मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय? मदनमोहन मालवीय पर निबंध?

मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय (Madan Mohan Malviya Ji Ka Jeevan Parichay), मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को प्रयाग में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. ब्रजनाथजी था। एवं उनकी माता का नाम मोना देवी था। साधारण स्थिति का मनुष्य भी सच्ची लगन, निःस्वार्थपरता और कठोर परिश्रम से असम्भव कार्य को भी सम्भव कर सकता है। इसके उदाहरण परमादरणीय श्रद्धेय महामना श्री मदनमोहन मालवीय हैं। आपने विश्वविख्यात विश्वविद्यालय की स्थापना कर संसार को बता दिया कि सच्ची लगन और कठिन परिश्रम से बड़े से बड़े काम सरल हो जाते हैं।

मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय

मदनमोहन-मालवीय-का-जीवन-परिचय

Madan Mohan Malviya Ji Ka Jeevan Parichay

जन्म25 दिसम्बर, 1861
जन्म स्थानप्रयाग
पिता का नामपं. ब्रजनाथजी
माता का नाममोना देवी
मृत्यु12 नवम्बर 1946

जन्म एवं परिचय

श्री मालवीयजी का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को प्रयाग के एक सुशिक्षित मध्यवर्गीय सनातनी परिवार में हुआ था। आपके पिता पं. ब्रजनाथजी संस्कृत और हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान थे।

आपकी आरम्भिक शिक्षा घर पर हुई। फिर जिला प्रयाग स्कूल में प्रवेश लिया। सन् 1876 में आपने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात् बी. ए. तथा एल-एल. बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर सन् 1884 में गवर्नमेंट हाईस्कूल में अध्यापन कार्य किया।

कार्य क्षेत्र

अध्यापन काल में ही आपने सन् 1886 के कांग्रेस के अधिवेशन में जो भाषण दिया था उससे सभी उपस्थित व्यक्ति प्रभावित हो गये थे। अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी ने कहा था, “इनकी वाणी भारतमाता की वाणी है।” अध्यापन कार्य छोड़कर आपने ‘हिन्दोस्तान’ का सम्पादन कार्य आरम्भ कर दिया।

हिन्दोस्तान के बाद आपने ‘अभ्युदय’ और ‘मर्यादा’ का सम्पादन किया फिर आपने अंग्रेजी दैनिक ”लीडर’ का सम्पादन आरम्भ कर दिया। सन् 1880 में आपने हिन्दू समाज की स्थापना की तथा भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना की। फिर सन् 1909 में हिन्दू महासभा की स्थापना की। आप एक सफल वकील थे।

आपके तर्कों से अन्य वकील तथा न्यायाधीश प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। अतः थोड़े ही समय में आप अच्छे वकील हो गये। मालवीयजी स्वतन्त्रता के सेनानी थे। सन् 1909, 1918, 1932, 1933 में आप कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।

अच्छे कार्यकर्ता होने के कारण आप अनेक बार जेल गये। सन् 1910 से 1912 तक आप प्रान्तीय कौंसिल के सदस्य रहे। सन् 1910 से 1916 तक वायसराय की केन्द्रीय कौंसिल के सदस्य रहे। 1916 में औद्योगिक सदस्य नियुक्त हुए।

आपने रौलट एक्ट, जलियाँवाला बाग और साइमन कमीशन का विरोध किया। आपने इंग्लैंड की राउंड टेबिल कांफ्रेंसों में भाग लिया, वहाँ अंग्रेजों की नीतियों का विरोध किया।

भारतीय छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ता था। अतः आपने डॉ. एनी बेसेन्ट और दरभंगा-नरेश श्री रामेश्वर सिंह बहादुर के सहयोग से बनारस विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय भारत का प्रमुख विश्वविद्यालय है। इसमें प्रायः सभी विषयों की शिक्षा दी जाती है।

उपसंहार

सम्पादन, समाज-सुधार, समाज-सेवा, देश-सेवा, सच्ची राजनीति तथा विद्या प्रचार करते हुए इस महर्षि ने 11 नवम्बर, 1916 को महानिर्वाण प्राप्त कर लिया। इनकी मृत्यु 12 नवम्बर 1946 को हुई थी।

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