महात्मा गौतम बुद्ध का जीवन परिचय: महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 569 ई. पू. में हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था। एवं उनकी माता का नाम माया था। शान्ति और अहिंसा का उदय तब होता है जब संसार में हिंसा और अशान्ति का अन्धकार फैल जाता है। अन्धविश्वास, अधर्म और रूढ़ियों में फँसे हुए समाज को परस्पर प्रेम और सहानुभूति के द्वारा मुक्ति दिलाने के लिए इस पृथ्वी पर कोई-न-कोई युग-प्रवर्तक महापुरुष अवतरित होता है। महात्मा गौतम बुद्ध का आगमन इसी रूप में हुआ था।
महात्मा गौतम बुद्ध का जीवन परिचय

Mahatma Gautama Buddha Biography in Hindi
जन्म | 569 ई. पू. |
जन्म स्थान | लुंबिनी |
पिता का नाम | शुद्धोधन |
माता का नाम | माया |
मृत्यु | 80 वर्ष की आयु में |
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जीवन परिचय
महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 569 ई. पू. कपिलवस्तु के क्षत्रिय महाराजा शुद्धोधन की धर्मपत्नी महारानी माया के गर्भ से उस समय हुआ था, जब वे राजभवन को लौटते समय लुम्बनी नामक वन में आ गई थीं। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
जन्म के कुछ समय बाद माता का देहान्त हो जाने के कारण बालक सिद्धार्थ का लालन-पालन विमाता प्रजावती के द्वारा हुआ। राजा शुद्धोधन का अपने इकलौते पुत्र सिद्धार्थ के प्रति अपार प्रेम और स्नेह था।
बालक सिद्धार्थ बहुत गम्भीर और शान्त स्वभाव का था। वह दयालु और दार्शनिक प्रवृत्ति का था। वह अल्पभाषी तथा जिज्ञासु स्वभाव के साथ-साथ सहानुभूतिपूर्ण सहज स्वभाव का जनप्रिय बालक था। वह लोकजीवन जीते हुए परलोक की चिन्तन रेखाओं से घिरा हुआ था।
बालक सिद्धार्थ जैसे-जैसे बड़ा होने लगा, वैसे-वैसे उसका मन संसार से विरक्त होने लगा। वह सभी प्रकार के भोग-विलास से दूर एकान्तमय जीवन व्यतीत करने की सोचने लगा। अपने पुत्र सिद्धार्थ के वैरागी स्वभाव को देखकर राजा शुद्धोधन को भारी चिन्ता हुई।
अपने पुत्र की सांसारिक विरक्ति की भावना को समाप्त करने के लिए पिता शुद्धोधन सिद्धार्थ के लिए एक-से-एक बढ़कर उपाय करते रहे। राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को सांसारिक भोग-विलास के प्रति आकर्षित करने के प्रयत्न शुरू कर दिये। राजा शुद्धोधन ने यह आदेश दिया था कि सिद्धार्थ को एकान्तवास में ही रहने दिया जाए।
सिद्धार्थ को एक जगह रखा गया। उसे किसी से कुछ बात करने की मनाही कर दी गयी। केवल खाने-पीने, स्नान, वस्त्र आदि सारी सुविधाएँ दी गयीं। अब सिद्धार्थ का मन संसार के रहस्य के साथ प्रकृति के अनजाने कार्यों के प्रति जिज्ञासु हो चला था। वह सुख-सुविधाओं के प्रति कम लेकिन विरक्ति के प्रति अत्यधिक उन्मुख और आसक्त हो चला था।
बहुत दिनों से एकान्त में रहने के कारण सिद्धार्थ के कैदी मन से अब चिड़ियाँ बात करने लगीं। धीरे-धीरे चिड़ियों की बोली सिद्धार्थ की समझ में आने लगी। अब चिड़ियों ने सिद्धार्थ के मन को विरक्ति की ओर ले जाने के लिए उकसाना शुरू कर दिया।
चिड़ियाँ आपस में बातें करती थीं, “इतना बड़ा राजकुमार है, बेचारे को कैदी की तरह जीना पड़ रहा है। इसको क्या पता कि इस बाग-बगीचे और इन सुविधाओं की गोद के बाहर भी संसार है, जहाँ दुःख-सुख की छाया चलती रहती है।
अगर यह बाहर निकलता, तो इसको संसार का सच्चा ज्ञान हो जाता।” सिद्धार्थ का जिज्ञासु मन अब और उत्सुक हो गया। उसने अब बाहर जाने, देखने, घूमने की और जानने की तीव्र उत्कंठा प्रकट की।
राजा शुद्धोधन ने अपने विश्वस्त सेवकों और दासियों को इधर-उधर घुमाकर बालक सिद्धार्थ को राजभवन में लौटाने का आदेश दिया। ऐसा ही हुआ। फिर भी सिद्धार्थ की चिन्तन रेखाएँ बढ़ती गयीं। पिता शुद्धोधन को राजज्योतिषी ने यह साफ-साफ भविष्यवाणी सुना दी थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट होगा या विश्व के सबसे बड़े किसी धर्म का प्रवर्तक बनकर रहेगा।
बोधत्व की प्राप्ति
एक समय ऐसा भी आया कि एक रात सिद्धार्थ अपनी धर्मपत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोते हुए छोड़कर संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। घर-परिवार छोड़कर सिद्धार्थ शान्ति और सत्य की तलाश में वन में जाकर घोर तपस्या करने लगे।
गया में वट वृक्ष के नीचे समाधिस्थ हो गये। उन्हें बहुत समय के पश्चात् अचानक ज्ञान प्राप्त हो गया। ज्ञान प्राप्त होने के कारण वे बुद्ध कहलाने लगे। गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की शिक्षा और उपदेश के द्वारा यह ज्ञान दिया कि ‘अहिंसा परम धर्म है।
उपसंहार
इनकी मृत्यु 649 ई. पू को हुई थी। एक समय इस धर्म का प्रभाव पूरे विश्व में सबसे अधिक था। आज भी चीन, जापान, तिब्बत, नेपाल देशों में बौद्ध धर्म ही प्रधान धर्म के रूप में प्रचलित है। इस धर्म के अनुयायी बौद्ध कहलाते हैं। आज भी सभी धर्मों के अनुयायी बौद्ध धर्म के इस मूल सिद्धान्त को सहर्ष स्वीकार करते हैं कि ‘श्रेष्ठ आचरण ही सच्चा धर्म है।