प्लासी के युद्ध का क्या कारण था? प्लासी युद्ध का मुख्य परिणाम क्या था?

प्लासी के युद्ध का क्या कारण था: जाने इसके बारे में, 10 अप्रैल, 1756 ई. को अलीवर्दी खाँ की मृत्यु हो गई और उसके बाद उसका दोहिता सिराज उद्-दौला बंगाल का नवाब बना। जल्द ही अंग्रेजों और सिराज-उद्-दौला के बीच तीव्र मतभेद उत्पन्न हो गए, जिसके फलस्वरूप 23 जून, 1757 ई. में दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसे ‘प्लासी का युद्ध’ कहते हैं।

प्लासी के युद्ध का क्या कारण था (Plasi Ka Yudh Ka Kya Karan Tha)

प्लासी के युद्ध का क्या कारण था

क्यों हुआ था प्लासी का युद्ध

18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत की राजनीतिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। मुगल सम्राटों की दुर्बलता और अयोग्यता के कारण बंगाल, अवध तथा दक्षिण के प्रान्त स्वतन्त्र हो गए। 1740 ई. में अलीवर्दी खाँ बंगाल, बिहार और उड़ीसा का शासक बन बैठा।

वह नाममात्र के लिए मुगल सम्राट के अधीन था। व्यावहारिक रूप से वह एक स्वतन्त्र शासक था। उसने 1740 ई. से 1756 ई. तक शासन किया। व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्न को लेकर अलीवर्दी खाँ तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे।

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प्लासी का युद्ध का कारण

  • अंग्रेजों द्वारा नवाब पर दोषारोपण।
  • सिराज-उद्-दौला के विरुद्ध षड्यंत्र।
  • अलीनगर की संधि : फरवरी, 1757 ई.।
  • संधि की शर्तों की अवहेलना।
  • सिराज-उद्-दौला का कलकत्ता और कासिम बाजार पर आक्रमण।
  • अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग।
  • प्लासी के युद्ध की घटनाओं में 19 जून, 1757 ई. को कटवा पर अंग्रेज अधिकार, नवाब की सेना में 50,000 सैनिक तथा क्लाइव के पास 2,200 भारतीय एवं 500 यूरोपियन सैनिक 23 जून, 1757 ई. को प्लासी के मैदान में क्लाइव का नवाब की सेना पर आक्रमण 28 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों द्वारा मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित करना।

प्लासी का युद्ध निर्णायक युद्धों में से एक माना जाता है। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

अंग्रेजों द्वारा नवाब पर दोषारोपण (Nawab Alleged by The Britishers)

ग्रेज विद्वानों का मानना है कि नवाब ने अपने कुछ व्यक्तित्व पत्रों से अंग्रेजों को यह आश्वासन दिया था कि वह अंग्रेजों के शत्रुओं से मित्रता नहीं रखेगा। कम्पनी ने इस प्रकार के आश्वासन को भी सन्धि की शर्तों की भाँति माना, जबकि वास्तविकता यह थी कि सन्धि के समय से ही नवाब ने इस प्रकार की शर्त को मानने से इनकार कर दिया था।

संयोगवश उस समय बंगाल के फ्रांसिसीयों ने नवाब से सम्बन्ध बढ़ाने का प्रयास किया, तो क्लाइव ने इसे बुरा माना। उसे यह भय लगा कि कहीं नवाब और फ्रांसिसी मिलकर अंग्रेजों पर आक्रमण न कर दें, इसलिए क्लाइव ने फ्रांसिसीयों की बस्ती चन्द्रनगर पर आक्रमण करने के लिए नवाब की अनुमति माँगी।

नवाब फ्रांसिसीयों का विरोध मोल नहीं लेना चाहता था, अतः उसने अंग्रेजों को गोलमाल जवाब भिजवा दिया। क्लाइव ने 14 मार्च, 1757 ई. में चन्द्रनगर (बंगाल) पर आक्रमण कर दिया और उस पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने नवाब पर अलीनगर की सन्धि की शर्तों को तोड़ने का आरोप लगाया।

नवाब ने इसे स्वीकार नहीं किया। उसका कहना था कि, बंगाल में फ्रांसिसीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं किया था, जिसके आधार पर उनको अंग्रेजों का शत्रु कहा जा सके, परन्तु अंग्रेज अपनी ही बात पर डटे रहे।

सिराज-उद्-दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र (Conspiracy against Siraj-ud daulla)

बहुत से विद्वानों का मानना है कि सिराज-उद्-दौला के विरुद्ध राज्य में असंतोष व्याप्त था। बहुत से मुस्लिम सरदार प्रभावशाली हिन्दुओं की सहायता से नवाब को गद्दी से हटाने का षड्यन्त्र कर रहे थे। जब उन्होंने अंग्रेजों से इसमें सहयोग माँगा, तो उन्होंने तत्काल स्वीकृति दे दी।

मुस्लिम सरदारों में मीर जाफर एवं मिर्जा अमीर बेग आदि प्रमुख थे। नवाब इनको किसी न किसी रूप में अपमानित कर चुका था। नवाब धार्मिक दृष्टि से कट्टर था। उसने धार्मिक अनुदारता की नीति आरम्भ कर दी थी, जिससे हिन्दू असंतुष्ट हो रहे थे।

जगत सेठ बन्धुओं मेहताबराय और स्वरूपचन्द को भी नवाब ने अपमानित कर दिया था। रामवल्लभ को दीवान के पद से एवं मीर जाफर को मीर बख्शी के पद से हटा दिया गया था। प्लासी के युद्ध का क्या कारण था?

जगत सेठ बन्धुओं मेहताबराय और स्वरूपचन्द को मीर बख्शी के पद से हटा दिया गया था। नदिया का शक्तिशाली जमींदार महाराजा कृष्णचन्द भी हिन्दू विरोधी नीति से असंतुष्ट था। इसके अलावा हिन्दू व्यापारियों और अंग्रेजों के हितों में काफी निकटता भी थी।

अलीनगर की सन्धि (The Treaty of Alinagar)

कलकत्ता के पतन की सूचना जब मद्रास पहुँची तो वहाँ के अंग्रेज अधिकारी अत्यधिक उत्तेजित हो उठे। उन्होंने कलकत्ता पर पुनः अधिकार करने के लिए समुद्री मार्ग से एडमिरल वाट्सन को और स्थल मार्ग से क्लाइव को भेजा।

दिसम्बर, 1756.ई. के अन्त में अंग्रेजों की सेना बंगाल पहुँच गई। क्लाइव और वाट्सन ने सिराज-उद्-दौला के प्रमुख अधिकारियों-राजा मानिकचन्द, जिसे सिराज-उद्-दौला ने कलकत्ता का राजा नियुक्त किया था, धनी व्यापारी अमीचन्द, प्रसिद्ध साहूकार जगत सेठ और मीर जाफर आदि को अपनी ओर मिला लिया।

राजा मानिकचन्द को भारी राशि दी गई। इस प्रकार जनवरी, 1757 ई. में अंग्रेजों ने कलकत्ता पर अधिकार कर लिया और हुगली तथा आसपास के भाग को लूट लिया। नवाब सिराज उद्-दौला को जब इसकी सूचना मिली, तो वह 40,000 सैनिकों के साथ कलकत्ता की ओर बढ़ा, परन्तु एक साधारण युद्ध के बाद वह अंग्रेजों से सन्धि करने के लिए तैयार हो गया।

नवाब सिराज-उद्-दौला ने जब सन्धि का प्रस्ताव रखा, तो क्लाइव ने उसे स्वीकार कर लिया। फरवरी, 1757 ई. को दोनों पक्षों के बीच सन्धि हो गई, जो अलीनगर की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं-

  • बंगाल, बिहार और उड़ीसा में पहले की भाँति कम्पनी का दस्तक के प्रयोग का अधिकार मान लिया गया।
  • जिन फैक्ट्रियों पर नवाब ने अधिकार कर लिया था, वे वापस कम्पनी को लौटा दी जाएंगी। इसके अतिरिक्त नवाब अंग्रेजों की हुई हानि के बदले में उनको धन भी देगा।
  • मुगल बादशाह द्वारा अंग्रेजों को दी गई सभी व्यापारिक सुविधाओं तथा विशेषाधिकारों को नवाब ने स्वीकार कर लिया।
  • अंग्रेज अपनी इच्छानुसार कलकत्ते को किलेबन्दी कर सकेंगे। अंग्रेजों को अपने सिक्के ढालने का अधिकार होगा।
  • उपर्युक्त सुविधाओं के बदले में कम्पनी ने नवाब को उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया।

अलीनगर की सन्धि की शर्तों की अवहेलना (Neglect of The Treaty of Alinagar)

अंग्रेज और नवाब दोनों में से कोई भी अलीनगर सन्धि की शर्तों का पालन करने के लिए तैयार नहीं था। सिराज-उद्-दौला ने अंग्रेजों को पुआवजा देने का वचन दिया था, किन्तु उसने किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया। रेम्जोम्योर ने लिखा है। कि, “नवाब सन्धि की शर्तों को पूरा करने के लिए तैयार न था, इस कारण युद्ध आवश्यक बन गया।”

इसी प्रकार का आरोप कम्पनी पर भी लगाया जा सकता था, क्योंकि कम्पनी ने विरुद्ध युद्ध की तैयारी करना उचित समझा। अंग्रेजों का मानना था कि जब तक नवाब सिराज-उद्-दौला नवाब बना रहेगा, कम्पनी के हितों को खतरा बना रहेगा।

सिराज-उद्-दौला का कलकत्ता और कासिम बाजार पर आक्रमण Siraj-ud-daulla’s Attack on Calcutta & Kassim Bazar)

4 जून, 1756 ई. को सिंराज-उद्-दौला की सेना ने मुर्शिदाबाद के निकट स्थित अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया। फैक्ट्री के अंग्रेज अधिकारी वाट्सन ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद नवाब की सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया।

उन्होंने फोर्ट विलियम दुर्ग को घेर लिया। कलकत्ता का गवर्नर ड्रेक जॉन बचकर भाग निकला और 20 जून, 1756 ई. को कलकत्ता पर भी नवाब का अधिकार हो गया। प्लासी के युद्ध का क्या कारण था?

अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग (Abuse of Mercantile Privileges by The Britishers)

1717 ई. में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने अंग्रेजी कम्पनी को 3,000 रुपये वार्षिक के बदले में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में बिना चुँगी दिए व्यापार करने का अधिकार दे दिया, किन्तु अंग्रेजों ने इन व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।

वे अपने दस्तक (अनुमति पत्र) भारतीय व्यापारियों को बेच कर स्वयं धन कमाने लगे तथा नवाब के राजकोष को हानि पहुँचाने लगे। इसके अलावा कम्पनी के कर्मचारी निजी व्यापार में भी दस्तकों का उपयोग करने लगे।

इस प्रकार वे लोग अपने व्यापार के सामान को भी कम्पनी का सामान बता कर चुँगी बचा लेते थे। इससे बंगाल की सरकार को काफी हानि उठानी पड़ी थी, अत: इस कारण भी दोनों पक्षों में कटुता बढ़ गई।

प्लासी के युद्ध की घटनाएँ (Events of The Battle of Plassey)

षड्यन्त्र पूरा होते ही क्लाइव ने सिराज-उद्-दौला से युद्ध छेड़ने का बहाना खोजना शुरू किया। उसने नवाब को एक पत्र लिखा, जिसमें उस पर अलीनगर की संन्धि को भंग करने का आरोप लगाया। नवाब का उत्तर आने से पूर्व ही क्लाइव ने एक सेना के साथ बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद की ओर कूच कर दिया।

19 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों ने कटवा पर अधिकार कर लिया। इसकी सूचना मिलते ही नवाब भी अपनी राजधानी से चल पड़ा। दोनों पक्षों की सेनाएँ प्लासी के मैदान में आमने-सामने आ डटीं। नवाब की सेना में 50,000 सैनिक थे, जबकि क्लाइव के पास 500 यूरोपियन तथा 2,200 भारतीय सैनिक थे।

नवाब की विशाल सेना को देखकर क्लाइव घबरा गया था, क्योंकि नवाब ने युद्ध से पूर्व मीर जाफर के पास जाकर अपनी पगड़ी उसके सामने रखकर कहा कि, “मीर जाफर इस पगड़ी की लाज तुम्हारे हाथों में है।” इस पर मीर जाफर ने कुरान को हाथ लगाकर वफादारी की कसम खाई।

इससे क्लाइव को संदेह हो गया कि कहीं मीर जाफर नवाब से तो नहीं मिल गया। विद्यावाचस्पति के अनुसार, “एक बार क्लाइव की आँखों में आँसू आ गए। । वह प्लासी के मैदान में एक वृक्ष के नीचे बैठा-बैठा काफी देर तक आँसू बहाता रहा। इसी समय मीर जाफर ने क्लाइव को संदेश भेजा कि सब तैयार है।

भीषण आक्रमण कर दो।” इससे उत्साहित होकर 23 जून, 1757 ई. को क्लाइव ने आक्रमण कर दिया। षड्यन्त्र के कारण नवाब का सेनापति मीर जाफर और दुर्लभराय अपने-अपने सैनिक दस्तों के साथ चुपचाप युद्ध का तमाशा देखते रहे। उन्होंने न तो युद्ध में भाग लिया और न ही नवाब की रक्षा का कोई प्रयास किया।

नवाब के एक सेनानायक मीर मुरनुद्दीन ने शत्रु का सामना किया, परन्तु थोड़ी देर बाद ही वह मारा गया। नवाब अपने लोगों के विश्वासघात से घबरा गया और जान बचा कर युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ, परन्तु राजमहल के निकट उसे पकड़ लिया गया और मुर्शिदाबाद भेज दिया।

28 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया। 2 जुलाई को मीर जाफर के पुत्र मीरन के आदेशानुसार मुहम्मद बेग ने नवाब का वध कर दिया। इस प्रकार क्लाइव ने बिना किसी विशेष प्रयास के षड्यन्त्र द्वारा युद्ध जीत लिया।

प्लासी के युद्ध के महत्त्व और परिणाम (Importance & Consequences of The Battle of Plassey)

यद्यपि सैनिक दृष्टिकोण से प्लासी के युद्ध को युद्ध नहीं कहा जा सकता, फिर भी इसके परिणाम बड़े महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। यह भारतीय इतिहास की एक युगान्तकारी घटना सिद्ध हुई। जे.एन. सरकार लिखा है कि, 23 जून, 1757 ई. को भारत में मुगलकाल का अवसान हो गया तथा आधुनिक काल का प्रार्दुभाव हुआ।

वस्तुतः इस घटना ने सत्ता में एक महान् परिवर्तन किया। कल तक जो जाति भारतीय शासकों की दयादृष्टि पाकर व्यापार के लिए प्रयत्नशील थी, जिसका अस्तित्व भारतीय शासकों की कृपा पर निर्भर था, अब वे ही भारतीय शासक इन व्यापारियों की कृपा पर निर्भर हो गए। अंग्रेज जाति को इसने व्यापारी से शासक बना दिया।

वास्तव में ऊपर से देखने पर यह घटना साधारण दिखाई देती है, जिसमें सिराज उद्-दौला को नवाब पद से हटाकर मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया, लेकिन गहराई से विचार करने पर ज्ञात होता है कि इसके परिणाम अत्यन्त दूरगामी एवं युगान्तकारी प्रमाणित हुए, इसलिए इस युद्ध की गणना भारत के निर्णायक युद्धों में की जाती है।

राजनीतिक महत्त्व एवं परिणाम (Political Importance & Consequences)

  • बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। यद्यपि मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया, किन्तु वह नाममात्र का शासक था। केवल अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली था और शासन की वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथों में थी।
  • प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। अब अंग्रेजी कम्पनी केवल एक व्यापारिक कम्पनी न रहकर राजनीतिक सत्ता हो गई। अब नवाब पर अंग्रेजी कम्पनी का नियन्त्रण स्थापित हो गया। कम्पनी की कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति प्रशासन में उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकता था। अंग्रेजों का राजनीतिक प्रभुत्व इस बात से स्पष्ट होता है कि बाद में मीर जाफर को बंगाल की गद्दी से हटाने में अंग्रेजों को तनिक भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।
  • प्लासी की जीत से अंग्रेजों की महत्त्वाकांक्षाएँ बढ़ गई। अब वे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने लगे। बंगाल को आधार बनाकर वे शेष भारत पर भी अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे।
  • बंगाल की राजनीति में दूसरी यूरोपियन शक्तियों का प्रभाव नष्ट हो गया। फ्रांसिसी फिर भी बंगाल में अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सके। डचों ने अंग्रेजों को चुनौती दी, तो उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा। इस प्रकार बंगाल में अंग्रेजों की सर्वोच्चता स्थापित हो गई।
  • इस युद्ध में मुगल सम्राट की शक्ति तथा प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचाया। मुगल सम्राट ने जिस व्यक्ति को बंगाल का नवाब अधिकृत किया था, उसे अंग्रेजों ने हटा दिया और उसके स्थान पर दूसरे व्यक्ति को नवाब बना दिया। इस सारे घटनाक्रम को मुगल सम्राट एक मूक दर्शक की तरह देखता रहा। इससे बंगाल का प्रान्त मुगल सम्राट के हाथों से निकल गया और इससे मुगल सम्राट की दुर्बलता का पता चल गया। प्रो. जे.एन. सरकार का कहना है कि, “23 जून, 1757 ई. के भारत में मुगलकाल का अवसान हो गया तथा आधुनिक काल का प्रादुर्भाव हुआ।
  • प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी के साधनों में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप वे कर्नाटक के युद्धों में फ्रांसिसीयों को परास्त करने में सफल हुए।
  • प्लासी की विजय ने भारत की राजनीतिक दुर्बलता प्रकट कर दी। अंग्रेजों को पता चल गया कि बंगाल के हिन्दू मुस्लिम शासन से असंतुष्ट हैं तथा वे बंगाल के शासन को समाप्त करने के लिए विदेशियों से सांठ-गांठ भी कर सकते हैं। इससे अंग्रेजों का मनोबल बढ़ गया और उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि षड्यन्त्रों एवं कुचक्रों द्वारा भारतीयों को नतमस्तक करके यहाँ अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना की जा सकती है।

आर्थिक महत्त्व व परिणाम (Economic Importance & Consequences)

आर्थिक दृष्टि से भी इस युद्ध के परिणाम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहे। आर्थिक दृष्टि से बंगाल भारत का सर्वाधिक समृद्ध प्रान्त था। 1757 ई. से 1760 ई. के मध्य मीर जाफर ने लगभग 3 करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में अंग्रेजों को दिए।

प्लासी के युद्ध के बाद स्वयं क्लाइव को 30,000 पौण्ड प्राप्त हुए और बाद में 37,70,833 पौण्ड क्षतिपूर्ति के रूप में प्राप्त हुए। कुछ विद्वानों के अनुसार 16 लाख रुपये और कुछ के अनुसार अंग्रेजों को 2 से 3 लाख रुपये के बीच रकम प्राप्त हुई थी। मीर जाफर ने कम्पनी के अधिकारियों को और सैनिकों को अच्छी-खासी रकम उपहार में दी।

ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों को संतुष्ट करने के लिए मीर को अपने महल के सोने-चाँदी के बर्तन और अन्य सामान बेचना पड़ा था। वस्तुतः बंगाल की सम्पत्ति पर अधिकार करके अंग्रेजों ने कर्नाटक के युद्धों में विजय प्राप्त की और भारत में अपनी राजनीतिक स्थिति को दृढ़ किया।

अंग्रेजों को बंगाल में 24 परगनों की जागीर प्राप्त हुई। बंगाल से प्राप्त धन से कम्पनी की आर्थिक स्थिति में पर्याप्त विकास हो रहा था, परन्तु इससे बंगाल की आर्थिक दशा दिनोंदिन गिरती जा रही थी। अंग्रेजों ने बंगाल का जो आर्थिक शोषण किया, उसकी कल्पना करना आसान नहीं है।

प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में व्यापार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता मिल गई। कम्पनी ने इस सूबों के अनेक भागों में अपनी फैक्ट्रियाँ तथा कोठियाँ स्थापित की। अंग्रेजों ने 19 अगस्त, 1747 ई. में सबसे पहले कलकत्ते में अपनी टकसाल स्थापित की और अपना रुपया चलाया।

सैनिक महत्त्व (Military Importance)

प्लासी के युद्ध (प्लासी के युद्ध का क्या कारण) के बाद बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया था, जो सैनिक दृष्टि से बड़े महत्त्व का था। दक्षिण भारत में निजाम तथा मराठों की उपस्थिति के कारण अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना का काम सरल न था,

किन्तु बंगाल इन शक्तियों से काफी दूर था अंग्रेज बंगाल पर आधिपत्य स्थापित कर सुगमता के साथ मुगलों की राजधानी दिल्ली का द्वार खटखटा सकते थे। इसके अलावा बंगाल समुद्र तट पर स्थित था, अतः उस पर अधिकार होने के बाद अंग्रेजों के लिए जलमार्ग से अपनी सेनाएँ लाना आसान हो गया।

नैतिक महत्त्व और परिणाम (Moral Importance & Consequences)

  • अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए और अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का अनुसरण करने का निश्चय किया।
  • प्लासी के युद्ध से भारतीयों का नैतिक पतन हो गया। मीर जाफर, राय दुर्लभ तथा अमीचन्द आदि के चारित्रिक पतन और विश्वासघात से अंग्रेजों को पता चल गया कि कुछ स्वार्थी भारतीय लोग सोने-चाँदी के टुकड़ों से अपनी मातृभूमि के साथ विश्वासघात कर सकते हैं।
  • अंग्रेजों को अपने उद्देश्य प्राप्त करने के लिए षड्यन्त्र एवं कुचक्र रचने के लिए प्रोत्साहन मिला।
  • अंग्रेजों ने उचित एवं अनुचित सभी तरीकों से बंगाल का धन प्राप्त करना शुरू कर दिया। बंगाल में भ्रष्टाचार व्यापक हो गया तथा नवाब और कम्पनी दोनों बंगाल के लोगों का आर्थिक शोषण करने लगे।

निष्कर्ष (Conclusion)

प्लासी के युद्ध का सैनिक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं है, किन्तु परिणामों की दृष्टि से यह युद्ध अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह भारत के निर्णायक युद्धों में गिना जाता है। इस युद्ध ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली। इस युद्ध के फलस्वरूप बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया और अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। प्लासी के युद्ध का क्या कारण था

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