पंचवर्षीय योजना क्या है:- भारतीय योजनाओं के लक्ष्य और उद्देश्य संविधान में निहित राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों से तय होते हैं। इनके अनुसार, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात आर्थिक विकास के लिए मिश्रित नियोजन प्रणाली को चुना गया, जिसमें आर्थिक नियोजन को प्रमुख स्थान दिया गया।
प्रथम आठ पंचवर्षीय योजनाओं (Panchvarshiya Yojana Kya Hai) में सार्वजनिक क्षेत्र के दायरे को बढ़ाने पर जोर दिया गया था। इसके तहत बुनियादी और भारी उद्योगों में बड़ी मात्रा में निवेश किया गया। परंतु, नौवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 1997) के प्रारंभ से ही सार्वजनिक क्षेत्र पर कम जोर देते हुए, इसके निर्देशात्मक स्वरूप को अपनाया गया।
पंचवर्षीय योजना क्या है

पंचवर्षीय योजना
पंचवर्षीय योजना | वर्ष |
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प्रथम पंचवर्षीय योजना | 1951-1956 |
द्वितीय पंचवर्षीय योजना | 1956-1961 |
तृतीय पंचवर्षीय योजना | 1961-1966 |
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना | 1969-1974 |
पांचवीं पंचवर्षीय योजना | 1974-1979 |
छठी पंचवर्षीय योजना | 1980-1985 |
सातवीं पंचवर्षीय योजना | 1985-1990 |
आठवीं पंचवर्षीय योजना | 1992-1997 |
नौवीं पंचवर्षीय योजना | 1997-2002 |
दसवीं पंचवर्षीय योजना | 2002-2007 |
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना | 2007-2012 |
बारहवीं पंचवर्षीय योजना | 2012-2017 |
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प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)
वर्ष 1951 में बड़े पैमाने पर अनाज की कमी, शरणार्थियों का प्रवेश तथा अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव को देखते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में सिंचाई, बिजली, कृषि, मूल्य स्थिरीकरण के साथ-साथ शरणार्थियों के पुनर्वासन को प्राथमिकता दी गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना हैरोड-डोमर मॉडल पर आधारित थी।. सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा भी प्रथम पंचवर्षीय योजना की ही देन है। प्रथम पंचवर्षीय योजना में 2.1% लक्ष्यित वृद्धि की तुलना में वास्तविक वृद्धि 3.6% की रही । योजना के अंतिम दो वर्षों में अच्छे उत्पादन के कारण यह योजना सफल रही।
प्रथम पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- कृषि क्षेत्र के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता।
- देश के विभाजन तथा युद्ध से उत्पन्न असंतुलन को दूर करना।
- न्यूनतम समय में खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति ।
- लघु एवं कुटीर उद्योगों का पुनरुद्धार तथा औद्योगीकरण हेतु वांछित पृष्ठभूमि तैयार करना।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)
विकास की एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देने की कोशिश की गई, जिससे समाजवादी व्यवस्था की स्थापना हो सके। यह योजना पी.सी. महालनोबिस द्वारा विकसित चार क्षेत्रीय मॉडलों पर आधारित थी। इस योजना में आधारभूत तथा भारी उद्योगों के विकास पर विशेष बल के साथ देश के तीव्र औद्योगीकरण को प्रमुख लक्ष्य माना गया। द्वितीय योजना में लक्ष्यित विकास दर 4.5% थी, परंतु वास्तविक वृद्धि दर 4.3% रही, इसी योजना में राउरकेला (ओडिशा), भिलाई (छत्तीसगढ़) तथा दुर्गापुर (प. बंगाल) इस्पात संयंत्रों की स्थापना हुई। यह योजना भी सामान्य रूप से सफल रही।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- राष्ट्रीय आय में 25% की वृद्धि करना।
- आधारभूत और भारी उद्योगों पर विशेष जोर देकर तीव्र औद्योगीकरण करना।
- रोजगार अवसरों में बड़े पैमाने पर प्रसार।
- आय और धन की असमानता में कमी करना और आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण करना।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66)
भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर तथा स्वतः स्फूर्त बनाने के लक्ष्य के साथ प्रारंभ हुई। यद्यपि इस योजना में किसी मॉडल का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, तथापि इस योजना पर महालनोबिस के चार क्षेत्रीय मॉडलों तथा जे. सैंडी एवं सुखमय चक्रवर्ती के नियोजन मॉडल का प्रभाव देखा जा सकता है। इस योजना में पुनः कृषि पर सर्वाधिक बल दिया गया। इस पंचवर्षीय योजना में लक्ष्यित विकास दर 5.6% के विरुद्ध केवल 2.8% की वृद्धि दर प्राप्त हुई, जो अत्यंत निराशाजनक कही जा सकती है। तीसरी योजना अवधि में भारत-चीन युद्ध 1962, भारत-पाक युद्ध 1965 तथा 1965-66 के सूखे जैसी अवांछनीय घटनाएं घटीं, जिस कारण इस योजना के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका।
तृतीय पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- राष्ट्रीय आय में प्रति वर्ष 5% से अधिक की वृद्धि करना।
- खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना तथा उद्योगों और निर्यात की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन को बढ़ाना।
- बुनियादी उद्योगों जैसे- इस्पात, रसायन, ईंधन और बिजली के क्षेत्र का विस्तार तथा मशीन निर्माण की क्षमता स्थापित करना।
- अवसर की समानता में वृद्धि एवं आर्थिक विकास का समान वितरण करना।
- देश की मानवीय शक्ति का पूर्ण प्रयोग एवं रोजगार अवसरों में वृद्धि करना।
वार्षिक योजनाएं
वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध, लगातार दो वर्षों का घोर सूखा, मुद्रा का अवमूल्यन, आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा योजना के लिए संसाधनों में कमी के कारण चौथी पंचवर्षीय योजना को अंतिम रूप देने में देरी हुई। वर्ष 1966 से 1969 के बीच चौथी योजना के प्रारूप के तहत ही तीन वार्षिक योजनाएं बनाई गई। इस अवधि को योजनावकाश भी कहा जाता है। पंचवर्षीय योजना क्या है
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74)
कृषि उत्पादन तथा विदेशी सहायता में अनिश्चितता की स्थिति को को बढ़ाना था। दूर करते हुए विकास की गति इस योजना का प्रारूप योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी. आर. गाडगिल ने तैयार किया। यह योजना अशोक रुद्र तथा एलन एस. माने द्वारा तैयार ओपेन कांसिस्टेंसी मॉडल (लियोंतीफ का आगत-निर्गत मॉडल) पर आधारित था तथा इसमें 30 क्षेत्र लिए गए। गाडगिल रणनीति का संबंध इसी योजना से है। चौथी योजना में ही 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969), MRTP Act, 1969 तथा बफर स्टॉक की धारणा लागू हुई। इस योजना में समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के जरिए जीवन स्तर को उठाने की कोशिश की गई। इस योजना में विकास दर का लक्ष्य 5.7% तय किया गया, जबकि वास्तविक विकास दर मात्र 3.3% रही। परिवार नियोजन कार्यक्रम का क्रियान्वयन इस योजना के मुख्य लक्ष्यों में से एक था।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- स्थिरता के साथ आर्थिक विकास एवं आत्मनिर्भरता की प्राप्ति।
- राष्ट्रीय आय एवं रोजगार अवसरों में वृद्धि।
- आय एवं संपत्ति का समान वितरण तथा क्षेत्रीय असमानता में कमी।
- संतुलित विकास पर जोर।
- द्रुतगति से औद्योगिक विकास तथा आधारभूत एवं भारी उद्योगों पर विशेष बल।
पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79)
मुद्रास्फीतिक दबाव की पृष्ठभूमि में बनाई गई पांचवीं पंचवर्षीय योजना में 66 क्षेत्र लिए गए थे। पांचवीं योजना के दौरान योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रो. डी.टी. लकड़ावाला थे। इस योजना को जनता पार्टी की सरकार ने समय से एक वर्ष पूर्व ही समाप्त घोषित कर दिया और छठी योजना (1978-83) लागू किया जिसे ‘अनवरत योजना’ (Rolling Plan) का नाम दिया गया। अनवरत योजना का प्रतिपादन गुन्नार मिर्डल ने किया था तथा इसे लागू करने का श्रेय डी.टी. लकड़ावाला को है।
पांचवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- इस योजना के दो प्रमुख उद्देश्य ‘गरीबी हटाओ’ तथा ‘आत्मनिर्भरता की प्राप्ति थी।
- इसमें मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और आर्थिक स्थिरता हासिल करने को उच्च प्राथमिकता दी गई।
- इस योजना में पहली बार गरीबी हटाओ का नारा दिया गया।
- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, जिसमें प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं, पोषण, भूमिहीनों को घर, ग्रामीण सड़कें, ग्रामीण विद्युतीकरण आदि सम्मिलित हैं।
- इस योजनावधि में आयात प्रतिस्थापन एवं निर्यात संवर्धन की नीति तथा न्यायपूर्ण मजदूरी कीमत नीति भी अपनाई गई।
- पांचवीं योजना के अंतर्गत लक्ष्यित विकास दर 4.4% के विरुद्ध वास्तविक वृद्धि दर 4.8% प्राप्त हुई।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)
वर्ष 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी, उसने विकेंद्रित नियोजन की धारणा को लागू किया। जनता पार्टी सरकार द्वारा पांचवीं योजना को समय से एक वर्ष ही समाप्त घोषित कर छठी योजना (1978-83) लागू की गई। परंतु जल्द ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई और कांग्रेस पार्टी वर्ष 1980 में पुनः सत्ता में आई। उसने छठी योजना को पुनः व्यवस्थित कर 1 अप्रैल, 1980 से 31 मार्च, 1985 तक के लिए लागू किया। अतः 1 अप्रैल, 1979 से 31 मार्च, 1980 तक की अवधि को ‘योजनावकाश’ माना गया।
छठी पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- छठी योजना में गरीबी निवारण तथा रोजगार सृजन पर विशेष बल दिया गया। यद्यपि गरीबी निवारण को प्राथमिकता पांचवीं योजना में ही मिल गई थी, पर छठी योजना में गरीबी निवारण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए गए।
- इस योजना में रोजगार सृजन को गरीबी निवारण कार्यक्रमों के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- ग्रामीण बेरोजगारी के उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रम IRDP, NREP, TRYSEM, DWACRA, RLEGP छठी योजना में ही लागू किए गए।
- यह योजना भी आगत-निर्गत मॉडल पर आधारित थी।
- इसी योजना में लकड़ावाला समिति ने ‘गरीबी निर्देशांक’ तैयार किया था, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400/ कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी की अनुपलब्धता को गरीबी मापक के रूप में परिभाषित किया गया।
- छठी योजना 15 वर्ष की दीर्घ अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई, अत: इसे ‘Perspective Planning’ भी कहा जाता है। → गरीबी निवारण, आर्थिक विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता तथा सामाजिक न्याय योजना के प्रमुख उद्देश्य थे।
- अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण को पहली बार छठी योजना में ही अपनाया गया था।
- इस योजना के अंतर्गत लक्ष्यित विकास दर 5.2% थी, जबकि वास्तविक वृद्धि दर 5.7% रही।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)
यह योजना दीर्घकालीन विकास युक्तियों पर जोर देते हुए उदारीकरण पर बल देने वाली थी। गरीबी, बेरोजगारी तथा क्षेत्रीय विषमता की समस्याओं पर प्रत्यक्ष प्रहार करना सातवीं योजना की विकास रणनीति थी। इस योजना का लक्ष्य अनाज के उत्पादन तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता एवं सामाजिक न्याय की मूलभूत अवधारणाओं के तहत विकास करना था।
सातवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- आधुनिकीकरण।
- खाद्यान्न के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि ।
- समता एवं न्याय पर आधारित सामाजिक प्रणाली की स्थापना।
- एक स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था का रूपांतरण।
- पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संरक्षण।
- ऊर्जा संरक्षण एवं गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का विकास।
- यह एक सफल योजना रही। इसमें लक्ष्यित विकास दर 5% के विरुद्ध वास्तविक वृद्धि दर 6.0% प्राप्त हुई।
वार्षिक योजनाएं
तात्कालिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप आठवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1992 से शुरू हो सकी। वर्ष 1990-91 तथा 1991 92 के लिए अलग वार्षिक योजना तैयार की गई। आठवीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिगत तैयार की गई इन वार्षिक योजनाओं में मुख्य रूप से रोजगार सृजन और सामाजिक परिवर्तन पर बल दिया गया। पंचवर्षीय योजना क्या है
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)
ढांचागत समायोजन और दीर्घ स्थिरीकरण नीतियों के शुरू करने के तुरंत बाद शुरू की गई। यह योजना ‘जॉन डब्ल्यू. मुलर’ मॉडल पर आधारित थी।
आठवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- मानव संसाधन विकास।
- शताब्दी के अंत तक पूर्ण रोजगार सृजित करना।
- जनता के सहयोग, प्रेरणाओं तथा हतोत्साहन की योजनाओं द्वारा जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण ।
- प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण तथा 15-35 वर्ष की आयु समूह में निरक्षरता का उन्मूलन।
- अवस्थापना (ऊर्जा, परिवहन, संचार, सिंचाई आदि) को सुदृढ़ करना।
- पेयजल तथा प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा का सार्वभौमीकरण।
- खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने तथा निर्यात के लिए आधिक्य सृजित करने के लिए कृषि विकास तथा कृषि का विविधीकरण।
- इस योजना का लक्ष्यित विकास दर 5.6% थी, जबकि वास्तविक वृद्धि 6.8% रही।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
तीव्र आर्थिक संवृद्धि तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार के बीच के संबंध को स्वीकार किया गया। इसमें सात बुनियादी न्यूनतम सेवाओं जिनमें सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा, बेघर के लिए घर, बच्चों के लिए पोषक आहार, सभी गांवों व बस्तियों के लिए सड़क तथा गरीबों के लिए सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को बेहतर बनाना शामिल था, पर बल दिया गया। इस योजना का लक्ष्य राजकोषीय समेकन की नीति लागू करना भी था, ताकि केंद्र एवं राज्यों के राजस्व घाटे को कम किया जा सके। ‘सामाजिक न्याय तथा समता’ के साथ आर्थिक विकास नौवीं पंचवर्षीय योजना का प्रमुख उद्देश्य था।
नौवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- गरीबी उन्मूलन और पर्याप्त उत्पादक रोजगार का सृजन करने के लिए कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
- मूल्यों को स्थिर रखते हुए आर्थिक विकास की दर में वृद्धि।
- सभी लोगों (विशेषकर गरीबों) को खाद्यान्न व पोषण सुरक्षा प्रदान करना।
- जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करना।
- विकास की प्रक्रिया में प्रत्येक स्तर पर सामाजिक गतिशीलता तथा जनता की भागीदारी के द्वारा पर्यावरण संरक्षण।
- स्त्रियों तथा सामाजिक दृष्टि से कमजोर तथा कम लाभान्वित होने वाले वर्गों को मजबूत बनाना ।
- संस्थाएं जिसमें जनसंख्या की भागीदारी अधिक हो जैसे पंचायती राज, सहकारी संस्थाएं आदि को मजबूत करना।
- आत्मनिर्भरता के प्रयास को सुदृढ़ करना।
- इस पंचवर्षीय योजना में 6.5% के लक्ष्यित वृद्धि की तुलना में वास्तविक वृद्धि 5.4% ही रही।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007)
अधिक व्यापक आगत-निर्गत मॉडल पर आधारित दसवीं पंचवर्षीय योजना ऐसे समय में लागू की गई, जब अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुधारों का दौर अपने चरम पर था। 7.6% की वास्तविक वृद्धि वाली यह महत्वाकांक्षी योजना कई कारणों से विशिष्ट थी। दसवीं योजना की कूटनीति दो आधारभूत तत्वों पर आधारित थी – (i) विगत वर्षों में प्राप्त उपलब्धियों को अक्षुण्ण बनाए रखते हुए इन्हीं पर आगे का विकास करना। (ii) विगत वर्षों में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के विकास में आई बाधाओं को प्राथमिकता के आधार पर दूर करना। पंचवर्षीय योजना क्या है
दसवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य
- बढ़ते हुए क्षेत्रीय असंतुलनों पर चिंता जताते हुए समान क्षेत्रीय विकास का लक्ष्य तय किया गया तथा इस पर आवश्यक ध्यान देने के लिए राज्यवार लक्ष्य भी निर्धारित किए गए।
- आर्थिक संवृद्धि में गरीबी को कम करने की प्रबल शक्ति होती है, तथापि यह आवश्यक है। कि विकास की कार्य-नीति इस प्रकार बनाई जाए कि वह समता तथा सामाजिक न्याय को स्थापित करने में प्रत्यक्ष रूप से प्रभावशाली हो। इसलिए दसवीं योजना में त्रिमुखी कार्य-नीति अपनाई गई-
- योजना में कृषि को महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया गया, क्योंकि कृषि क्षेत्र के विकास में लाभ को व्यापक रूप से फैलाने की सर्वाधिक शक्ति है।
- उन क्षेत्रों का तीव्र विकास सुनिश्चित किया गया, जो लाभप्रद रोजगार के अवसर सृजित करने वाले थे।
- ऐसे लक्ष्यित समूहों जो सामान्य संवृद्धि प्रक्रिया से पर्याप्त रूप से लाभान्वित नहीं हो सके, के संबंध में पूरक कार्यक्रमों पर बल ।
- वास्तविक वृद्धि दर (7.6%) यद्यपि अपने लक्ष्य (8.0%) से कम रही, तथापि यह अब तक की सर्वाधिक वृद्धि थी।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)
आर्थिक विकास के साथ समावेशी विकास करना था, जिससे कि विकास की धारा के साथ सबको जोड़ा जा सके तथा आर्थिक विकास का लाभ सभी तक वितरित हो। इस योजना अवधि के दौरान 9% विकास दर का लक्ष्य रखा गया था, जबकि वास्तविक प्राप्ति 8% की हुई। इस योजना में गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिलाओं और बच्चों के विकास, अधोसंरचना और पर्यावरण से संबंधित कार्य संपादन के प्रदर्शन का आकलन करने हेतु 26 सूचक बनाए गए थे। ग्यारहवीं योजना के दौरान उच्च गुणवत्तायुक्त रोजगार उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य रखा गया था। पंचवर्षीय योजना क्या है
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)
तीव्रतर, अधिक समावेशी एवं धारणीय विकास (Faster, More Inclusive and Sustainable Growth) शीर्षक के साथ बारहवीं पंचवर्षीय योजना ऐसे समय में शुरू हुई जब वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐसे दूसरे वित्तीय संकट का सामना कर रही थी, जो ग्यारहवीं योजना के अंतिम वर्ष में यूरो जोन पर आए ऋण संकट के कारण शुरू हुआ था। इस वित्तीय संकट का असर भारत सहित सभी देशों पर पड़ा। इस पृष्ठभूमि में नीति-नियंताओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि अर्थव्यवस्था की उच्च विकास दर को फिर से कैसे प्राप्त किया जाए? बारहवीं योजना में इस बात पर जोर दिया गया है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर को फिर से तीव्र करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि विकास प्रक्रियाएं समावेशी एवं धारणीय बनी रहें।
प्रमुख लक्ष्य
बारहवीं पंचवर्षीय योजना में 25 मुख्य लक्ष्य निर्धारित किए गए। थे, जिनसे तीव्रतर, अधिक समावेशी तथा धारणीय विकास स्थापित होता। ये लक्ष्य निम्नलिखित थे-
आर्थिक विकास
- सकल घरेलू उत्पाद में 8% की वास्तविक दर से संवृद्धि ।
- 4% की दर से कृषि संवृद्धि ।
- 10% की दर से विनिर्माण संवृद्धि ।
- प्रत्येक राज्य द्वारा ग्यारहवीं योजना की तुलना में बारहवीं योजना में अधिमानतः उच्चतर औसत संवृद्धि।
गरीबी और रोजगार
- बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक, पूर्ववर्ती आकलनों की तुलना में, गरीबी में 10% अंकों की कमी।
- योजना के दौरान गैर कृषि क्षेत्रक में 50 मिलियन नए कार्य अवसरों का सृजन तथा इतनी ही संख्या में कौशल प्रमाण-पत्रों का वितरण।
शिक्षा
- बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक, स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों की संख्या को बढ़ाकर सात वर्ष करना ।
- अर्थव्यवस्था में कौशल आवश्यकताओं के अनुरूप, उच्चतर शिक्षा में प्रत्येक उम्र के लिए दो मिलियन अतिरिक्त सीटों का सृजन करना।
- विद्यालय पंजीकरण में लैंगिक तथा सामाजिक अंतराल को योजना के अंत तक दूर करना।
स्वास्थ्य
- योजना के अंत तक नवजात मृत्यु दर को घटाकर 25 प्रति हजार तथा मातृ मृत्यु दर को घटाकर 1 प्रति हजार जीवित प्रसव के स्तर पर लाना तथा बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष) को सुधार कर 950 के स्तर तक लाना।
- योजना के अंत तक कुल प्रजनन दर को घटाकर 2.1 के स्तर तक लाना।
- बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 0-3 वर्ष के बच्चों में अल्पपोषण को घटाकर NFHS-3 के स्तरों के आधे पर लाना।
ग्रामीण अवसंरचना
- योजना के अंत तक अवसंरचना में निवेश को बढ़ाकर GDP के 9% पर लाना।
- योजना के अंत तक, सकल सिंचित क्षेत्र को 90 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ाकर 103 मिलियन हेक्टेयर करना ।
- योजना के अंत तक सभी गांवों को बिजली उपलब्ध कराना।
- बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक सभी गांवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना।
- योजना के अंत तक राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों को न्यूनतम दो लेन के मानदंड पर लाना।
- योजना के अंत तक पूर्वी तथा पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारे को पूरा करना।
- बारहवीं योजना के अंत तक ग्रामीण टेली-डेंसिटी को बढ़ाकर 70% के स्तर पर पहुंचाना।
- योजना के अंत तक कम-से-कम आधी ग्रामीण आबादी को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करना।
पर्यावरण और धारणीयता
- योजना अवधि में प्रति वर्ष 1 मिलियन हेक्टेयर हरित क्षेत्र की वृद्धि।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 30,000 मेगावॉट की वृद्धि।
- वर्ष 2020 तक उत्सर्जन तीव्रता (2005 के स्तर से) में 20 से 25% तक की कमी करना।
सेवा प्रदायगी
- योजना के अंत तक 90% भारतीय परिवारों को बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराना।
- बारहवीं योजना के अंत तक मुख्य सब्सिडियों और कल्याण संबंधी सहायता को प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण के रूप में प्रदान करना।
बारहवीं पंचवर्षीय योजना में द्विउद्देश्यीय कार्य
नीति का प्रस्ताव किया गया था, जिसमें आर्थिक असंतुलनों को नियंत्रण में लाने और मंदी के दौर से उबरने की जरूरत पर ध्यान देने के साथ ही कई क्षेत्रों में संरचनात्मक सुधारों पर भी जोर दिया था, जो मध्यम अवधि में विकास को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। पंचवर्षीय योजना क्या है
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