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महाराणा प्रताप का जीवन परिचय? महाराणा प्रताप पर निबंध?

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय: महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को चित्तौड़ के राजघराने में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय सिंह था। भारतमाता की कोख ने सदैव वीर सपूतों को जन्म दिया। ये अपनी आन-बान पर टूट गये किन्तु झुके नहीं। राणा साँगा ऐसे ही वीर थे। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Biography in Hindi) इन्हीं वीर शिरोमणि के पौत्र थे। आपने अपने स्वाभिमान की सदा रक्षा की।

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
Maharana Pratap Ka Jeevan Parichay

Maharana Pratap Biography in Hindi

जन्मजन्म 9 मई, 1540
जन्म स्थानचित्तौड़
पिता का नामउदय सिंह
मृत्युसन् 1597 में 56 वर्ष की आयु में

परिचय

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को चित्तौड़ के राजघराने में हुआ। आपके पिता का नाम उदय सिंह था। उदय सिंह अपने पिता के समान वीर, साहसी और स्वाभिमानी नहीं थे। ये सम्राट अकबर की विशाल सेना को देखकर डरकर उदयपुर भाग गये। उदयपुर को ही आपने अपनी राजधानी बनाया।

उदय सिंह की मृत्यु के बाद सन् 1572 में महाराणा प्रताप राजगद्दी पर बैठे। महाराणा प्रताप कुशल योद्धा और स्वाभिमानी थे। चित्तौड़ पर अकबर का शासन आपको खलने लगा था। आपने प्रतिज्ञा की कि जब तक चित्तौड़ को स्वतन्त्र नहीं करा लूँगा तब तक न तो पलंग पर सोऊँगा, न सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन करूँगा और न मूँछों पर ताव ही दूँगा।

अकबर से शत्रुता

सम्राट अकबर चाहता था कि जिस प्रकार राजपूताने के दूसरे राजा उसके जाल में फँस गये हैं और उन्होंने उससे रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित कर लिया है इसी प्रकार राणा प्रताप भी उसके जाल में फँस जाय। अकबर प्रताप की शक्ति को जानता था।

उसने प्रताप को समझाने के लिए अपने सेनापति मानसिंह को भेजा प्रताप ने ऐसे आदमी से मिलना उचित नहीं समझा, जिसने अपने स्वाभिमान को बेच दिया था। प्रताप मानसिंह के स्वागत-सत्कार में स्वयं नहीं गये। इन्होंने अपने पुत्र अमर सिंह को भेज दिया।

मानसिंह ने उसे अपना अपमान समझा और उनके परोसे भोजन में से एक कण को अपनी पगड़ी में लगाकर खाने से उठ बैठा। चलते समय कह गया, “इस अपमान का फल शीघ्र ही भुगतना पड़ेगा।”

अकबर चाहता था कि प्रताप को या तो अपने जाल में फँसा लिया जाय या उसे कुचल दिया जाय। अकबर प्रताप को कुचलने का कोई बहाना ढूँढ रहा था। मानसिंह के अपमान का उसे बहाना मिल गया।

उसने मानसिंह के नेतृत्व में एक लाख वीर सैनिकों को महाराणा को कुलचने के लिए भेज दिया। 1576 ई. में हल्दी घाटी में भयंकर युद्ध हुआ। प्रताप के वीर सैनिक अकबर की इस विशाल सेना के सामने टिक नहीं सके। अतः प्रताप अपने चेतक पर सवार होकर अरावली के जंगलों में जाकर छिप गये।

प्रताप ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ सहीं। बच्चे भूख से बिलखते रहे। एक दिन घास की रोटी बनाई, जैसे ही पुत्र-पुत्री खाने बैठे वैसे ही एक वन-बिलाव उस रोटी को ले गया। महाराणा प्रताप इस परिस्थिति को धैर्यपूर्वक सहन कर गये।

भामाशाह का दान-जब प्रताप विपत्तियों को सहते-सहते बहुत दुःखी हो गये तब दानवीर भामाशाह ने अपनी सारी सम्पत्ति उनके चरणों पर अर्पित कर दी। इस सम्पत्ति से बारह वर्ष तक बीस हजार सैनिकों का पालन किया जा सकता था। भामाशाह की सम्पति की सहायता से प्रताप ने फिर सेना का संगठन किया। आपने धीरे-धीरे अपने खोये हुए बहुत से प्रदेशों को वापस ले लिया।

उपसंहार

महाराणा प्रताप चित्तौड़ पर अधिकार नहीं कर सके। अतः उन्होंने पुत्र अमर सिंह तथा अपने वीर सरदारों से अपनी अन्तिम इच्छा प्रकट की। उन्होंने अपने पुत्र और सरदारों से प्रतिज्ञा कराई कि “जब तक चित्तौड़ का उद्धार नहीं हो जायेगा तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।” इस प्रतिज्ञा के कर लेने के तुरन्त बाद आपने सन् 1597 में 56 वर्ष की आयु में चांपड नामक स्थान में सदा-सदा के लिए आँखें बन्द कर लीं।

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