क्रिया किसे कहते हैं :- क्रिया एक विकारी शब्द है। जिसे धातु के नाम से भी जाना जाता है। किसी कार्य के करने या होने का बोध कराने वाले शब्द क्रिया कहलाते हैं। जैसे- पीना, खाना, रोना, दौड़ना, हँसना आदि। परीक्षा के दृष्टिकोण से क्रिया एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। अकसर परीक्षा में क्रिया (Kriya Kise Kahate Hain) से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं और छात्र इन प्रश्नों को समझाने में अक्षर गलती कर बैठते हैं। यहां पर आपको क्रिया के बारे में बिल्कुल सरल तरीके से समझाया जा रहा है।
क्रिया किसे कहते हैं

क्रिया की परिभाषा
जिस शब्द से किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है उसे क्रिया कहते हैं। क्रिया व्याकरण का अंतिम भाग है। क्रिया एक विकारी शब्द है।
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धातु- क्रिया के मूल रूप (मूलांश) को धातु कहते हैं, अर्थात् जिस मूल रूप से क्रिया बनती है, उसे धातु कहते हैं। धातु प्रायः क्रिया के सभी रूपों में पाया जाता है।
क्रिया के साधारण रूपों के अंत में ‘ना’ लगा रहता है। जैसे- जाना, पाना, खाना, सोना, खेलना आदि। इन सभी साधारण रूपों के अंत में लगे ना को निकाल देने के बाद क्रिया का जो रूप (मूलरूप) बचता है, उसे ही धातु कहते हैं। जैसे-
लिख + ना = लिखना
पा + ना = पाना
जा + ना = जाना
इनमें क्रमशः लिख, पा, जा आदि क्रिया का मूल रूप या धातु रूप है।
क्रियाएँ तीन प्रकार के शब्दों से बनती हैं।
- धातु से – खा से खाना, पी से पीना, खेल से खेलना
- संज्ञा से – हाथ से हथियाना, लात से लतियाना, बात से बतियाना
- विशेषण से – चिकना से चिकनाना, गरम से गरमाना, से दुहरा से दुहराना
क्रिया के कितने भेद होते हैं
क्रिया किसे कहते हैं, क्रिया का विभाजन दो प्रकार से होता है। रचना / बनावट के आधार पर क्रिया रचना या बनावट के आधार पर क्रिया 2 प्रकार की होती है।
- अकर्मक क्रिया
- सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया
अ + कर्म अर्थात बिना कर्म के नहीं, जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जैसे-
- राम (कर्ता) रोता (क्रिया) है।
उपर्युक्त वाक्यों में रोता है, जिनका प्रभाव (फल) सीधा कर्ता पर क्रमशः राम, पक्षी और रेलगाड़ी पर पड़ रहा है। इन वाक्यों में कर्म नहीं आया है। अतः ये अकर्मक क्रियाएँ हैं।
कुछ अकर्मक क्रियाएँ
सोना, होना, बढ़ना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, पिसना, रोना, ठहरना, चमकना, डोलना, घटना, जागना, बरसना, उछलना, कूदना, फाँदना । ध्यान दें- यदि प्रश्न करने पर हमें क्या, किसे, किसका आदि का जवाब न मिले तो वह क्रिया अकर्मक होती है। किन्तु हमें प्रश्न करने पर कौन का उत्तर मिल जाता है। जैसे- उपर्युक्त वाक्यों में प्रश्न करने पर हमें क्या, किसे, किसका आदि का उत्तर नहीं प्राप्त हो रहा है किन्तु कौन का जवाब प्राप्त हो रहा है। अतः यहाँ अकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का फल कर्ता को छोड़कर कर्म पर पड़ता है, वे सकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे-
- मैं (कर्ता) पत्र (कर्म) लिखता हूँ (क्रिया)।
ध्यान दें- यदि प्रश्न करने पर हमें क्या, किसे, किसका आदि का जवाब (उत्तर) प्राप्त हो जाए, तो हमें समझना चाहिए की उपर्युक्त क्रियाएँ सकर्मक हैं। जैसे- पहले वाक्य में प्रश्न करने पर कि मैं क्या लिखता हूँ तो इसका जवाब मिलता है कि पत्र लिखता हूँ। अतः यह सकर्मक क्रिया है।
कुछ क्रियाओं का प्रयोग अकर्मक एवं सकर्मक दोनों के लिए किया जाता है। जैसे- भरना, लजाना, खुजलाना, ऐंठना, ललचाना, भूलना, बदलना, घबराना आदि। इनके वाक्य में प्रयोग के आधार पर ही इनका निर्धारण हो पाता है कि ये क्रियाएँ अकर्मक है या सकर्मक।
एककर्मक क्रिया
कुछ सकर्मक क्रियाएँ एक कर्म वाली और कुछ दो कर्म वाली होती हैं। जिन सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। सरल शब्दों में कहें तो जिस वाक्य में क्रिया के साथ उसका एक ही कर्म हो, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे
(1) वह पुस्तक (कर्म) पढ़ता (क्रिया) है।
(2) रमन ने खाना (कर्म) खाया (क्रिया)।
उपर्युक्त वाक्यों में एक ही कर्म (पुस्तक एवं खाना) आया है। अतः ये एककर्मक क्रिया के उदाहरण हैं।
द्विकर्मक क्रियाएँ
द्विकर्मक अर्थात् दो कर्मों से युक्त । जो सकर्मक क्रियाएँ दो कर्म वाली होती हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-
- अरविन्द (कर्ता) ने निरंजन को पुस्तक (कर्म) दी (क्रिया)।
यहाँ पहले वाक्य में दो कर्म निरंजन और पुस्तक एवं दूसरे वाक्य में दो कर्म राहुल और पैसे हैं।
व्युत्पत्ति या रचना की दृष्टि से धातु के दो भेद होते हैं।
- रूढ़ (मूल) धातु
- यौगिक धातु (क्रिया)
- रूढ़ (मूल) धातु- रुढ़ या मूल धातु स्वतंत्र होते हैं, अर्थात् ये किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं होते हैं। जैसे- जा, खा, पी, रह, कर, बैठ, चल आदि।
- यौगिक धातु (क्रिया)- मूल धातु में प्रत्यय लगाकर, अनेक धातुओं को संयुक्त करके यौगिक धातुओं का निर्माण किया जाता है। जैसे- उठना से उठाना, करना से कराना, बात से बतियाना, पढ़ना से पढ़ाना, खाना से खिलाना आदि।
यौगिक धातु की रचना
यौगिक धातु की रचना तीन प्रकार से होती है
- धातु में प्रत्यय लगाने से अकर्मक से सकर्मक एवं प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती हैं।
- संज्ञा या विशेषण शब्दों से नामधातु बनता है।
- अनेक धातुओं को संयुक्त (मिलाने) करने से संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
प्रेरणार्थक क्रियाएँ
क्रिया के जिस रूप से हमें यह पता चले कि कर्ता कोई काम स्वयं न करके किसी दूसरे को उस कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है, तो उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। धातु में प्रत्यय लगाने से प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती हैं। प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं।
(i) प्रेरक कर्ता- प्रेरणा प्रदान करने वाला।
(ii) प्रेरित कर्ता- प्रेरणा लेने वाला। जैसे-
- मैने (प्रेरक कर्ता) रमेश (प्रेरित कर्ता) से पत्र लिखवाया (प्रेरणार्थक क्रिया)।
प्रेरक कर्ता प्रेरित कर्ता प्रेरणार्थक क्रिया प्रेरणार्थक क्रियाएँ अकर्मक एवं सकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं। मूल धातु में आना एवं वाना जोड़ने से क्रमशः प्रथम प्रेरणार्थक एवं द्वितीय प्रेरणार्थक क्रियाओं का निर्माण होता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
---|---|---|
गिरना | गिराना | गिरवाना |
जगना | जगाना | जगवाना |
उठना | उठाना | उठवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
उड़ना | उड़ाना | उड़वाना |
सुनना | सुनाना | सुनवाना |
चलना | चलाना | चलवाना |
संयुक्त क्रिया
जहाँ दो या दो से अधिक धातुओं (क्रियाओं) का प्रयोग साथ-साथ किया गया हो, वहाँ क्रिया के इस रूप को संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे-
- वह (कर्ता) खा (क्रिया) चुका (क्रिया)।
- राहुल (कर्ता) गीता (कर्म) पढ़ने (क्रिया) लगा (क्रिया)।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रमशः साथ-साथ दो क्रियाएँ खा चुका तथा पढ़ने लगा का प्रयोग हुआ है। अतः यह संयुक्त क्रिया का उदाहरण है।
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के मुख्यतः 11 भेद हैं
- आरंभ बोधक
- समाप्ति बोधक
- अवकाश बोधक
- अनुमति बोधक
- नित्यता बोधक
- इच्छा बोधक
- शक्ति बोधक
- आवश्यकता बोधक
- निश्चय बोधक
- अभ्यास बोधक
- पुनरुक्ति बोधक
नामधातु क्रिया
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से बनने वाली क्रिया को नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे-
- लात से -> लतियाना
- बात से -> बतियाना
- हाथ से -> हथियाना
- शरम से -> शरमाना
- चिकना से -> चिकनाना
- ठण्डा से -> ठण्डाना
- अपना से -> अपनाना
- लाज से -> लजाना
- झूठ से -> झुठलाना
- स्वीकार से -> स्वीकारना
- गरम से -> गरमाना
नाम बोधक क्रिया
संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ क्रिया के जुड़ने से हमें जो संयुक्त क्रिया प्राप्त होती है, उसे नामबोधक क्रिया कहते हैं।
ध्यान दें- नामबोधक क्रियाएँ एवं संयुक्त क्रियाएँ दोनों अलग-अलग हैं, क्योंकि नामबोधक क्रियाएँ संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों में क्रियाओं के मेल से बनती हैं, जबकि संयुक्त क्रियाएँ दो क्रियाओं के मेल से बनती हैं।
सहायक क्रिया
सहायक क्रिया, मुख्य क्रिया के रूप को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती हैं। कभी एक सहायक क्रिया तो कभी-कभी एक से अधिक सहायक क्रियाएँ मुख्य क्रिया की सहायक होती हैं। हिन्दी भाषा में सहायक क्रियाओं का प्रयोग व्यापक (बड़े) स्तर पर होता है।
उपर्युक्त वाक्यों में जाना, जगना, पढ़ना, खाना आदि मुख्य क्रियाएँ हैं, जबकि इनकी सहायक क्रियाएँ क्रमशः हैं- है, हुए थे, था, है
पूर्वकालिक क्रिया
जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त हो जाता है, तब पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।
अपूर्ण क्रिया
कई बार वाक्य में क्रिया के होते हुए भी उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता इसीलिए ऐसी क्रियाओं को अपूर्ण क्रिया कहते हैं। इन अपूर्ण क्रियाओं के लिए जो संज्ञा अथवा विशेषण शब्द प्रयुक्त होते हैं, उन्हें पूरक शब्द कहते हैं।
क्रियार्थक संज्ञा
जब किसी क्रिया का प्रयोग वाक्य में संज्ञा की तरह किया गया हो तो, उसे क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं। क्रियार्थक संज्ञा सदा एकवचन पुल्लिंग रूप में रहता है।
- टहलना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।
- देश के लिए मरना गौरव की बात है।
उपर्युक्त वाक्यों में टहलना एवं मरना क्रियार्थक संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
अनुकरणात्मक क्रियाएँ
ध्वनियों के अनुकरण से बनने वाली क्रियाएँ अनुकरणात्मक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे-
- खटखट से -> खटखटाना
- धड़धड़ से -> धड़धड़ाना
- थरथर से -> थरथराना
- सनसन से -> सनसनाना
- थपथप से -> थपथपाना
- चरचर से -> चरचराना
सामान्य क्रिया
जब वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हो, तो वह सामान्य क्रिया कहलाती है। जैसे- आना, जाना, धोना, नहाना, चलना, खाना, रोना आदि।
- आप आये।
- वह नहाया।
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