नागार्जुन का जीवन परिचय:- जनजीवन कवि और प्रसिद्ध समाजवादी और नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था, परन्तु पहले ये ‘यात्री’ नाम से लिखा करते थे। कालान्तर में बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर महात्मा बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य के नाम पर इन्होंने अपना नाम ‘नागार्जुन’ रख लिया। नागार्जुन का 30 जून 1911 ई० में बिहार राज्य के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। आरम्भिक जीवन अभावों से ग्रस्त रहा।
नागार्जुन का जीवन परिचय

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Nagarjun Ka Jeevan Parichay
मुख्य बिंदु | जानकारी |
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नाम | नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) |
जन्म | 30 जून, 1911 ई० |
जन्म स्थान | बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में |
मृत्यु | 5 नवम्बर, 1998 ई० |
कार्यक्षेत्र | अध्यापक, कवि |
रचनाएँ | ‘युगधारा’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘खून और शोले’, ‘प्रेत का ‘बयान’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘भस्मांकुर’ आदि। |
उपन्यास | ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘रतिनाथ की चाची’, ‘कुम्भीपाक’, ‘उग्रतारा’, ‘बलचनमा’, ‘दुःखमोचन’, ‘वरुण के बेटे’ आदि। |
नागार्जुन की शिक्षा-दीक्षा
घर की दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण इनकी शिक्षा-दीक्षा का समुचित प्रबन्ध न हो सका। गाँव की ही संस्कृत पाठशाला में इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई। जीवन के इन्हीं अभावों ने इन्हें शोषण के प्रति विद्रोह की भावनाओं से भर दिया, साथ ही जीवन में घटित दुःखद घटनाओं ने इन्हें मानवमात्र का दुःख समझने की क्षमता प्रदान की। ये घुमन्तू प्रवृत्ति के व्यक्ति थे; अतः देश-विदेश में घूमते हुए ये सन् 1936 ई० में श्रीलंका जा पहुँचे और वहाँ संस्कृत के आचार्य बन गये। स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
बौद्ध-धर्म की दीक्षा
श्रीलंका प्रवास में ही इन्होंने बौद्ध-धर्म की दीक्षा ले ली। सन् 1941 ई० में भारत लौट आये। अपने निर्भीक और कटुसत्य सम्भाषण के कारण नागार्जुनजी ने कई बार जेल यात्रा भी की। स्वतन्त्र भारत में भी इन्हें अपनी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण जेल जाना पड़ा। तत्कालीन सत्तासीन राजनैतिक दल की इन्होंने खुलकर आलोचना की; अतः इन्हें जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनकी जेल यात्राओं का एकमात्र प्रमुख कारण यही था। इनका निधन 87 वर्ष की अवस्था में 5 नवम्बर, 1998 ई० को हुआ।
विद्रोही कवि के रूप में
विद्रोही कवि नागार्जुनजी ने जीवन के कठोर यथार्थ एवं कल्पना पर आधारित अनेक कृतियों का सृजन किया। स्वयं अभावों में जीवन व्यतीत करने के कारण इनके हृदय में समाज के पीड़ित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव विद्यमान था। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करनेवाले व्यक्तियों के प्रति इनके मन में विद्रोह की ज्वाला भरी थी। सामाजिक विषमताओं, शोषण और वर्ग संघर्ष पर इनकी लेखनी निरन्तर आग उगलती रही।
अपनी कविताओं के माध्यम से इन्होंने दलित, पीड़ित और शोषित वर्ग को अन्याय, अनीति और अत्याचार का विरोध करने की प्रेरणा दी। अपने स्वतन्त्र एवं निर्भीक विचारों के कारण इन्होंने हिन्दी साहित्य जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी। समसामयिक राजनीति, प्रेम और प्रकृति-सौन्दर्य पर भी इनकी अनेक रचनाएँ बड़ी लोकप्रिय हुई। इनकी गणना वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकारों में की जाती है। प्रगतिवादी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
साहित्य के क्षेत्र में अवतरण
नागार्जुन समाजवाद की स्थापना का स्वप्न देखनेवाले, जीवन, जनता और श्रम के गीत गानेवाले यथार्थवादी कवि हैं। अपनी सनातन प्रासंगिकता के कारण इनकी रचनाओं को किसी ‘वाद’ की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। इनके स्वतन्त्र व्यक्तित्व को तरह इनकी रचनाएँ भी स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। सन् 1945 ई० में इनका साहित्य के क्षेत्र में अवतरण हुआ। अब तक इनकी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। इनकी प्रकाशित कृतियों में पहला वर्ग उपन्यासों का है और दूसरा वर्ग कविताओं का ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘नयी पौध’, ‘ बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुःखमोचन’ और ‘वरुण के बेटे’ इनके प्रसिद्ध उपन्यास है।
प्रारम्भिक काव्य-संकलन
‘युगधारा’ इनका प्रारम्भिक काव्य-संकलन है। ‘सतरंगे पंखोंवाली’ में प्रकृति का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘प्यासी पथराई आँखें’ तथा ‘खून और शोले’ आदि कविता-संग्रहों में प्रेम और प्रकृति-चित्रण से सम्बन्धित सुकुमार ओजस्वी कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं के माध्यम से इन्होंने समाज की व्यवस्था से जूझते, सर्वहारा वर्ग की व्यथा की करुण गाथा को व्यक्त किया है। ‘भस्मांकुर’ नागार्जुन का प्रसिद्ध पौराणिक खण्डकाव्य है। इसमें भस्मासुर की पौराणिक कथा को नये रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें स्थान-स्थान पर प्रेम, सौन्दर्य व प्रकृति के चित्र अत्यन्त सुन्दर रूप में चित्रित हुए हैं।
काव्य-सौन्दर्य
भाषा
नागार्जुन की भाषा सरल, सरस और हृदयस्पर्शी है उसमे ग्रामीण और देशज (आंचलिक) शब्दों का प्रयोग भी बिना किसी झिझक के हुआ है।
शैली
इन्होंने अपनी काव्य-रचनाओं में प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों को अपनाया है। इनकी शैली प्रायः प्रतीकात्मक और व्यंग्यप्रधान है। शैली में सरलता, स्पष्टता और प्रवाहमयता सर्वत्र दर्शनीय है।
दलित वर्ग के प्रति अपार संवेदना रखनेवाले नागार्जुन ने सदैव अपनी कविताओं में अत्याचार से पीड़ित और त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित की। इन्होंने इस वर्ग को अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा देकर उन्हें जीवन को संजीवनी देने का सराहनीय प्रयास किया। समसामयिक एवं राजनैतिक समस्याओं पर नागार्जुन कभी मौन नहीं रहे। शोषकों पर व्यंग्य करने में तो ये अद्वितीय थे। नागार्जुन की कविता जीवन के विष और जीवन के अमृत दोनों ही में आकण्ठ सराबोर कवि की कविता है।
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