पानी पिलाओ – शिकार खेलने गए प्यासे राजा की कहानी

पानी पिलाओ: एक था राजा। उसे शिकार खेलने का बहुत ही शौक था। वह अक्सर दूर-दूर जंगलों में शिकार खेलने जाया करता था। एक दिन वह शिकार खेलते-खेलते जंगल में निकल गया। गर्मी का मौसम था। उसे जोरों की प्यास लग आई थी। काफी भटकने के बाद उसे साफ पानी का एक तालाब नजर आया। तालाब देखकर राजा बहुत खुश हुआ। वह अपने घोड़े से उतरकर तालाब की ओर बढ़ा।

पानी पिलाओ

पानी पिलाओ

अभी वह तालाब से पानी पीने ही लगा था, उसे एक आवाज सुनाई दी- “राजन, मैं बहुत प्यासी हूं। पहले मुझे पानी पिला दो, तुम्हारा बहुत उपकार होगा। “

आवाज सुनकर राजा ने अपना सिर उठाया। उसने देखा ” तालाब के बीचोंबीच एक जलपरी खड़ी थी। वह बहुत ही करुणामयी दृष्टि से उसकी ओर देख रही थी।” देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह उसके समीप गया। उसे अपने हाथों से पानी पिलाने लगा। थोड़ी ही देर में उसकी प्यास बुझ गई। वह बहुत प्रसन्न दिखाई देने लगी, इसके बाद परी राजा का हाथ पकड़कर तालाब के बाहर निकल आई। तालाब से बाहर निकलते ही वह जलपरी से एक सामान्य स्त्री के रूप में बदल गई। राजा यह देखकर आश्चर्यचकित था। पूछा- “देवी, आप कौन हैं? मुझे यह रहस्य समझ नहीं आ रहा है कि तालाब में रहकर भी आप प्यासी हैं?”

वह बोली- “मैं बताना तो नहीं चाहती परंतु यदि आप पूछना चाहते हैं, तो सुनिए इसके पीछे एक लंबी कहानी है। मैं पिछले जन्म में एक गांव में रहती थी। मैं उस गांव के जमींदार की पत्नी थी।

एक बार उस गांव में तथा आसपास के गांवों में सूखा पड़ा। सभी नदी-नाले और तालाब सूख गए। सिर्फ मेरे घर के कुएं का पानी नहीं सूखा गांव के सभी लोग मुझसे पानी मांगने आते, परंतु मैं सभी को मना कर देती।

एक दिन की बात है, मैं कुएं के किनारे लगे पेड़ के नीचे बैठी थी। तभी एक स्त्री अपने बीमार व प्यासे पति को लेकर आई बोली- “बहिन, कृपया मेरे पति को दो घूंट पानी पिला दो।

उस बीमार को देखकर भी मुझे दया नहीं आई। मैंने उस स्त्री को दुत्कार कर वहीं से भगा दिया। थोड़ी देर में ही उसका पति प्यास से तड़प-तड़पकर मर गया। यह देखकर उस स्त्री को बहुत क्रोध आया। उसने मुझसे कहा- “तुम बहुत निर्दयी तथा स्वार्थी हो। तुम्हारे पास इतना पानी होते हुए भी तुमने कभी किसी को पानी नहीं पिलाया। पानी के होते हुए भी तुमने सबको प्यासा रखा है। मरने के बाद तुम्हारी मुक्ति नहीं होगी। तुम जल में ही निवास परंतु जल में रहकर भी प्यासी रहोगी। “

श्राप सुनकर मैंने उस स्त्री के पैर पकड़ लिए। कहा- “देवी, मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है। आप अपना श्राप वापस ले लीजिए। “

यह सुनकर उस स्त्री को मुझ पर दया आई। वह बोली- “मेरा श्राप तो सच्चा ही होगा। परंतु मैं तुम्हें तुम्हारे उद्धार का उपाय बताती हूँ। तुम जलपरी बनकर जल में निवास करोगी, जिस दिन कोई प्यासा व्यक्ति अपनी प्यास बुझाने से पहले तुम्हारी प्यास बुझाएगा, उसी दिन तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी। “
उस दिन के बाद मैंने अपने जीवन के शेष दिन कष्ट में बिताए। कुछ ही दिनों में मेरी मृत्यु हो गई। मृत्यु के उपरांत मैं जलपरी बनकर इस तालाब में निवास करने लगी, परंतु इसका पानी कभी नहीं पी सको में आते जाते मुसाफिरों से कहती- “मुझे पानी पिलाओ।” पर वे स्वयं जल पीकर चले जाते। यह कहकर वह स्त्री वहां से चली गई।

राजा अपने महल में लौट आया। महल में आते ही उसे अपनी रानी के स्वस्थ होने को खबर मिली। उसको रानी बहुत बीमार थी, राजा उसके जीवन की आशा छोड़ चुका था। रानी को स्वस्थ देखकर राजा समझ गया कि यह चमत्कार उस स्त्री पर किए उपकार के कारण हुआ है।

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