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नक्सलवाद की समस्या पर निबंध | Naxalism Problem Essay in Hindi

नक्सलवाद की समस्या पर निबंध:- “नक्सलवाद आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।” आन्तरिक सुरक्षा पर मुख्यमन्त्रियों के सम्मेलन में प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 7 फरवरी, 2010 को यह वक्तव्य दिया था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के प्रधानमन्त्री को आखिर किन परिस्थितियों से बाध्य होकर यह वक्तव्य देना पड़ा, यह आज हिन्दुस्तान में किसी से भी छिपा नहीं है।

जिस तरह से नक्सलवादी निरन्तर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। उस दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रधानमन्त्री का यह कथन बिल्कुल सही है। यदि नक्सलवाद की समस्या का शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो निश्चित रूप से यह देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित होगा। Naxalism Problem Essay in Hindi.

नक्सलवाद की समस्या पर निबंध

नक्सलवाद की समस्या पर निबंध

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भारत में नक्सलवाद की शुरूआत स्वाधीनता संग्राम से पहले ही हो चुकी थी, जो साम्यवादी या अन्य क्रान्तिकारी विचारधारा के रूप में यहाँ अपनी जड़ें जमा चुका था, किन्तु इसे यह नाम पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी नामक स्थान से मिला। मार्च 1967 में इस गाँव के एक आदिवासी किसान बियल किसन के खेत पर स्थानीय भू-स्वामियों ने अधिकार कर लिया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप उस क्षेत्र के आदिवासियों ने भू-स्वामियों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर दिया।

इस विद्रोह को साम्यवादी क्रान्तिकारियों का मारी समर्थन मिला। धीरे-धीरे इस तरह के विद्रोह भारत में अन्य जगहों पर भी होने लगे और उन्हें नक्सलवाड़ी में हुए ऐसे प्रथम विद्रोह के नाम पर नक्सलवादी विद्रोह का नाम दिया गया। इस तरह विद्रोह के एक नए रूप नक्सलवाद का प्रादुर्भाव हुआ। नक्सलवाद मार्क्सवादी एवं माओवादी सिद्धान्तों से प्रभावित है। मार्क्सवाद जहाँ साम्यवादी विचारधारा को बढ़ावा देता है वहीं माओवाद अपने हक के लिए सशस्त्र क्रान्ति पर जोर देता है।

माओ चीन के सशस्त्र क्रान्ति के प्रसिद्ध नेता थे, जिनका मानना था कि राजनीतिक सत्ता बन्दूक की नली से निकलती है। इस तरह नक्सलवाद भू-स्वामियो के विरुद्ध आदिवासियों का एक ऐसा सशस्त्र विद्रोह है, जो अपनी मार्क्सवादी विचारधारा को लागू करने के लिए माओवादी तरीकों को अपनाने पर जोर देता है।

नक्सलवाद को शुरू में ‘कन्हाई चटर्जी’ नामक साम्यवादी का साथ मिला, किन्तु भू-स्वामियों के खिलाफ आदिवासियों के सशस्त्र विद्रोह को लेकर साम्यवादियों में मतभेद थे, इसलिए कन्हाई चटर्जी के समर्थकों, जो सशस्त्र विद्रोह के पक्षधर थे, ने मिलकर मई 1969 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया। इस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में कानू सान्याल एवं चारु मजूमदार के नाम उल्लेखनीय है।

प्रारम्भ में यह विद्रोह पश्चिम बंगाल तक सीमित था, किन्तु धीरे-धीरे यह उड़ीसा, बिहार, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में भी फैल गया। पहले इसका उद्देश्य अपने वास्तविक हक की लड़ाई था, किन्तु अब यह बहुत ही हिंसक विद्रोह के रूप में देश के लिए एक गम्भीर समस्या एवं चुनौती बन चुका है।

2009 के एक आँकड़े के अनुसार, नक्सली देश के 20 राज्यों के 220 जिलों में सक्रिय हैं तथा भारतीय खुफिया एजेन्सी ‘रॉ’ के अनुसार वर्ष 2009 में पूरे देश में 56 नक्सल गुटों के लगभग 20000 नक्सली कार्यरत थे जिसमें लगभग 10000 सशस्त्र नक्सली कैडर सैन्य प्रशिक्षित थे। एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में लगभग 31000 लोग नक्सलवादी गतिविधियों में लिप्त हैं तथा लगभग चालीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इनके कब्जे में है। ये लोग करीब ₹1400 करोड़ हर साल रंगदारी के माध्यम से बसूलते हैं।

हर विद्रोह के पीछे कुछ-न-कुछ कारण होते हैं। नक्सलवादी आन्दोलन जो पहले अपने हक की लड़ाई के रूप में आरम्भ हुआ था वह आज यदि सशस्त्र आतंकवाद का रूप ले चुका है, तो इसके पीछे कुछ कारण भी है-

  • आदिवासी बहुल इलाके विकास से कोसों दूर हैं। यहाँ तक कि वहाँ प्राथमिक विद्यालय एवं अस्पताल की बात तो दूर शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ पक्की सड़कें अभी तक नहीं बनाई जा सकी है जिसके कारण ये क्षेत्र मुख्य क्षेत्रों से एक तरह से कटे हुए हैं।
  • आदिवासी पहले पूर्णतः वनों पर निर्भर थे। वन उन्मूलन एवं अवैध कारोबारियों द्वारा वनों पर कब्जा करने के कारण उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
  • आदिवासी क्षेत्रों में निर्धनता, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण और अज्ञानता के कारण भी नक्सलवाद को बढ़ावा मिला है अथवा कुछ स्वार्थी लोग उन्हें दिग्भ्रमित कर अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे हैं।
  • यद्यपि भारत सरकार ने दलितों, आदिवासियों एवं कृषक समुदाय के हितों के संरक्षण हेतु कई कानून पारित किए हैं, किन्तु अब तक उन्हें समुचित रूप से लागू नहीं किया जा सका है।
  • भू-स्वामियों का भूमि पर अवैध कब्जा एवं सूदखोर महाजनों द्वारा आदिवासियों एवं दलितों का शोषण भी नक्सलवाद को बढ़ाने के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।

नक्सलवाद किस तरह देश के लिए खतरा बन चुका है, इसका प्रमाण सिर्फ वर्ष 2010 में फरवरी से मई तक के चार महीने में हुई इन घटनाओं से मिल जाता है-

  • 13 फरवरी, 2010 को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले में सिल्डा में ईस्ट फ्रन्टियर राइफल्स के कैम्प पर हमला करके नक्सलियों ने 20 जवानों को मौत की नींद सुला दिया।
  • 4 अप्रैल, 2010 को उड़ीसा के कोरापुत जिले में माओवादियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट किया, जिसमें नक्सल विरोधी दल विशेष कार्रवाई समूह के 11 जवानों की मौत हो गई।
  • 6 अप्रैल, 2010 को छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने सी.आर.पी.एफ. के 76 जवानों को मार डाला।
  • 17 मई, 2010 को दन्तेवाड़ा में ही नक्सलियों ने एक बस को उड़ा दिया, जिसमें 15 पुलिसकर्मी एवं 20 स्थानीय नागरिक मारे गए।
  • 29 मई, 2010 को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को नक्सलियों ने पटरी से उतार दिया, जिसके कारण हुई ट्रेन दुर्घटना में 148 से अधिक यात्री मारे गए।

एक वर्ष के केवल चार महीने के भीतर नक्सलवादियों ने जिन खतरनाक गतिविधियों को अंजाम दिया, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नक्सलवाद की समस्या का शीघ्र समाधान कितना आवश्यक हो गया है। नक्सलवादी भारतीय रेलों, सरकारी बसों, सड़कों, पुलों, सरकारी विद्यालयों, सरकारी अस्पतालों, पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों के कैम्प और उनके काफिलों को प्रायः निशाना बनाते हैं।

नक्सली आदिवासी बहुल गाँवों में जाकर प्रत्येक परिवार से एक बच्चे, किशोर, युवक या युवती को अपने सशस्त्र संगठनों में जबरदस्ती मर्ती करते हैं या बेरोजगारी, अशिक्षा, भूख, गरीबी इत्यादि का लाभ उठाते हुए उन्हें अपने साथ जोड़ लेते हैं। नक्सलवादी आज अत्याधुनिक लैपटॉपों, कम्प्यूटरों, मोबाइल एवं फोनों से लैस हो चुके हैं तथा अपने खर्चों के लिए वे लोगों से रंगदारी भी वसूलते हैं।

अब नक्सलवाद आतंकवाद का रूप ले चुका है, इसलिए इसका शीघ्र समाधान आवश्यक है। नक्सलवाद की समस्या का सही समाधान यही हो सकता है कि जिन कारणों से इसमें वृद्धि हो रही है, उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाए। इसमें आदिवासी इलाकों के विकास से लेकर आदिवासी युवक-युवतियों को रोजगार मुहैया कराने जैसे कदम अत्यधिक कारगर साबित होंगे।

कुछ इलाकों में आदिवासी अपने हक के लिए भी लड़ रहे हैं। ऐसे इलाकों की पहचान कर उन्हें उनका अधिकार प्रदान करना अधिक उचित होगा। कुल मिलाकर यहीं निष्कर्ष निकलता है कि नक्सलवाद की समस्या के समाधान के लिए एक व्यापक रणनीति बनाते हुए आदिवासी इलाकों का विकास करना अत्यन्त आवश्यक है।

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