रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध? रेलवे स्टेशन पर एक घंटा निबंध हिंदी में?

रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध:- मनुष्य को जीवन में किसी न किसी कारण यात्रा तो करनी ही पड़ती है। मनुष्य जीवन भी तो स्वयं से में एक यात्रा है, जो जन्म से लेकर महाप्रयाण तक चलती है। इस जीवन यात्रा को अर्थात् जीविका को चलाने के लिए भी मनुष्य को इधर-उधर जाना ही पड़ता है। पहले लोग पैदल, बैल-गाड़ियों द्वारा या घोड़ा-गाड़ियों द्वारा यात्रा करते थे। विज्ञान के आविष्कारों ने यात्रा के अनेक नवीन साधनों को जन्म दिया है। जिनमें सबसे सुलभ साधन है- रेल । रेल द्वारा यात्रा करने के लिए यात्री को ‘रेलवे स्टेशन’ जाना पड़ता है। स्टेशन से ही किसी भी स्थान के लिए गाड़ी पकड़ी जाती है।

रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध

रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध
Railway Station Ka Drishya Nibandh

‘स्टेशन’ या ‘अड्डा’ उस स्थान को कहते हैं, जहाँ विभिन्न स्थानों से और विभिन्न दिशाओं से आने वाली तथा विभिन्न स्थानों या दिशाओं में जाने वाली गाड़ियाँ रुकती हैं और जाती हैं। इनमें रेलवे स्टेशन का दृश्य भी बड़ा निराला होता है।

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स्टेशन के बाहर का दृश्य

रेलवे स्टेशन तो छोटे-बड़े सभी नगरों में होते हैं, पर बड़े नगरों के स्टेशन के पास बहुत बड़े-बड़े भवन होते हैं। भवन के पास ही अन्दर की ओर प्लेटफार्म और बाहर की ओर आने वाले यात्रियों के लिए विज्ञामगृह होता है। यहीं विभिन्न दिशाओं में जाने वाली गाड़ियों के लिए टिकट खिड़कियाँ होती हैं, जहाँ से गन्तव्य स्थान के लिए या प्लेटफार्म पर जाने के लिए टिकट मिलते हैं। स्टेशन से बाहर एक ओर तांगों, मोटर कारों, साइकिलों तथा बसों आदि के ठहरने के स्थान होते हैं। यहाँ चौबीसों घंटे यात्रियों की भीड़ दिखाई देती है। गाड़ियों के आने-जाने के समय तो वह भीड़ मेले का-सा रूप धारण कर लेती है।

यात्री ज्यों ही किसी सवारी से उतरता है, लाल वर्दीधारी भार-बाहक (कुली) झपट कर उसे घेर लेते हैं। हाँ, बाबू साहब! बीबी जी! कहाँ जाएँगे? ले चलूँ सामान? ज्यादा पैसे न लूँगा। जो हक का बनता है दे दीजिए।” कहते हुए वे सामान उठाने को तैयार हो जाते हैं। टिकट खिड़कियों पर टिकटार्थियों की लम्बी-लम्बी पंक्तियाँ लगी होती हैं। कहीं आरक्षण खिड़कियों पर आरक्षण कराने वालों में ही पहले मैं आया था, दूसरी बारी मेरी थी’ इस प्रकार का झगड़ा होता रहता है। कहीं फर्श पर यात्री बैठे गाड़ी की प्रतीक्षा में रहते हैं। कहीं सोते हुए और कहीं ऊँघते हुए लोग दिखाई देते हैं। कहीं कुछ लोग पूछताछ कार्यालय से पूछताछ करते दिखाई देते हैं।

प्लेटफार्म पर

भवन के भीतरी ओर अनेक प्लेटफार्म होते हैं, जहाँ विशेष दिशा से आने वाली और विशेष दिशा को जाने वाली गाड़ियाँ खड़ी होती हैं। यहाँ भी यात्रियों का मेला-सा लगा रहता है। गाड़ी रुकते हुए या जाने के समय यात्रियों की दौड़-धूप, कुलियों का रेला, यात्रियों का कोलाहल, गाड़ी की गड़गड़ाहट, इंज की सीटी एक विचित्र सा आकर्षक वातावरण उत्पन्न कर देते हैं। कहीं ध्वनि-विस्तारक पर गाड़ियों के आने-जाने की सूचना तो कहीं यात्रियों की कुली के साथ छीना-झपटी भी देखी जा सकती हैं।

सामान बेचने वाले

प्लेटफार्म पर सामान बेचने वालों का तो कहना ही क्या? उनकी भीड़ भी कुछ कम नहीं होती। खोमचे वाले तो रेहड़ी एक जगह लगाए ही खेड़े रहते हैं और कुछ चलते फिरते वस्तुएँ बेचते हैं उनकी आवाजों के कुछ नमने देखिए- “पान-बीड़ी-सिगरेट-1 चाय– -गरम चाय । दूध गरम – -गरम। बड़े– दाल- –बड़े– पकोड़ी, समोसे। अखबार—मेगजीन -हिन्दुस्तान – धर्मयुग – फिल्मी अखबार । चूड़ी लो चूड़ी- – -बिन्दिया –1″ इस प्रकार विशेष स्वर में आवाज करते हुए ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। यात्री भी कुछ शीघ्रता में कुछ आराम से सामान खरीदते हैं और खाते हैं। गाड़ी आने का समय हो

ज्यों ही यात्री ध्वनि-विस्तारक से सुनते हैं कि—हावड़ा से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म न ० 3 पर आ रही है। मसूरी एक्सप्रैस नं० 12 प्लेटफार्म पर पहुँचने वाली है।’ यात्रियों और कुलियों में भगदड़-सी मच जाती है। सब शीघ्रतातिशीघ्र पहले वहाँ पहुँच जाना चाहते हैं। इसी प्रकार गाड़ी के जाते हुए भी यात्रियों की भगदड़, सामान रखने की जल्दबाजी, यात्रियों का झगड़ा, कुलियों की हाथापाई, विभिन्न वेशभूषा वाले यात्री, रेलवे स्टेशन के दृश्य को आकर्षक बना देते हैं।

उपसंहार

जब हम यात्रा करने के लिए जाते हैं, उस समय इस बातावरण का पूरा आनन्द नहीं लिया जा सकता, क्योंकि तक तो गाड़ी में स्थान पाने की शीघ्रता होती है, उस वातावरण के ठीक दर्शन के लिए तो खाली समय में वहाँ जाकर दो-चार घंटे रुक कर ही रहना चाहिए। तभी उस दृश्य का पूरा-पूरा आनन्द लिया जा सकता है।

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