रहमत अली का जीवन परिचय? रहमत अली पर निबंध?

रहमत अली का जीवन परिचय (Rahmat Ali Ka Jeevan Parichay), रहमत अली का जन्म जन्म 16 नवंबर 1897 को पंजाब के बलचौर, ज़िला होशियारपुर में हुआ था। इनकी मृत्यु 3 फरवरी 1951 को हुई थी। रहमत अली सच्चे देश-प्रेमी थे, स्वतंत्रता के दीवाने थे। उन्होंने देश-प्रेम में अपना सब कुछ निछावर कर दिया था- घर-द्वार, मजहब, सुख-आराम सब कुछ। वे देश-प्रेम में मस्त होकर कांटों को भी पुष्प के समान चूमते थे, हंसते-मुस्कराते हुए कंकड़ों पर चलते थे।

रहमत अली का जीवन परिचय

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रहमत अली का जीवन परिचय (Rahmat Ali Ka Jeevan Parichay)

पूरा नामचौधरी रहमत अली
जन्म16 नवंबर 1897
जन्म स्थानबलचौर, ज़िला होशियारपुर, पंजाब
मृत्यु3 फरवरी 1951

वे महान साहसी और महान त्यागी थे। वे इस समय हमारे बीच पें नहीं हैं, किन्तु उनके त्याग और बलिदान की कहानियां आज भी हमारे प्राणों में देश प्रेम का रक्त संचार करती हैं।

रहमत अली पंजाब की धरती की गोद में पैदा हुए थे। विद्यार्थी जीवन में ही उनके हृदय में देश-प्रेम की लता पुष्पित-पल्लवित हो उठी थी। वे ज्यों-ज्यों वय की सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, त्यों-त्यों उनके देश-प्रेम की लता में ऐसे पुष्प लगने लगे, जिनकी पंखुड़ियों पर त्याग और बलिदान का पराग-सा बिछा रहता था। जो भी उस पराग को सूंघता था, रसिक भंवरों की तरह गुनगुनाने लगता था

देवतुल्य वह मनुज निरंतर अर्चनीय है,
बसता जिसमें देश-प्रेम, सुचि वन्दनीय है।

रहमत अली अपने विद्यार्थी जीवन में अंग्रेज शासकों के अत्याचारों की कहानियां जब पढ़ते, तो उनके हृदय में अंग्रेजों के प्रति घृणा उत्पन्न हो उठती थी। वे मन ही मन अंग्रेजों के विरुद्ध बहुत-सी बातें सोच जाया करते थे। यही नहीं, वे यह भी सोच उठते थे कि काश, अंग्रेज हिन्दुस्तान से निकल जाते। वे अंग्रेजों को निकालने के लिए तरह तरह के उपाय सोचा करते थे।

अपने विचारों और अपनी भावनाओं के कारण रहमत अली का सम्पर्क क्रान्तिकारियों से हुआ। उन दिनों पंजाब में कई ऐसे क्रान्तिकारी रहते थे, जो अंग्रेजी शासन को समाप्त करने के प्रयत्नों में गुप्त रूप से लगे हुए थे।

क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आने पर रहमत अली के हृदय में भी क्रान्ति की आग प्रज्वलित हो उठी। वे भी क्रान्तिकारियों के दल में सम्मिलित हो गये और गुप्त रूप से अंग्रेजी शासन को उलटने के लिए कार्य करने लगे।

वह एक अद्भुत युग था। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कुछ भी कहना या लिखना अपराध समझा जाता था। केवल भारत माता की जय बोलने पर ही जेलों में डाल दिया जाता था, गोली से उड़ा दिया जाता था। यही कारण था कि भारत मां के सैकड़ों सपूत देश छोड़ कर अमेरिका चले गये थे।

वे भारत को स्वतंत्र करना चाहते थे क्योंकि भारत में रहकर वे न तो जनता को जगा सकते थे और न अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कुछ कार्य कर सकते थे, क्योंकि ऐसे लोगों के दमन के लिए गोरी सरकार के पास फांसी के फंदे को छोड़कर और कुछ नहीं था।

उन दिनों अमेरिका में जो भारतीय क्रान्तिकारी रहते थे, उनमें लाला हरदयाल, बाबा सोहनसिंह, बाबा केसर सिंह और काशीराम आदि के नाम मुख्य थे। इन लोगों ने आपस में मिल कर एक दल की स्थापना की थी। उस दल का नाम था गदर पार्टी।

गदर पार्टी का उद्देश्य था, भारत में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह करना, भारत की स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार से प्रयत्न करना। गदर पार्टी की ओर से ‘गदर’ नाम का एक अखबार भी निकाला जाता था। ‘गदर’ कई भाषाओं में छपता था और संसार के कई देशों में भेजा जाता था।

‘गदर’ की बहुत-सी प्रतियां भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में पहुंचती थीं, जो बड़े प्रेम से पढ़ी जाती थीं। ‘गदर’ का हरएक अंक ऐसे लेखों और ऐसी कविताओं से भरा रहता था, जो अंग्रेजी शासन के प्रति हृदय में घृणा और विद्रोह का भाव उत्पन्न करती थीं।

रहमत अली जब क्रान्तिकारियों के दल में सम्मिलित हो गये, तो उन्होंने भी यह अनुभव किया कि वे भारत में रहकर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उचित ढंग से कार्य नहीं कर सकते। अतः वे अमेरिका चले गये और गदर पार्टी में सम्मिलित हो गये।

वे अपनी कर्मठता और कार्यकुशलता के कारण गदर पार्टी अध्यक्ष बनाये गये। उन्होंने गदर पार्टी के अध्यक्ष के रूप में जो कार्य किये वे बड़े महत्त्वपूर्ण तो थे ही, साहसपूर्ण भी थे।

रहमत अली ने गदर पार्टी के अध्यक्ष के रूप में संसार के कई देशों का दौरा किया। वे जहां भी जाते थे, अंग्रेजों के अत्याचारों का वर्णन करते थे और भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रेम और सहानुभूति भी पैदा करते थे। उन्होंने संसार के देशों का दौरा करते हुए बड़े-बड़े कष्ट भी उठाये। गुप्तचर उनके पीछे लगे रहते थे।

अतः किसी भी जगह अधिक दिनों तक रह नहीं पाते थे। कई बार ऐसा भी हुआ कि वे अंग्रेजी सरकार के गुप्तचरों के जाल में फंस गये। किन्तु अपने साहस और अपने बुद्धि चातुर्य से उस जाल को तोड़कर बाहर निकल गये।

1914 ई० में जब संसार का प्रथम महायुद्ध छिड़ा और अंग्रेज उस युद्ध में फंसे, तो गदर पार्टी के सदस्यों ने समय, स्थिति और अवसर से लाभ उठाने का निश्चय किया। उन्होंने सोचा, अंग्रेज इस समय महायुद्ध में फंसे हुए हैं।

यही समय है, जब भारत में विद्रोह की आग जला कर अंग्रेजी शासन को भस्म किया जा सकता है और अंग्रेजों के शिकंजे से भारत को छुड़ाया जा सकता है। अतः गदर पार्टी के सदस्यों ने भारत में विद्रोह की आग जलाने के लिए एक योजना बनाई।

भारत में विद्रोह की आग प्रज्वलित करने के लिए योजना के अनुसार गदर पार्टी के पचासों सदस्य भारत की ओर चल पड़े। कुछ लोग तो सकुशल भारत पहुंचकर कार्य करने लगे, किन्तु कुछ को भेद खुल जाने के कारण मार्ग में ही बन्दी बना लिया गया।

बन्दी बनाये गये क्रान्तिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। मुकद्दमे में कुछ लोगों को तो आजीवन काले पानी का और कुछ लोगों को फांसी का दंड दिया गया।

जो क्रान्तिकारी अमेरिका से चलकर भारत पहुंच गये थे, उनमें रहमत अली और काशीराम भी थे। रहमत अली और काशीराम गुप्त रूप से पंजाब जा पहुंचे और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रचार करने लगे। उन्होंने पंजाब में अपने दल की स्थापना की और कई ऐसी योजनाएं बनाई जो साहस और बलिदान के भावों से ओतप्रोत थीं।

रहमत अली सारे पंजाब में विद्रोह की आग जलाना चाहते थे। किन्तु उनके पास धन का अभाव था। धन की कमी होने के कारण वे शस्त्रादि खरीद नहीं सकते थे। अतः उन्होंने सर्वप्रथम धन एकत्र करने का निश्चय किया।

रहमत अली ने धन के लिए मोगा का सरकारी खजाना लूट लिया। उन्होंने जिस प्रकार अपने साथियों के साथ खजाने को लूटा वह साहसपूर्ण कार्य तो था ही, चकित कर देने वाला भी था। अंग्रेजों को दांतों तले उंगली दबानी पड़ी थी।

रहमत अली ने मोगा के सरकारी खजाने का लूटने के पश्चात् फिरोजपुर के शस्त्रागार को भी लूटने का निश्चय किया। किन्तु धावा बोलने के पूर्व ही भेद खुल गया। रहमत अली अपने साथियों के साथ बंदी बना लिए गये। जो लोग बन्दी बनाये गये थे वे सभी गदर पार्टी के सदस्य थे।

रहमत अली और उनके साथियों पर मुकद्दमा चलाया गया। मुकद्दमा क्या था, एक नाटक था। गोरी सरकार ने इसकी आड़ लेकर रहमत और उसके साथियों को फांसी का दंड दिया। रहमत अली देशभक्ति का गीत गाते हुए फांसी के तख्ते पर झूल गये।

उनकी वीरता, उनका साहस और उनका त्याग मन को मुग्ध तो करता ही है, प्राणों में देशभक्ति की प्रेरणा भी उत्पन्न कर देता है। उनकी याद भारतीयों के मन में युद्ध युगों तक बनी रहेगी। इनकी मृत्यु 3 फरवरी 1951 को हुई थी।

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