मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध:- जब से मनुष्य ने लिखने की कला का विकास किया है, तब से आज तक जिन-जिन पुस्तकों की रचना हुई है, वे असंख्य हैं। विश्व की विभिन्न भाषाओं में एक से बढ़कर एक पुस्तकों का निर्माण हुआ और आगे भी होगा । हिन्दी-साहित्य का भण्डार भी अनेकों पुस्तकों से भरा हुआ है। उनमें कुछ को मैं चाव से पढ़ता हूँ, किन्तु उनको भी जिसे मैं अपना सर्वप्रिय ग्रंथ कहता हूँ और जिसे अनेक बार पढ़ने पर भी मन तृप्त नहीं होता, वह ग्रंथ है-गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित – ‘रामचरित मानस’। भारतीय संस्कृति, नीति, सदाचार, गृहस्थ धर्म का यह एक विश्वकोष है।
मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध

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‘रामचरित मानस’ में गोस्वामी तुलसी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के लोक-विश्रुत चरित्र का वर्णन किया है। भगवान् श्री राम के पावन चरित्र का वर्णन सर्वप्रथम आदि कवि वाल्मीकि ने अपनी पुस्तक ‘रामायण’ में किया है। उसके पश्चात् अनेक पुराणों, महाभारत, नाटकों और काव्यों में भी उस कथा का वर्णन किया गया है। ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘अद्भुत रामायण’ में भी श्रीराम की कथा का वर्णन है। गोस्वामी जी ने भी महर्षि वाल्मीकि और अन्य लेखकों की रचनाओं का आश्रय लेकर ‘रामचरित मानस’ की रचना की है। मानस के प्रारम्भ में ही उन्होंने इस ओर संकेत करते हुए कहा है-
नाना पुराण निगमागम सम्मतं यत्,
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।।
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा,
भाषा निबन्धमतिमञ्जुल मातनोति ।।
रामचरित मानस में सात काण्ड हैं। जो क्रमशः इस प्रकार हैं-बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किंष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड तथा उत्तर काण्ड। ‘बालक काण्ड’ में ‘मानस’ की रचना की भूमिका और श्रीराम के जन्म के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ हैं। इनमें शिव-पार्वती का विवाह और नारद-मोह सम्बन्धी प्रसंग पर्याप्त रोचक हैं। श्रीराम के जन्म व शैशव की चर्चा इसी में है। ‘अयोध्या काण्ड’ में श्रीराम व सीता के विवाह, उनके अभिषेक की तैयारी और वन-गमन की बात है। ‘अरण्ड काण्ड’ में श्रीराम का चित्रकूट में निवास व सीता हरण की घटना मुख्य है।
किष्किन्धा काण्ड’ में राम-सुग्रीव की मैत्री व बालि वध की घटना मुख्य है। सुन्दर काण्ड’ अपने नाम के समान ही सुन्दर और रोचक है। इसमें महावीर हनुमान् के पराक्रम का विशद वर्णन है। पवनसुत हनुमान् का समुद्र लंघन, लंकिनी वध, सुरसा के मुख में प्रवेश, सीता का अन्वेषण, विभीषण से भेंट, सीता जी वार्तालाप और लंका दहन की घटनाएँ अत्यन्त ही रोमांचक तथा रोचक हैं ‘लंका काण्ड’ में श्रीराम और रावण युद्ध का और राम की रावण का विजय का वर्णन है। उत्तर काण्ड’ में श्रीराम का अयोध्या वापिस लौटना, भरत का उद्विग्नता और पश्चात् राम-राज्य का वर्णन है।
भाव पक्ष और कला पक्ष – ‘रामचरित मानस’ तुलसी का ही नहीं, हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। आदर्श और भावना की दृष्टि से यह विश्व-साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचना कही जा सकती है। भक्ति, काव्य और नीति की त्रिवेणी इसमें बह रही है। समाज-धर्म, आचार-धर्म और राजनीति का इसमें समन्वय हुआ है। ज्ञान, भक्ति, कर्म का मेल इसमें है। द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत का प्रतिपादन इसमें है तथा संस्कृत और लोक भाषा (हिन्दी) का समन्वय इसमें है। मानस में महाकाव्य के सभी लक्षण हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इसके धीरोदात्तनायक हैं श्रृंगार, वीर और शांत इन तीन प्रमुख तथा अन्य रसों का इसमें वर्णन हुआ है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों वर्गों की सिद्धि का आदर्श इसमें है। ‘मानस’ का कथा-सौष्ठव तथा प्रसंगानुकूल संबाद, उत्कृष्ट भाव-व्यंजना, वस्तु-व्यापार वर्णन में लेश मात्र भी कहीं शिथिलता नहीं है। जनक-वाटिका में राम व सीता का मिलन, राम-वन-गमन, दशरथ-मरण, चित्रकूट में राम-भरत मिलन, लक्ष्मण के मूर्छित होने पर श्रीराम का विलाप आदि प्रसंग तो इस काव्य में ऐसे मर्मस्पर्शी हैं कि बार-बार पढ़ने पर भी तृप्ति नहीं होती। मानव के हर्ष, शोक, करुणा, द्वेष, क्षोभ, चिन्ता, क्रोध आदि हार्दिक भावों का कवि ने इसमें बड़ा ही सजीव, स्वाभाविक, रोचक और हृदय-ग्राही चित्रण किया है।
चरित्र चित्रण की दृष्टि से भी रामचरित मानस श्रेष्ठ ग्रंथ है। इसके सभी पात्रों का चरित्र महान् है। वे अलौकिक होते हुए भी लौकिक हैं। वे हमारे ही समान सुख-दुःख का अनुभव करने वाले और संवेदनशील हैं। श्रीराम का मर्यादा पूर्ण उदात्त चरित्र हमारे हृदय में एक आदर्श की सृष्टि करता है और हमें उनके चरणों में झुकने को विवश कर देता है। कौशल्या, सुमित्रा, भरत, हनुमान् आदि का निर्मल चरित्र व्यक्ति को नवीन प्रेरणा हैं। गोस्वामी जी रसों का वर्णन भी मानस में सुन्दर है। शृंगार का वर्णन भी ने बहुत ही सुन्दर और संयमित किया। जैसे कि-
कंकन किंकनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखत सन राम हृदय गुनि ॥
मनहु मदन दंदुभी दीन्ही। मनसा विश्व विजय कहुँ कीन्हीं।।
वियोग शृंगार का एक मार्मिक चित्र भी देखें –
मन-क्रम-वचन चरण अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।।
अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ही पयाना ।।
अलंकार, छन्द, शैली और भाषा की दृष्टि से भी मानस बहुत उत्तम रचना है। धनुष-यज्ञ के प्रसंग पर सीता के सौन्दर्य और भावों को व्यक्त करने वाले उत्प्रेक्षा अंलकार की एक छटा देखिए-
प्रभुहि चितै पुनि चितई महि। राजत लोचन लोल ।।
खेलत मनसिज मीन जुग । जनु विधु मंडल डोल ।।
उपसंहार
सारांशतः ‘रामचरित मानस’ एक सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ, धर्म ग्रंथ, नीतिशास्त्र ओर सदाचार-शास्त्र भी है। इसी कारण यह पुस्तक आज हिन्दू समाज के कुटिया से लेकर महलों तक रहने वालों में समान रूप से आदरणीय है। यह ग्रंथ परम आनन्द के साथ-साथ दुःख से सन्तप्त जनों को मानसिक शान्ति भी प्रदान करता है।
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