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परोपकार पर निबंध? Philanthropy Essay in Hindi?

परोपकार पर निबंध:- ‘पर+उपकार’ इन दो शब्दों के योग से परोपकार शब्द बना है। ‘पर’ अर्थात् अपने से भिन्न अन्य जनों का हित करना ही परोपकार है। बिना कुछ प्रतिदान की इच्छा के जिस पवित्र भावना से मनुष्य दूसरों का हित करता है, उसे ही परोपकार कहते हैं। संसार में मनुष्य जीवन बड़े पुण्य से मिलता है। अतः इस और पशु जीवन की सफलता परोपकार करने में है। जिन मनुष्यों में यह दिव्य गुण होता है, वस्तुतः वे ही मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं तथा जिनमें यह गुण नहीं के पशु-तुल्य है। “वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।” मनुष्य में यही अन्तर होता है कि पशु पर-हित की भावना से परे रहता है।

परोपकार पर निबंध

परोपकार पर निबंध
Paropkar Par Nibandh

उसके लिए परोपकार का कोई महत्त्व नहीं, वह जो कुछ करता है, अपने लिए करता है यदि कोई मनुष्य बहुत लोभी और स्वार्थी हो तो वह पशु से भी अधिक नीच होत है। जब मनुष्य बुद्धि और चिन्तन-शक्ति का अधिकारी है तो निश्चित ही उससे कुछ विशेष व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। हमारे देश के ऋषियों ने तो भगव भजन से भी अधिक महत्त्व परोपकार को दिया है। उनके विचार से जिसने अपना जीवन मानव-कल्याण के लिए अर्पित किया, वास्तव में उसी का जीवन सार्थक कहलायेगा

वृच्छ कबहूँ नहिं फल भखें नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने “पर हित सहिस धर्म नहिं भाई” अर्थात् परोपकार के समान दूसरा कोई धर्म नहीं, कहकर, परोपकार की महिमा गाई है। दूसरों के लिए अपना सर्वस्व त्याग देना ही सबसे बड़ा धर्म व पुण्य है।

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प्रकृति में परोपकार के गुण

परोपकार की भावना हमें प्रकृति के कण-कण में दिखाई देती है। ईश्वर ने फल-फूल, चाँद-तारे, सूरज, जल, वनस्पति इन सबका निर्माण मनुष्य के भले के लिए ही किया है। सूर्य हमें अनवरत प्रकाश और ऊर्जा देता है, जिसके बिना पृथ्वी पर हम जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। धरती माता दोनों हाथों से अनाज लुटाती है, ताकि उसके बालक भूखे न रहें। विशाल पेड़ हारे-थके यात्री के लिए अपने नीचे सदा छाया किए रहते हैं, ताकि कोई आकर चैन से सुख की नींद सोये या विश्राम करे। फलों के असंख्य पेड़ अपने फल हमें निःस्वार्थ भाव से देते हैं।

प्राणि-जगत् को जीवित रखने के लिए वायु प्राण देता है। मेघ धरती पर पानी वर्षा कर आनन्द लुटाते हैं, परन्तु क्या इन सबने कभी परोपकार के बदले कुछ माँगा? कदापि नहीं। परोपकारी दोनों हाथों से अपना सर्वस्व ही दूसरों के हित के लिए लुटा देता है, किन्तु बदले में कुछ पाने की अभिलाषा नहीं रखता।

पुण्य और पाप

महर्षि वेदव्यास जी ने धर्म के सार को एक वाक्य में व्यक्त किया है –

“परोपकारः पुण्याय पापाय पर पीडनम् ।”

यदि जीवन में आप पुण्य कमाना चाहें तो परोपकार कीजिए और यदि पाथों का संचय करना चाहते हैं तो दूसरे प्राणियों को दुख दीजिए। क्योंकि परोपकार से पुण्य मिलता है और दूसरों को पीड़ा देने से पाल लगता है।

जीवन की सार्थकता

हमें ईश्वर ने जो मानव जन्म दिया है, उसकी सार्थकता इसी में निहित है कि हम अपने स्वार्थ से परे हटकर दूसरे की हित की बात सोचें। ईश्वर ने प्रकृति के सहारे इस संसार का भरपूर कल्याण किया। वह स्वयं बड़ा परोपकारी है। वह प्राणियों को सदा सब वस्तुएँ खुले मन से देता है, लेकिन बदले में कभी कुछ नहीं लेता। आज आवश्यकता (परोपकार पर निबंध) इस बात की है कि हम दूसरों के आँसुओं का आदर करना सीखें, जो दीन और असहाय हैं, उनकी करुण पुकार सुनकर उनका दुःख दूर करें। सैकड़ों भूखे हैं, उन्हें अन्न देना है, तन ढाँपने के लिए वस्त्र देना है। कई शिशु पूरी तरह से आँख भी नहीं खोल पाते, से तड़पते सर्दी से ठिठुरते प्राण त्याग संरक्षण देना होगा।

अपने पापी लिए कोई नारी अपने सम्मान को विवश होकर दाव न लगावे इसके लिए चौकस रहना औषध देना, अशिक्षितों लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, प्यासे को पानी पिलाना, मार्ग दिखाना, भयभीत से रक्षा करना आदि परोपकार के ही रूप जीने का सबको समान अधिकार ईश्वर सबकों एक-सा बनाता है। शक्तिशाली कर्त्तव्य निर्बल की सहायता करना ताकि वह हँसना सीख सके।

परोपकार के उदाहरण

इतिहास परोपकार व्यक्तियों असंख्य उदाहरण मिलते हैं। ऋषि दधीचि विश्व कल्याण लिए देवताओं द्वारा उनकी अस्थियाँ माँगने पर निःसंकोच उनकी बात मान और योग द्वारा प्राण त्याग कर अस्थियाँ दान कर दीं, उन अस्थियों वज्र बना और वृत्रासुर वध हुआ। राजा शिवि कपोत रक्षा लिए कपोत भार उराबर माँस अपने शरीर काटकर बाज दे दिया। राज रंतिदेव स्वयं भूखे होते भी अपने आगे भोजन पात्र भूखे भिखारी दे दिया था। भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित समस्त सम्पत्ति महाराणा प्रताप चरणों अर्पित दी, ताकि उससे सैनिकों संग्रह कर राष्ट्र-रक्षा कर सकें। आज देश हजारों लोग ऐसे जो अपने सुखों को त्याग कर बनवासी बन्धुओं के बीच रहकर उनके जीवन को उन्नत करने बाबा आमटे तो अपना सारा जीवन कोढ़ियों सेवा लगा दिया है।

उपसंहार

जितना अधिक परोपकार का आदर्श लेकर मनुष्य अपने कर्म का चिन्तन करेगा और उसे कार्य रूप में परिणत करेगा, वह श्रेष्ठ मनुष्य माना जाएगा। परोपकार करने हृदय को आनन्द मिलता है और मन को अपार संतोष प्राप्त होता है। अतः मनुष्य अपने सामर्थ्य अनुसार परोपकार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि-

‘सफलं जीवितं तस्य परेभ्यः यस्य जीवनम्।
(जो दूसरों लिए जीता उसका जीना सफल है।)

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