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नानी का घर – नटखट लड़का गोनू नानी के घर की कहानी

नानी का घर: एक था गोनू। प्यारा, नटखट लड़का। वैसे तो वह बड़ा समझदार था पर एक दिन अपनी मां से जिद करने लगा- “मां, मैं नानी के घर जाऊंगा। मेरे सभी साथी नानी के घर जाते हैं, तुम मुझे कभी नहीं लेकर जाती। मैं तुम्हारे पास रहते-रहते उब गया हूं। बताओ ना, नानी कहां रहती हैं?”

नानी का घर

नानी का घर

मां बेचारी क्या कहती ! वह तो अनाथ थी। माता-पिता का घर तो क्या वह नाम भी नहीं जानती थी। पर यह सब बातें वह गोनू को नहीं बताना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि गोनू अभी से जीवन की कठोर सच्चाई को जाने। सो उसने झूठ-झूठ ही कह दिया-

“बेटा, तुम्हारी नानी तो बहुत दूर रहती हैं, नीले पर्वत के उस पार मैं और तुम तो वहाँ कभी नहीं पहुंच सकते। बड़ा कठिन रास्ता है। मैं बूढ़ी हूं और तुम बहुत छोटे हो जब तुम बड़े हो जाओगे तो वहां चले जाना। “

गोनू ने मां की बात बड़े ध्यान से सुनी और मन ही मन सोचा “मां मुझे बहुत छोटा और कमजोर समझती है, जैसे मैं दूध पीता बच्चा हूं। मैं भी माँ को दिखा दूंगा, मैं क्या हूं।’

दिन भर गोनू को चैन नहीं पड़ा। जैसे ही रात हुई, दिन की थकी-हारी मां सोने चली गई और गोनू को भी सोने को कह गई।

पर गोनू की आंखों में नींद कहाँ यह तो कुछ और ही सोच रहा था। मन ही मन उसने नानी के पास नीले पर्वत के पार जाने की योजना बना ली थी। एक छोटी-सी पोटली में दो जोड़ी कपड़े लिए मां ने उसके नाश्ते के जो लड्डू बनाए थे, वे भी रखे और चल पड़ा नानी से मिलने

चलते-चलते वह नीले पर्वत के उस पार पहुंच गया। वह काफी थक गया था और उसे भूख भी लगी थी सो खाने और विश्राम करने का ठिकाना ढूंढने लगा।

उसे आस-पास कोई घर नजर नहीं आया। ‘बड़ी अजीब हैं नानी, जो यहां अकेली सुनसान जगह में रहती हैं उसने सोचा। ढूंढते ढूंढते उसे एक झोंपड़ी नजर आई। वह झोंपड़ी के अंदर गया।

उस झोपड़ी में एक डायन रहती थी। गोनू ने उसे देखा तो डर गया। बड़े-बड़े पाँव चपटी नाक और रस्सी जैसे बाल !

डरते-डरते बोला- “मैं भूखा हूं, क्या कुछ खाने को मिलेगा?” वीराने में एक बच्चे को देखकर डायन बड़ी हैरान हुई और बोली “हो हो मिलेगा पर तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?”

गोनू ने उसे सारी बात बता दो बात सुनकर डायन बड़ी खुश हुई और बोली ” अरे बेटा, मेरे पास आ जाओ मेरी गोद में मैं ही तो हूँ तुम्हारी नानी” पर गोनू को तो उससे डर लग रहा था। उसने अपने दोस्तों की नानी को देखा था। कोई गोरी थी तो कोई काली पर ऐसी मानी तो किसी की नहीं थी।

‘जरूर दाल में कुछ काला है’ उसने सोचा। डायन भी उसकी बात को भांप गई। बोली- “बेटा क्या कहूं, एक बीमारी की वजह से मेरी यह हालत हो गई है। पर तुम डरो मत, में तुम्हें बहुत प्यार करूंगी। तुम आराम कर लो। कुछ ही देर में तुम्हें घुमाने ले जाऊंगी।’ गोनू झोंपड़ी के एक कोने में दुबककर लेट गया।

डायन गोनू को आया देखकर फूली नहीं समा रही थी। उसे कई दिन हो गए थे आदमी का मांस खाए। आज उसे घर बैठे ही अपना शिकार मिल गया था।

गोनू को सोया जान वह वहां से चली गई।

वहां से कुछ ही दूरी पर एक और झोंपड़ी थी जिसमें डायन अपना खाना पकाती थी। डायन उस झोंपड़ी में गई। चूल्हे पर कड़ाही रखी और उसमे तेल भरा। आग जलाकर उसे खूब गर्म किया। यह सब करके वह वापिस उसी झोंपड़ी में गोनू को लेने आई। शायद वह गोनू को तलकर खाना चाहती थी !

पर जैसे ही वह झोंपड़ी के अंदर गई तो यह देखकर बड़ी हैरान हुई कि गोनू वहां से गायब था। ‘कहाँ गया होगा’- वह सोचने लगी। उसकी नजरें चारों ओर उसे ढूंढने लगी।

उधर गोनू डायन से छिपते-छिपते काफी दूर निकल गया। वहां उसे काफी मकान और चहल-पहल दिखाई दी। वह जानता था कि डायन उसका पीछा कर रही होगी, सो वह एक मकान में छिप गया।

वह मकान एक बुरे आदमी का था। वह एक होटल चलाता था। उस होटल में काम करने के लिए उसके पास करीब दस छोटे-छोटे बच्चे थे। उसने गोनू को अपने घर में छुपा देखा तो वह समझ गया कि वह कोई भटका हुआ बच्चा है। वह गोनू को बड़े प्यार से बोला “बच्चे, चिन्ता मत करो यहां तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। आराम से रहो, खाओ पियो, बस बदले में थोड़ा-सा काम करना पड़ेगा।” यह कहकर वह गोनू को काम समझाने लगा। गोनू समझ गया कि यह कोई भला आदमी नहीं है। यह छोटे बच्चों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे रात दिन काम करवाता है।

“अभी तो मुझे नींद आ रही है, सुबह मैं सारा काम कर लूंगा” गोनू ने कहा।

“ठीक है, अभी तुम सो जाओ” कहकर उस आदमी ने गोनू को सोने की जगह बता दी।

गोनू सोने का नाटक करने लगा। कुछ ही देर में जब सब सो गए तो वह दबे पांव वहाँ से भाग गया। भागते-भागते वह काफी थक गया था। ‘कहाँ जाऊं, क्या करूं’ अभी वह यह सोच ही रहा था कि उसकी नजर सामने एक मंदिर पर पड़ी।

‘अरे वाह! कितना सुंदर मंदिर है। उसे याद आया ऐसा मंदिर तो उसके गांव में भी है और पास में फूलों की दुकान, फिर पनवाड़ी की फिर कपड़े की। “अरे! यह तो बिल्कुल हमारे गांव जैसा ही है। अरे, मैं भी कितना बेवकूफ हूं जो अपने गांव को नहीं पहचान रहा” वह खुशी से चिल्लाया, “मैं वापिस अपने गांव आ गया हूं।”

वहां से भागा भागा वह अपने घर गया और मां के चरणों में गिर पड़ा। रोते-रोते बोला, “मां मां तुम ही सबसे अच्छी हो। मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। तुम ही मेरी मां हो, नानी हो, सब कुछ हो।”

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