पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध: वर्तमान समय में मनुष्य नित नए संकटों में फंसता जा रहा है। ऐसे संकटों में पर्यावरण प्रदूषण सर्वाधिक घातक है, क्योंकि यह पूरे विश्व को ग्रस रहा है। इतना ही नहीं, इस प्रदूषण का मारक प्रभाव आने वाली मानव-पीढ़ियों पर भी पड़ेगा। खेदजनक बात यह है कि तात्कालिक लाभ के लोभवश स्वयं मनुष्य ही पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। यह आत्मघाती कार्य है। अतः सभी मानवतावादियों का कर्तव्य है कि वे पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से मानव वंश की रक्षा के लिए सक्रिय हों। यह समस्या बहुआयामी है। आइए, इस पर विचार करें।
पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध

पर्यावरण शब्द का निर्माण ‘परि’ और ‘आवरण’ से हुआ है। ‘परि’ का अर्थ है चारों ओर और ‘आवरण’ का अर्थ है ‘ढकने वाला’ अर्थात् जो हमारे चारों ओर फैलकर हमें ढके हुए है। प्रकृति ने पृथ्वी पर एक ऐसे आवरण का निर्माण किया है, जिसमें प्राणियों का जीवन सुरक्षित और सहज रहता है।
किंतु मनुष्य ने उसे दूषित कर अपने लिए संकट उपस्थित कर लिया है। प्रकृति द्वारा निर्मित पर्यावरण में कुछ ऐसे घटक आ जाते हैं, जो उसे दूषित कर देते हैं, तब उसे प्रदूषण कहा जाता है। इस प्रकार प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण के प्रदूषित होने की स्थिति को पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। यह प्रदूषण कई कोटि का है। इसमें पांच प्रकार के प्रदूषण मुख्य हैं-
- वायु प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
- रेडियो धर्मी प्रदूषण
- रासायनिक प्रदूषण
वायु प्रदूषण
स्वच्छ वायु मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। वायु में ऑक्सीजन की मात्रा का घटना और कार्बन डाई ऑक्साइड तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा का बढ़ना वायु प्रदूषण का लक्षण है।
नगरों में मोटर-गाड़ियों और अन्य वाहनों द्वारा छोड़े गए दुर्गन्धयुक्त धुएं तथा कारखानों की चिमनियों से निकले धुएं से वायु प्रदूषण होता है। इसके अलावा वे उद्योग जिनसे भारी मात्रा में धूल उड़ती है, जैसे-सीमेंट, चूना, खजिन आदि तथा वे उद्योग जो दुर्गन्धयुक्त भाप उत्पन्न करते हैं, जैसे चमड़ा तैयार करना, साबुन और चर्बी का व्यवसाय आदि वायु प्रदूषण करने में प्रमुख हैं।
इन उद्योगों द्वारा प्रदूषित वायु अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करती है, जैसे नेत्ररोग, श्वास रोग, रक्तचाप, हृदय रोग आदि। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए वनों का संवर्धन आवश्यक है। वृक्ष ऑक्सीजन गैस छोड़ते हैं, जो मनुष्य के लिए आवश्यक है। मनुष्य श्वास से कार्बन डाई आक्साइड छोड़ता है। उसे वृक्ष ग्रहण कर लेते हैं।
इस प्रकार वृक्ष वायु को स्वच्छ रखने में विशेष सहायक हैं। इसके अतिरिक्त वन भूस्खलन रोकते हैं, जल स्रोतों को सूखने से बचाते हैं तथा वर्षा का औसत बढ़ाते हैं। भारत सरकार और राज्यों की सरकारों ने वृक्षारोपण और वनसंरक्षण के महत्त्व को समझा है। इसीलिए विगत कई वर्षों से शासन की ओर से वन संरक्षण और वृक्षारोपण का अभियान चलाया जा रहा है।
लेकिन जुलाई-अगस्त में वृक्षारोपण कर उन वृक्षों की समुचित देख-भाल नहीं की जाती है और उनमें से अधिकांश सूख जाते हैं। शासन को वृक्षों की देखभाल की ओर ध्यान देना चाहिए। साथ ही जिन कल-कारखानों से वायु प्रदूषण होता है, उन पर प्रतिबंध लगाया जाए।
वायु प्रदूषण रोकने वाले उपकरण लगाने पर ही किसी उद्योग को चलाने की आज्ञा दी जानी चाहिए। यदि शीघ्र इस दिशा में कार्य नहीं किया जाएगा, तो वर्तमान मानव वंश ही नहीं, भावी पीढ़ियां भी वायु प्रदूषण से प्रभावित होंगी। पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
जल प्रदूषण
जीवन के लिए जल प्राथमिक आवश्यकता है, किंतु भारत में शुद्ध पेय जल उपलब्ध नहीं है। गांवों और शहरों की नालियों का गंदा जल नदियों, तालाबों और अन्य जलस्रोतों में बहाया जाता है। इससे जल प्रदूषित हो जाता है।
जलाशयों और नदियों में पशुओं को धोने तथा साबुन से कपड़ा धोने से भी जल प्रदूषित होता है। आस-पास के वृक्षों के पत्ते और अन्य प्रकार का कूड़ा-करकट जल स्रोतों को अपेय बनाता है। कारखानों तथा घरों से निकलने वाला कचरा नदियों में बहाया जाता है और वह जल को विषैला बना देता है।
यहां तक पवित्र मानी जाने वाली गंगा का जल भी प्रदूषित हो गया है। उसे शुद्ध करने के लिए कई करोड़ों की गंगा-स्वच्छता की योजना लागू की गई है किंतु जितना जल शुद्ध किया जाता है, उससे अधिक कचरा जमा हो जाता है। जल प्रदूषण से पीलिया, पेचिश, हैजा आदि बीमारियां उत्पन्न होती हैं।
इस समस्या का निराकरण तत्कालं किए जाने की आवश्यकता है। नदियों, तालाबों और कुओं के जल की सफाई एवं शुद्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। समय-समय पर जल स्रोतों की जांच की जाए। क्लोरिन अथवा लाल दवा का प्रयोग कर जल को पीने योग्य बनाया जाए।
‘जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 ई.’ की कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। नदियों और अन्य जलस्रोतों में कूड़ा-कचरे का बहाना प्रतिबंधित किया जाए। यह शुभ है कि नदियों और गदै जलस्रोतों से निकले कचरे से खाद बनाने का कार्य शुरू किया गया है। जलस्रोतों को गंदा होने से बचाने के लिए चौकसी बरतना नितांत आवश्यक है।
गांव तथा नगरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक संख्या में नलकूप और नल लगाए जाएं। श्रमिक बस्तियों और दलित वर्गों की झुग्गी-झोपड़ियों वाले स्थानों में पेयजल की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
इन वर्गों के लोग अक्सर प्रदूषित जल के सेवन से महामारी के शिकार होते हैं। मल-मूत्र बहाने वाली पाइपें कई बार जल की पाइपों में मिल जाती हैं और जल को प्रदूषित कर देती हैं। अतः सीवर की तत्परता से निगरानी की जानी चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारक तेज आवाज या शोर है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने उत्पन्न किया है। जहाजों और जेट विमानों के कर्कश स्वर, नगरों की सड़कों पर दौड़ती कारों, जीपों, टेम्पो, ट्रकों के पों-पों. कारखानों के साइरनों और मशीनों के शोर और लाउडस्पीकरों की चिल्लाहट ध्वनि प्रदूषण करते हैं।
शोर पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का मत है कि शोर अदृश्य प्रदूषण समस्या पैदा है। यह मानव मात्र के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालता है। तेज ध्वनि से मनुष्य में बहरापन उत्पन्न होता है। मनुष्य की कार्य-शक्ति पर भी प्रभाव डालता है।
रोगी पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। लाउडस्पीकर के शोर से विद्यार्थियों का पठन-पाठन बाधित होता है और लोगों के सोने में खलल पड़ता है। ध्वनि से रक्तचाप, सिरदर्द, अनिद्रा आदि बीमारियां होती हैं। कभी-कभी कर्कश ध्वनि सुनते-सुनते लोगों में मानसिक विकृति भी उत्पन्न होती है।
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक है कि ध्वनि प्रदूषण फैलानेवाली मशीनों को लगाने की अनुमति तभी दी जानी चाहिए, जब उनमें ध्वनि-अवरोधी यंत्र लगाए जाएं। कारों, जीपों, ट्रकों आदि में साइलेंसर लगाना अनिवार्य किया जाए। रात के नौ बजे के बाद लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगाई जाए।
रेडियोधर्मी प्रदूषण
रेडियोधर्मी प्रदूषण यद्यपि विश्व के सभी देशों को ज्ञात है कि अणुबम का निर्माण अत्यंत घातक है, फिर भी अणुबम बनाने और उसके परीक्षण करने की होड़ लगी हुई है। इन परीक्षणों और विस्फोटों से रेडियोधर्मी पदार्थ पूरे वायुमंडल में फैल जाता है और जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाता है।
इसका उदाहरण द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका द्वारा जापान के दो नगरों-नागासाकी और हिरोशिमा पर अणु बम का प्रयोग है। लाखों की संख्या में लोग मारे गए और आज भी वहां उस विस्फोट कुप्रभाव से लोगों अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हुए हैं।
मानव रेडियोधर्मी विकिरण वनस्पतियों पशुओं पर विनाशक प्रभाव डालता अणुबम विस्फोट का सैकड़ों किलोमीटर भूमि को उजाड़ देता के चेरनोविल ताप भट्ठी में भयानक विस्फोट हजारों लोगों जान लिया पर्यावरण को भारी मात्रा में प्रदूषित किया विश्व पांच देशों-
अमेरिका, इंग्लैंड, और भारी मात्रा अणुबमों भंडर जमा किया गतवर्ष (1988) भारत पाकिस्तान ने अणुबम का विस्फोट किया अमेरिका और अणुबम भंडार रखने वाले देशों ने भारत और पाकिस्तान अणुबम बनाने विरोध किया है दोनों देशों आर्थिक प्रतिबंध लगाया है। यह विडंबना है स्वयं अणुबम रखने वाले दूसरों अणुबम बनाने बौखला गए अमेरिकी पक्ष ने योजना बनायी है-
सी. टी. बी. अणुबम निर्माण प्रतिबंध लगाने वकालत कर रहा भारत ने ऐसी संधि हस्ताक्षर करने इनकार कर दिया उसका कहना कि सभी देश अणुबमों क्रमशः नष्ट करें। मानवता की रक्षा लिए ऐसा करना अत्यंत आवश्यक अणुबम की समाप्त होने पर मानवता महा विनाश से पाएगी।
रासायनिक प्रदूषण ( भूमि प्रदूषण )
रासायनिक प्रदूषण (पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध) कारखानों कचरा के रूप बहते रासायनिकों, कीटनाशक दवाइयों उर्वरकों से प्रदूषण फैलता है, रासायनिक प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण जल और वायु मिलकर उन्हें दूषित कर देता इससे अनेक प्रकार के रोग होते हैं।
डी. डी. पारथियान, एल्ड्रीन, माल थियान जैसी कीटनाशक दवाइयों छिड़काव से और जल जहर फैलता सब्जियों और फलों रसायनों अत्यधिक प्रयोग उनका काफी अंश फलों सब्जियों के रसों में जमा जाता है। खाने रसायन मनुष्य की चर्बी में जाता है
अनेक प्रकार के रोगों जन्म देता जैसे- रक्तचाप, प्लीहा, मानसिक विक्षिप्तता आदि रासायनिक प्रदूषण बीभत्स उदाहरण है। 1984 ई. भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र मिथाइल आइसोसाइट नामक विषैली गैस रिसाव इससे हजारों लोगों की मृत्यु हुई हजारों लोग स्थायी रूप अपंग गए।
अतः रासायनिक प्रदूषण भीषण प्रभाव को करने के सक्रियता उपाय किए जाने चाहिए। कारखानों निकले रासायनिक कचरे जलस्रोतों और वातावरण फैलने रोका जाए। कीटनाशक दवाओं प्रयोग सीमित किया जाए।
पर्यावरण प्रदूषण के उपर्युक्त प्रमुख तत्त्वों के घातक प्रभाव का विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इन पर नियंत्रण करने पर ही मानवता को बचाया जा सकता है, अन्यथा मानव जाति का विनाश निश्चित है। विभिन्न तत्त्वों का विश्लेषण करते हुए उनके नियंत्रण के उपाय भी सुझाए गए हैं।
यदि सुझावों पर सक्रियता से अमल किया जाए तो पर्यावरण प्रदूषण को क्रमशः कम किया जा सकता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने में वृक्षों और वनों का विशेष महत्त्व है। अतः वृक्षारोपण और वनों का विस्तार और संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकारी स्तर पर इस दिशा कार्य किया जा रहा और वन रक्षा एवं पर्यावरण मंत्रालय स्थापित किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस दिशा में सक्रिय है। वह विभिन्न सरकारों को इस कार्य के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता भी रहा है। किंतु अकेले सरकारें यह विभीषिका समाप्त करने में सफल नहीं हो सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि पर्यावरण प्रदूषण को जन आंदोलन बनाया जाए। साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं का भी सहयोग लिया जाए।
सरकार द्वारा प्रस्थापित विभिन्न कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए। प्रदूषण फैलाने वाले कल कारखानों को प्रदूषण प्रतिरोधी संयंत्रों को लगाना अनिवार्य किया जाए। लोगों को पीने का शुद्ध जल उपलब्ध कराया जाए।
ऐसा होने पर अनेक घातक रोगों से जनता को बचाया जा सकता है। नदियों और जल स्रोतों को से प्रदूषण मुक्त करने का कार्य और अधिक प्रभावी रूप में किया जाना चाहिए। नगरों में बढ़ती आबादी को सीमित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
नगरों के कूड़ा-कचरे को साफ करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। गांवों में धुआंरहित चूल्हों का निर्माण कराया जाए। ऐसा होने पर ग्रामीण महिलाओं को आंख और श्वास रोग से बचाया जा सकता है।
ऊपर बताए गए कार्यों को निष्ठापूर्वक संपादित कर पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है और भावी पीढ़ी के लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण जीवन यापन करने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया सकता है। पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
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