बवासीर होने के कारण क्या है, लक्षण, यौगिक उपचार, आहार, और सावधानी के बारे में जानना बहुत ही जरूरी है। मनुष्य के शरीर में जब अपान वायु किन्हीं कारणों से दुर्बल हो जाती है तो अनेक प्रकार के रोग उत्पात मचाने लगते हैं। इन उत्पन्न हुए रोगों में बवासीर (अर्श) (Piles) भी एक हैं। अपान वायु के बारे में संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है। इसका स्थान नाभि के नीचे गुदा एवं लिंग के बीच होता है। गुदा से मूल एवं उपस्थ से मूत्र एवं अण्डकोष से वीर्य का निष्कासन होता है।
गर्भ आदि को नीचे ले जाना, मासिक धर्म के रजोस्राव का नियमन तथा निचली इन्द्रियों का काम इसी अपान वायु के अधीन है। जब अपान वायु दुर्बल हो जाती है तो बवासीर, काँच निकलना, बहुमूत्र या पेशाब का रुकना, अण्डकोष वृद्धि, आँत बढ़ना, फाइलेरिया स्वप्नदोष, प्रमेह, उपदंश (आतशक) आदि रोग हो जाते हैं।
बवासीर होने के कारण क्या है

बवासीर के प्रकार
- बादी (मस्से वाली) बवासीर
- खूनी बवासीर
बवासीर के कारण
हमारे मल द्वार के भीतरी भाग में रक्त प्रवाहिका नलियों एवं ज्ञान-तन्तुओं का जाल-सा बिछा होता है। शरीर के उस भाग का नियंत्रण इन्हीं के द्वारा होता है। कब्ज के कारण मल अवरुद्ध हो जाने से ये नसें फूल जाती हैं और इनमें जलन एवं खाज होने लगती है। प्रारम्भिक अवस्था में ये सूजी हुई नसें अन्दर ही रहती हैं। परन्तु कब्ज के बढ़ने से मल-त्याग के समय जोर लगाने से वे फूली हुई नसें बाहर आने लगती हैं इनके बार-बार बाहर आने से रगड़ के कारण नसें फट जाती हैं और उनसे खून बहने लगता है। इस प्रकार खूनी बवासीर उत्पन्न हो जाती है।
कब्ज की शिकायत उत्पन्न होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे बिना अच्छी तरह भूख लगे भोजन करना, बार-बार आदतन वगैर भूख लगे भोजन करना, लाल मिर्च मसालेदार व तली-भुनी गरिष्ठ वस्तुओं का अत्यधिक सेवन करना, जल्दी-जल्दी बिना चबाये एवं अशान्त मन से भोजन करना, माँस-मदिरा का तथा चाय-कॉफी का निरन्तर प्रयोग करना, विषैली दवाईयों का अति सेवन, प्रोटीन प्रधान व चिकनाई वाले पदार्थों का निरन्तर सेवन, साग-सब्जियों, फल एवं सलाद का कम प्रयोग करने आदि कारणों से कब्ज उत्पन्न हो जाती है।
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गुदा के भीतरी भाग पर अधिक व लगातार दबाव पड़ने या पौरुष ग्रन्थि (प्रोस्टेट) के बढ़ जाने से मूत्र का निष्कासन न हो पाने के कारण जो दबाव पड़ता है, उससे भी यह रोग हो जाता है।आमाशय, आँत आदि की विकृति के कारण तथा अजीर्ण होने से भी बवासीर का रोग उत्पन्न हो जाता है।
खूनी बवासीर के लक्षण
- गुदा ग्रीवा की शिराओं का कोई गुच्छे में रक्त भर जाना या सख्त हो जाना।
- गुदा में दर्द, जलन तथा खाज का होना।
- शौच के समय दबाव पड़ने से रक्त का आना।
- कभी मल के साथ खून आना या कभी बूँद-बूँद कर टपकना।
- गुदा के स्थान पर बोझ सा महसूस होना।
- रक्त एवं पीले रंग का पानी गुदा मार्ग से मस्सों के द्वारा निकलता रहता है।
- गुदा की रक्त वाहिनी नसों एवं स्नायुओं में रक्त एवं हवा की गति रुक जाने से गुदा द्वार पर छोटे-बड़े दाने उभर आते हैं, इन्हीं को मस्से कहते हैं।
यौगिक उपचार
- जानु शिरासन
- पश्चिमोत्तानासन
- वज्रासन
- सुसुप्त वज्रासन
- मयूरासन
- शशांकासन
- पवन मुक्तासन
- हलासन
- सर्वांगासन
- मत्स्यासन
- शवासन
उक्त यौगिक आसनों के अभ्यास के साथ-साथ यदि निम्नलिखित उपचार प्रक्रिया भी अपनाई जाये तो लाभ शीघ्रता से मिलता है।
- अश्विनी मुद्रा का अभ्यास- गुदा को बार-बार संकुचित एवं प्रसारित करते रहना।
- मूलबन्ध- गुदा का संकोचन करके श्वास बाहर रखकर ऊपर की ओर खिंचाव देना।
- धूप स्नान- प्रतिदिन सबेरे की सूर्य किरणों द्वारा स्नान।
उपवास एवं आहार सम्बन्धी सावधानी
यदि पीड़ा अधिक हो रही हो तो दो-तीन दिन का उपवास करना लाभप्रद होता है। इससे रक्त का बहना बन्द हो जायेगा। उपवास के दौरान सब्जी का सूप या केवल फलों के रस पर रहना चाहिये या नारियल पानी पियें।
आहार
- कच्ची साग-सब्जियों, पालक और सलाद के हरे पत्तों का प्रयोग सलाद के रूप में करें।
- कच्चा पपीता, तुरई, शलजम, लोकी, जिमीकन्द की सब्जी ठीक प्रकार से पकाकर खायें।
- फलों को दिन में दो-चार बार लें अथवा इनके रस का प्रयोग थोड़ी थोड़ी मात्रा में करें।
- बवासीर के रोगियों के लिए गाजर या उसका रस काफी लाभदायक सिद्ध होता है।
- लालमिर्च, खटाई एवं मसालों का प्रयोग बिल्कुल बन्द कर दें।
- भूख लगने पर ही खायें कब्ज न होने दें।
- रोग उत्पन्न होने के कारणों पर ध्यान दें और उनसे बचें।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।