महादेवी वर्मा का जीवन परिचय:- ‘पीड़ा की गायिका’ और ‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जानेवाली, छायावादी कवियों की बृहत्-चतुष्टयी (प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी वर्मा) में सम्मिलित महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay) का जन्म फर्रुखाबाद के एक शिक्षित और सम्भ्रान्त परिवार में सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। इनके पिता गोविन्दप्रसाद वर्मा भागलपुर में एक विद्यालय में प्रधानाचार्य और नाना ब्रजभाषा के एक अच्छे कवि थे।
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

Mahadevi Verma Biography in Hindi
नाम | महादेवी वर्मा |
जन्म | सन् 1907 ई० |
जन्म स्थल | उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में |
मृत्यु | 11 सितम्बर, सन् 1987 ई० |
पिता | श्री गोबिन्द प्रसाद |
माता | श्रीमती हेमारानी |
कार्यक्षेत्र | अध्यापक, कवियत्री, लेखक, सम्पादक |
सम्मान | पद्म विभूषण, मंगलाप्रसाद पारितोषिक |
प्रमुख रचनाएँ | काव्य- ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य-गीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ |
निबन्ध-संग्रह | ‘क्षणदा’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘अबला-सबला’, ‘साहित्यकार की आस्था’ |
संस्मरण और रेखाचित्र | ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’ आदि |
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साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान
माता हेमरानी वर्मा परम-विदुषी महिला थीं। इन सभी के प्रभाव के कारण महादेवी वर्मा एक सफल प्रधानाचार्या और भावुक कवयित्री बन गयीं। इनकी माता मीरा और कबीर के पद बड़े भाव और लय के साथ गाया करती थीं। वे स्वयं भी कविता किया करती थीं। माता के आचार-विचार का महादेवी पर बड़ा प्रभाव पड़ा। काव्य-निपुणता इन्हें अपने नाना से, ईश्वर के प्रति अनुराग अपनी माँ से तथा सफल आचार्यत्व के गुण पिता से प्राप्त हुए। इस प्रकार ये श्रेष्ठ कवयित्री, निर्गुण और अव्यक्त की परमसाधिका एवं विदुषी प्रधानाचार्या बन सकीं।
महादेवी वर्मा की शिक्षा
महादेवी वर्मा ने इन्दौर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करके क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज, इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की। इनका विवाह ११ वर्ष की अल्पायु में ही डॉ० स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया। श्वसुर के विरोध के कारण इनकी शिक्षा में व्यवधान आ गया। उनके देहावसान के बाद इन्होंने पुनः शिक्षा प्रारम्भ की और प्रयाग विश्वविद्यालय से एम०ए० (संस्कृत) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या नियुक्त हुईं, जहाँ से सन् 1965 ई० में अवकाश ग्रहण किया। इनकी साहित्य-साधना अनवरत चलती रही। ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं।
पुरस्कार
इनको नीरजा पर सेक्सरिया तथा यामा पर मंगलाप्रसाद पुरस्कार भी प्राप्त हुए। भारत के राष्ट्रपति ने इन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1983 ई० में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भारत भारती पुरस्कार प्रदानकर इन्हें हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री घोषित किया। इनकी कृति ‘यामा’ पर इंग्लैण्ड की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती थैचर ने इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। कुमायूँ विश्वविद्यालय ने इन्हें सन् 1975 ई० में डी० लिट्० की मानद उपाधि से सम्मानित किया। हिन्दी साहित्य को इस परम साधिका का 11 सितम्बर, 1987 को आकस्मिक निधन हो गया।
पत्रिका
महादेवीजी की पारिवारिक पृष्ठभूमि काव्यमयी होने से इन्हें भी बचपन से ही काव्यानुराग था। उस समय की प्रसिद्ध नारी पत्रिका ‘चाँद’ में इनकी रचनाएं छपती थीं। बाद में इन्होंने ‘चांद’ का सम्पादन भी किया। इन्होंने सदियों से उपेक्षिता नारी के कल्याणकारी रूप को अपने काव्य में उतारकर पहचान दी। इन्होंने देहरादून में ‘उत्तरायण’ नामक साहित्यिक आश्रम की स्थापना की। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना करके हिन्दी साहित्य के प्रसार-प्रचार में महनीय योगदान किया।
भाषा शैली
भाषा
महादेवी वर्मा का गद्य संस्कृतगर्भित, शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में है। आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ होते हुए भी सरस, माधुर्ययुक्त और प्रवाहपूर्ण है। भाव, भाषा और संगीत की त्रिवेणी के संगम पर उनके गद्य का निर्माण हुआ शब्द चयन उत्कृष्ट एवं भावानुकूल है। भाषा में तल्लीनता और तन्मयता के दर्शन होते हैं। महादेवी जी की चित्रोपम भाषा में उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, विरोधाभास जैसे अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। आपकी भाषा में मुहावरों और कहावतों का सटीक प्रयोग मिलता है। भावुकता, विदग्धता, मधुरता तथा लालित्य आपकी भाषा के विशेष गुण हैं। एक-एक शब्द बोलता-सा प्रतीत होता है।
शैली
महादेवी वर्मा ने विषय के अनुसार गद्य को विविध शैलियों को अपनाया है-
भावात्मक शैली
महादेवी जी की यह शैली उनके रेखाचित्रों में मिलती है। महादेवी जी का कवि हृदय अपनी सम्पूर्ण भावचेतना के साथ गद्य पर छाया रहता है। आलंकारिक सौन्दर्य, सरलता, भावों की सुकुमारता ने इस शैली को आकर्षक बना दिया है। इनमें महादेवी जी का कोमल हृदय झाँकता दिखायी देता है।
वर्णनात्मक शैली
वर्णनात्मक शैली का प्रयोग वर्णन प्रधान निबन्धों में हुआ है। वर्णनात्मक शैली सरल और व्यावहारिक है। भाषा सरल होते हुए भी शुद्ध, परिमार्जित और परिष्कृत हैं। वाक्य छोटे होते हैं, वर्णन में सजीवता और प्रवाह है।
चित्रात्मकता शैली
आपने चित्रात्मक शैली का सफल प्रयोग किया है। पाठक के सामने शब्दों के द्वारा व्यक्ति या वस्तु का चित्र-सा उपस्थित हो जाता है। इस शैली की भाषा चित्रात्मक एवं लाक्षणिक है।
विवेचनात्मक शैली
महादेवी जी ने आलोचनात्मक निबन्धों में इस शैली को अपनाया है। इस शैली को भाषा दुरुह और संस्कृतनिष्ठ है, परन्तु उसमें सुबोधता और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है।
व्यंग्यात्मक शैली
महादेवी जी ने कभी-कभी शिष्ट हास्य और तीखे व्यंग्य भी कर देती है। जहाँ वे तीखे व्यग्य करती है, वहाँ उनकी शैली व्यंगात्मक हो गयी है। आपके व्यंग्यों में सुधार की भावना, करुणा और शिष्ट हास्य का समन्वय है। महादेवी जी की शैली में कल्पना, सजीवता, भाषा-चमत्कार इत्यादि एक साथ देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी गद्य रचनाओं में कहीं-कहीं सूक्ति शैली, उद्धरण शैली और आत्माभिव्यंजक शैली के भी दर्शन होते हैं।
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