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फोबिया किसे कहते हैं, लक्षण, सुझाव, यौगिक उपचार और फोबिया के प्रकार

फोबिया किसे कहते हैं, लक्षण, यौगिक उपचार और फोबिया के प्रकार। श्रुति का उद्घोष है कि ‘सूर्य भयवश (Phobia) तपता है, वायु भयवश बहती है, अग्नि भयवश प्रफुल्लित होती है, वर्षा भी भयवश होती है। यह सब वैश्विक भय है, लेकिन यहाँ जिस भय (फोबिया) की चर्चा करने जा रहे हैं, उसकी सांसारिक लोग अपने जीवन का सामना करते हैं। इस सन्दर्भ में राजा भतृहरि ने बड़े रूप से अपनी त्रिशती में चर्चा की है-

फोबिया किसे कहते हैं

फोबिया किसे कहते हैं

भोग को रोग का भय है, प्रतिष्ठित को प्रतिष्ठा क्षय का भय, राजा को शत्रु का भय, विद्वान को विरोधी का भय और बादी को प्रतिवादी का भय। जो वस्तु या विषय हमें डराता है, उसका अस्तित्व ही नहीं है। वास्तव में अधिकांश डर मानसिक कमजोरी अथवा मानसिक, अपरिपक्वता का ही नतीजा है।

जिस प्रकार अंधेरी रात में एक सूखे पेड़ की ठूंठ में भूत समझकर, रस्सी को साँप समझकर हम डरने (फोबिया किसे कहते हैं) लगते हैं जबकि वहाँ न तो भूत है और न साँप। यह हमारी कोरी कल्पना मात्र है जो हमें डरा रही है। अतः हम कह सकते हैं कि किसी विषय के बारे में भ्रान्ति, हममें डर की मनः स्थिति पैदा कर देती है।

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लक्षण

भय अनेक प्रकार का होता है-साधारण डर के कारणवश व्यक्ति काँपने लगता है, होंठ बुदबुदाने लगते हैं, और वह हकलाने लगता है, कभी-कभी पसीने-पसीने तक हो जाता है। वास्तविक खतरे में व्यक्ति डर के मारे मल-मूत्र तक त्याग कर सकता है। सबसे बड़ा डर सामाजिक बहिष्कार का होता है जिसके कारण व्यक्ति कभी-कभी आत्महत्या तक कर बैठता है।

कुछ लोग भयभीत करने वाले प्रोग्राम देखकर अथवा भयभीत करने वाली पुस्तक पढ़कर सो जाते हैं तब स्वप्न में भी वही सब कुछ देखकर भयभीत हो जाते हैं । इस प्रकार उत्पन्न भय में व्यक्ति के दिल की धड़कन बढ़ जाती है, पेट में गड़बड़ी पैदा हो सकती है, उल्टी या दस्त हो सकते हैं। सिर चकराना, दम घुटना, चेहरा लाल हो जाना आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।

मनोवैज्ञानिक भय का विभाजन

  1. साधारण भय- किसी पशु, व्यक्ति या जगह को देखकर उत्पन्न होने वाला भय।
  2. ऐगोरा फोबिया- अत्यधिक चिल्लपों, भीड़ में फंसकर खो जाने का डर, पटाखेबाजी, अत्यधिक धक्का-मुक्की में गिरकर चोट खाने का डर आदि इस प्रकार के डर के उदाहरण हैं।
  3. असमर्थता का डर – सार्वजनिक गोष्ठियों या सभाओं आदि में बोलने की असमर्थता से उत्पन्न होने वाला डर।

डर को दूर करने के उपाय

सामाजिक एवं साधारण डरों को दूर करने के लिए मानसिक समझबूझ और हार्दिक आश्वासन आवश्यक है। अपने एकाकी जीवन से डरे हुए व्यक्ति को उसकी एकाकी जीवन शैली से निकालकर समाज में लाकर दूसरों से मिलने-जुलने का अभ्यस्त बनाने से उसके डर को दूर किया जा सकता है। व्यक्ति को जिस वस्तु विशेष से डर लगता है तो बार-बार उस वस्तु के समीप लाकर उसे वास्तविकता से परिचय कराकर डर से मुक्त कराया जा सकता है।

वस्तुतः हम किसी घटना अथवा वस्तु से जितना अधिक डरते हैं, उतना ही उसका डर बढ़ता जाता है। अगर डर से हम डर गये तो जीवन भर वह हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा । अतः उसका डटकर सामना करिये। किसी डरावनी स्थिति का सामना करने के लिए मानसिक शक्ति, आत्मबल को विकसित करना होगा। इसके लिए योग-विज्ञान के अनुसार प्राणायाम, आसन एवं ध्यान का अभ्यास आवश्यक है।

यौगिक उपचार

सुखपूर्वक प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक शक्ति का विकास होता है-

प्राणायाम

  1. नाड़ीशोधन प्राणायाम – अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार पद्मासन, सिद्धासन, वज्र आसन या सुखासन में पीठ और मेरुदण्ड को सीधा रखते हुए बैठ जायें। दोनों नथुनों से धीरे-धीरे लम्बी गहरी लयबद्ध तरीके से साँस लेने एवं निकालने का अभ्यास करें। जब यह अभ्यास दृढ़ हो जाये तो आन्तरिक एवं बाह्यपूरक कुम्भक एवं रेचक की प्रक्रिया जोड़ लें। शुरू में कोई अनुपात रखना सम्भव न हो तो ऐसे ही चलने दीजिये और बाद में 1 : 4 : 2 : 4 के अनुपात का क्रम अपनायें। आपको डर की अनुभूति हो या न हो उक्त प्राणायाम करते समय निम्नलिखित शक्तिशाली विचार की दृढ़ भावना करते रहें “मैं उस अनन्त, सर्वशक्तिमान, सर्व समर्थ भगवान का ही अंश हूँ, अतः मैं भी अनन्त महान एवं आनन्द रूप है। उसका पूरा-पूरा संरक्षण मुझे प्राप्त है जिससे मैं निर्भय, निर्वैर हूँ। किसी प्रकार के डर का मेरे जीवन में कोई स्थान नहीं है।”
  2. शीतली प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. सूर्य नमस्कार
  5. विपरीतकर्णी
  6. हलासन एवं
  7. योग मुद्रा काफी उपयोगी पाये गये हैं।

ध्यान एवं जप- इसका अभ्यास प्रातः नित्य प्रति करने से निर्भयता एवं श्रद्धा विकसित होती है।

सुझाव

  • उक्त सब क्रियाओं के अलावा सुबह जल्दी उठें और सूर्योदय से पहले दूर तक टहलें। आप ताजी हवा, खुले आसमान, चिड़ियों की चहचहाहट और उमंग भरे वातावरण में प्रकृति की नव शक्ति से भर जायेंगे ।
  • भय कहीं बाहर नहीं होता, वह तो आपके स्वयं के अन्दर होता है। अतः भय की भावना को नष्ट कर दें।
  • कभी भी अपने को हीन भावना से ग्रस्त न होने दें। अपने अन्दर भगवान की अदम्य शक्ति का अनुभव करिये, डर आपको छू भी न पायेगा।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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