पाषाण काल – के मानव अपने औजार किन किन वस्तुओ से बनाते थे? क्या आप जानते है।

पाषाण काल: पाषाण अर्थात् पत्थर काल अर्थात समय मानव ने अपनी रक्षा और अपनी भूख मिटाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के औजारों का ही सबसे अधिक उपयोग किया इसलिए इस युग को पाषाण काल कहते हैं। पत्थर से बने औजारों में समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं।

पाषाण काल (Pashan Kal)

पाषाण-काल

पाषाण युग को तीन भागों में बाँटा गया है।

  1. पुरापाषाण काल
  2. मध्यपाषाण काल
  3. नवपाषाण काल

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पुरापाषाण काल

पुरापाषाण काल में मानव पहले खुले आकाश के नीचे, नदियों के किनारे या झील के पास रहता था। इससे उसे शिकार करने में आसानी होती थी। वह पत्थर के औजारों से पशुओं का शिकार करता था। शिकार से प्राप्त माँस ही उसका मुख्य भोजन था।

कन्दमूल तथा फल भी उसके भोजन में सम्मिलित थे। थोड़े समय बाद मानव ने गुफाओं में रहना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि उसे तब तक घर बनाना नहीं आता था। शिकार की खोज में वह लगातार घूमता रहता था।

इस प्रकार उसका कोई स्थाई आवास नहीं था। इसी समय उसे आग की जानकारी प्राप्त हुई। साथ ही अब उसने अपने मृतकों को कब्र में दफनाना प्रारम्भ कर दिया। पुरापाषाण काल के आखिरी दौर में उसने चित्र बनाना भी सीख लिया।

उस समय की गुफाओं में उसके द्वारा बनाए गए चिन्न मिलते हैं। इन चित्रों में शिकार के दृश्य बनाए गए हैं। इसी समय मानव ने हड्डी के औजार भी बनाना प्रारम्भ किया। यह औजार उसके ज्ञान में विकास को दर्शाते हैं।

इस युग में मानव झुण्ड बनाकर ही शिकार करते थे। जिसे वह आपस में बाँटकर खाते थे। मानव यह समझ चुका था कि वह तभी जीवित रह सकता है जब वह दूसरों के साथ मिलकर चले। इस प्रकार एक दूसरे का सहयोग करने की भावना इस युग में विकसित हो चुकी थी।

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मिली कुछ गुफाओं से पता चलता है कि मानव समूह में रहते थे। कैसे करते थे शिकार? आदि मानव के पास न ही जंगली जानवरों जैसे पैने नाखून थे, न ही नुकीले दाँत, न जबड़े और न ही सींग उसकी बड़ी समस्या अपने से ज्यादा ताकतवर जंगली जानवरों से रक्षा करने व उनका शिकार करने की थी।

इसके लिए उसने पत्थर के औजारों का निर्माण व प्रयोग किया, क्योंकि उसे पत्थर आसानी से प्राप्त हो जाते थे। यह मानव की आखेटक अवस्था थी। इस युग के पत्थर के औजार आकृति में सुडौल नहीं थे। ये बेडौल एवं मौड़ी आकृति वाले थे।

कैसे जाना आग जलाना

औजार बनाने के लिए वे एक पत्थर पर दूसरे पत्थर से चोट मारते थे। एक पत्थर से दूसरा पत्थर टकराने पर चिनगारी निकली। निकलने वाली चिनगारी से उन्हें आग का ज्ञान हुआ। इससे वह सूखी पत्तियों, लकड़ी की टहनियों आदि को जलाने लगे।

मध्यपाषाण काल

मध्यपाषाण काल के औजार (उपकरण) पुरा पाषाण काल की अपेक्षा आकार में छोटे हो गए। इस समय प्रकृति में अनेक परिवर्तन हुए जिसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा। नई परिस्थिति से तालमेल बैठाने के लिए उसने छोटे उपकरण बनाना प्रारम्भ किया।

जलवायु पहले की अपेक्षा गर्म हुई फलस्वरूप जहाँ-जहाँ बर्फ जमी थी वह पिघल गई। पृथ्वी की उर्वरक शक्ति का विकास हुआ तथा घास एवं वनस्पतियों के मैदान विकसित हुए। घास को खाने वाले छोटे जानवर जैसे हिरण, खरगोश मेड, बकरी आदि पैदा हुए मानव अपने आप उगी धासों को एकत्र करने लगा।

इन घासों में कई आज के अनाजो की पूर्वज थी। इनका प्रयोग मानव ने अपने भोजन में किया। इस प्रकार यह जब ‘संग्राहक’ बन गया। मानव ने इसी समय कुत्ते को पालतू बनाया। कुत्ता मानव का प्रथम पालतू पशु है।

कैसे हुआ खेती का ज्ञान

पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि अपने आप उगे हुए अनाजों को मानव ने एकत्रित करना शुरू किया। अनाज के कुछ दाने गीली मिट्टी में अथवा इधर-उधर गिरे होंगे। इन स्थानों पर फिर से वही अनाज उगे जब मानव ने इसे देखा तब उसे ज्ञात हुआ कि इन अनाज के दानों से बार-बार अनाज उगाया जा | सकता है। अपने इस ज्ञान का उसने परीक्षण भी किया। तब जाकर उसे खेती का ज्ञान हुआ।

नव पाषाण काल

पुरातत्वविदों का यह मानना है कि मानव ने जब से भलीभांति खेती करना प्रारम्भ कर दिया तभी से नवपाषाण काल प्रारम्भ होता है। यह मानव सभ्यता के इतिहास का सबसे बड़ा परिवर्तन था। खेती के कारण मानव अब भोजन संग्राहक से भोजन उत्पादक बन गया।

इस समय उसके पत्थर के उपकरण अधिक उपयोगी एवं सुडौल थे क्योंकि उन्हें अधिक कुशलता से बनाया गया था। यह उपकरण घिसकर चमकदार बनाए गए थे हत्थेदार कुल्हाड़ी एवं हँसिया इस समय के महत्वपूर्ण औजार थे। खेती के साथ पशुपालन भी प्रारम्भ हुआ। पशुओं का प्रयोग मांस व दूध प्राप्त करने में किया जाता था।

अब ये मिट्टी के बर्तन बनाना भी जान गए थे बर्तनों पर नक्काशी एवं चित्रकारी में रंगो का प्रयोग होने लगा। इसी समय मानव ने पहिए का आविष्कार किया। इसका प्रयोग चाक के रूप में मिट्टी से बर्तन बनाने तथा सामान ढोने के लिए गाड़ी के पहिए के रूप में किया गया।

मानव अब अपने खेतों के आस-पास मिट्टी के घरों एवं घास-फूस के छप्पर वाले घरों में रहने लगा। धीरे-धीरे ये बस्तियों गाँव बन गए।

खेती के कारण लोग एक ही जगह रहने लगे। फलस्वरूप नए-नए कौशल विकसित हुए जैसे मूँज की टोकरी व चटाइयों बनाना, कताई करना. जानवरों के बालों से कपड़ा बनाना आदि। अब उनमें सामुदायिक जीवन का हुआ।

शवों को दफनाने के ढंग से इनके धार्मिक विश्वास के विषय में जानकारी मिलती है। शवों (मृत व्यक्तियों) के साथ खाने-पीने की चीजें, बर्तन, हथियार आदि भी दफनाए जाते थे। इन लोगों का विश्वास था कि मरने के बाद भी व्यक्ति इनका उपयोग करेगा।

धातु काल

नवपाषाण युग का अन्त होते-होते पत्थर के साथ-साथ धातुओं का इस्तेमाल शुरू हो गया। धातुओं में सबसे पहले ताँबे का प्रयोग हुआ जिसके कारण इस युग को ताम्रपाषाण युग कहा गया।

मानव ने ताँबे की खानों का पता लगाकर उससे तौबा खोदकर निकालना शुरू किया। उच्च तापमान हमारा इतिहास और नागरिक जीवन में ताँबे को पिघलाना तथा साँचे की सहायता से धातु-द्रव को विविध रूप देना भी उन्होंने सीख लिया। यह मानव विकास की एक और महत्वपूर्ण खोज थी। धीरे-धीरे मानव ने ताँबे व जस्ते को मिलाकर मिश्रित धातु काँसा बनाना सीख लिया।

मानव जीवन उसकी प्रगति एवं संघर्ष की कहानी है। प्रारम्भिक मानव ने अपनी समस्याओं से जूझते हुए अपने को जीवित रखा, अपनी उन्नति की एवं अपने को सभ्य बनाया।

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