्चे आलू का रस पीयें।
  4. सौ ग्राम कुल्थी की दाल को पानी में रात को भिगो दें। सबेरे 750 ग्राम पानी डालकर दाल को पकायें। पानी जब 300 ग्राम रह जाये तो उसमें नमक, काली मिर्च डालकर खायें। उससे साथ यदि खीरा भी खायें तो शीघ्र लाभ मिलेगा।
  5. सेब का रस पीने से पथरी बनना बन्द हो जाती है। यदि बन भी गई है तो वह घिस – घिसकर मूत्र द्वारा बाहर निकल जायेगी । सेब का रस गुर्दे की सफाई भी करता है।
  6. चुकन्दर को उबालकर उसका 25 से 50 ग्राम तक पानी अपनी आयु के अनुसार पियें। खीरे का सेवन अधिक लाभकारी होता है।
  7. पेशाब जैसे ही लगे फौरन जायें। उसके वेग को रोकना हानिकारक है।
  8. चार गिलास पानी में एक यवनाल तथा नीबू घास डालकर रखें। उसका अर्क उतर आने पर उसका सेवन रोज करें।
  9. एक ग्राम या उससे कम मात्रा में शिलाजीत का सेवन करने से गुर्दे (किडनी) मजबूत होते हैं तथा पथरी में भी लाभ मिलता है।
  10. सहजन की जड़ का पाउडर पानी में रात भर भिंगोकर रखें फिर सबेरे छानकर पीने से लाभ मिलता है।
  11. इसी प्रकार मुनक्के को पानी में भिगोकर उस पानी को पीने से पथरी में लाभ मिलता है।

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