नशा बन्दी पर निबंध:- समाज सुधारकों, धर्माचार्यों तथा अन्य विवेकीजनों ने समय-समय पर समाज की जिन दुष्पवृत्तियों की निन्दा की है और जिन्हें पाप समझकर त्याज्य बताया है, मदिरापान उनमें से प्रमुख है। मदिरापान सामान्य पाप नहीं, अपितु वह सभी पापों से बढ़कर है। इसको स्पष्ट करते हुए कहा है नशा मुक्ति पर निबंध कि-
नशा बन्दी पर निबंध

एकतश्चतुरो वेदाः ब्रह्मचर्य तथैकतः।
एकतः सर्व पापानि मद्यपानं तथैकतः।
मदिरापान की इस बुराई को समझते हुए मद्य-निषेध आन्दोलन को स्वाधीनता संग्राम का ही एक भाग मानते हुए महात्मा गाँधी ने कहा था- “मैं भारत में कुछ हजार शराबी देखने की अपेक्षा देश को अत्यधिक निर्धन देखना पसन्द करूंगा। पूर्ण मद्य निषेध के लिए सारा देश अनपढ़ भी रह जाये तो भी नशाबन्दी के उद्देश्य के लिए यह कोई मूल्य नहीं।”
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मदिरापान के दुष्परिणाम
मद्यपान ऐसी दुष्प्रवृत्ति है जो व्यक्ति का सब प्रकार से पतन कर देती है। मदिरापान का मद्यप (शराबी) पर होने वाले प्रभाव को हम सब जानते हैं। कहा भी गया है-
अयुक्तं बहु भाषन्ते यत्र कुत्रापि शेरते।
नग्नाः विक्षिप्य गात्राणि बालका इव मद्यपाः।
अर्थात् वे (शराबी) अनुचित और बहुत बोलते हैं, जहाँ कहीं-सड़क पर, नाली में सो जाते हैं और नंगे होकर फिरते हैं और अश्लील चेष्टाएँ करते हैं। मदिरा पीने वालों में लज्जा तो नाम की नहीं होती। मदिरा पीकर मद्यप अपने शरीर का ही नहीं, बुद्धि और आत्मा का भी नाश कर लेते हैं। शराब पीने से शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। आजकल हृदय गति रुकने के जो मामले सामने आते हैं, उनमें ऐसे लोग बड़ी संख्या में होते हैं, जो अत्यधिक मात्रा में मन्दिरा पान करते हैं।
मद्यपान का प्रभाव मद्यप पर तो पड़ता ही है, उसक परिवार पर भी पड़ता है। मदिरापायी अपनी आय का बहुत बड़ा भाग मदिरा पर ही लगा देता है। फलतः परिवार का निर्वाह नहीं हो सकता। इससे पत्नी व पति में अनबन रहती है। शराबी अपनी पत्नी को बुरी तरह पीटता भी है। साथ ही उसकी सन्तान भी अशिक्षित रह जाती है।
अनेक दुर्व्यसनों की जनक
जो व्यक्ति व्यसन के रूप में मदिरा पान (नशा बन्दी पर निबंध) करते हैं, वे इसके साथ कई दुर्व्यसनों में भी फँस जाते हैं। मुरा है तो उसके आनन्द के लिए सुन्दरी भी चाहिए। जब सुन्दरी है तो कुछ जुए का मजा लेना ही चाहिए। जुए में हार गए तो घर का दिवाला निकालिए। निर्धन लोगों की स्थिति तो शराब पीने से और भी अधिक दयनीय हो जाती है। वे बढ़िया शराब खरीद नहीं सकते। अतः घटिया शराब खरीदते हैं। जो स्वच्छ नहीं होती और जिसमें विष की मात्रा बढ़ जाती है।
इसके पीने से पीने वाले मौत के शिकार हो जाते हैं। समाचार पत्रों में प्रायः पढ़ने को मिलता है कि विषैली शराब पीने से पचास आदमी मर गए या सौ व्यक्तियों का प्राणान्त हो गया। दिल्ली, गुजरात, मद्रास, आन्ध्र और उड़ीसा में ऐसी दुर्घटनाएँ कई बार हो चुकी हैं। वस्तुतः शराब मस्तिष्क के तन्तुओं को कुण्ठित कर देती है, जिससे मद्यप की विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है। इसीलिए मदिरा को सभी विवेकीजन बुरा मानते हैं।
मदिरा पान का फैशन
मदिरापान के उक्त दुष्परिणामों को स्पष्टतः जानते हुए भी आज समाज में मदिरापान एक फैशन बन गया है। धनवान् और समर्थ लोग ही नहीं, मध्यम श्रेणी के लोगों की पार्टियाँ और समारोह इस शराब के बिना अधूरे ही समझे जाते हैं। बड़े-छोटे सभी नगरों में विवाह के अवसरों पर जब तब नवयुवक शराब पीकर झूम नहीं लेते, तब तक उस विवाह का आनन्द ही नहीं माना जाता। नवयुवक ही नहीं, अधेड़ व बूढ़े लोग भी लालपरी की चुस्की लेने में पीछे नहीं रहते। आज नगरों के क्लबों, होटलों और रेस्तराओं में शराब की बिक्री बढ़ती जा रही है, घट नहीं रही है। न केवल नगरों में, अपितु छोटे कस्बों और गाँवों में भी यह रोग पूरी तरह फैल गया है।
अन्य मादक द्रव्यों का प्रचलन
आज शराब का ही नहीं, बल्कि गाँजे, चरस, अफीम तथा अन्य नशीली गोलियों और स्मैक का प्रयोग भी धड़ल्ले से बढ़ रहा है। समाज के तरुण वर्ग पर, विशेषकर छात्र-छात्राओं पर इनके सेवन का बहुत ही कुप्रभाव पड़ रहा है। स्मैक के कारण हजारों नवयुवक-नवयुवतियों का जीवन नष्ट हो रहा है। ब्राउन शुगर, हिरोइन आदि की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है और चोरी-छुपे खूब बिक रही है।
मद्यपान का विरोध
मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों की इन्हीं बुराइयों के कारण समाज-सुधारकों ने समय-समय पर इसके विरुद्ध आवाज उठाई है। महात्मा गाँधी जी ने तो ‘मद्य-निषेध आन्दोलन’ को स्वाधीनता आन्दोलन का भाग मानकर ही चलाया था। इसके विरुद्ध शराब की दुकानों पर धरने दिए थे, पर लगता है, वह सब व्यर्थ रहा।
मद्य निषेद्य का सरकारी प्रयास
मद्यपान से होने वाली बुराइयों को देखकर सरकार ने बारह सूत्री मद्य-निषेध कार्यक्रम की घोषणा की थी। जिसके अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर मदिरा पान का निषेध, मदिरापान के विज्ञापनों का निषेध, स्कूल-कालेज, धार्मिक स्थानों के आसपास मदिरालयों का निषेध, वेतन मिलने के दिन मदिरा विक्रय का निषेध आदि व्यवस्था के साथ ही मदिरा की बुराइयों के अधिकाधिक प्रचार की व्यवस्था की। कुछ राज्य सरकारों ने मद्यपान निषेध के कानून भी बनाए, पर ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।’
उपसंहार
सरकारी प्रयत्न भी तब तक सफल नहीं होंगे, जब तक मदिरा तथा अन्य मादक द्रव्यों के प्रति समाज में घृणा न होगी। अतः सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संस्थाओं को भी उसके विरुद्ध वातावरण बनाना होगा। लोगों में जागृति लानी होगी। ताकि लोग मदिरा के दुष्परिणामों से सदा के लिए सुरक्षित हो जाएँ।
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