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राजा के राज्य में मंदिर से सोने की मूर्तियां चोरी की कहानी

राजा के राज्य में मंदिर से सोने की मूर्तियां चोरी: राजा कुशालसिंह बड़ा ही नेक व पराक्रमी राजा था। उसके पास अपार धन-दौलत थी। वह प्रजा की भलाई के कामों में लगा रहता था। प्रजा भी राजा से खुश थी। पड़ोसी राजा कुशालसिंह की खुशहाली और लोकप्रियता से जलते थे, परंतु कुशालसिंह के राज्य की शक्ति के आगे उनका कोई जोर नहीं चलता था।

राजा के राज्य में मंदिर से सोने की मूर्तियां चोरी

राजा के राज्य में मंदिर से सोने की मूर्तियां चोरी

एक बार राजा ने सोचा कि क्यों न राज्य में कुछ मंदिर बनवाए जाएं। उसने अपने मंत्री से कहा-” हमारे राज्य में मंदिर बहुत कम हैं। नगरवासियों को पूजा-अर्चना में असुविधा होती होगी। मेरे विचार से राज्य में कुछ अच्छे मंदिरों का निर्माण होना चाहिए। उन मंदिरों में भगवान की सोने की मूर्तियां स्थापित हो। मंदिर तथा उनकी मूर्तियां कला के उत्कृष्ट नमूने होने चाहिए। “

मंत्री बोला “ठीक है महाराज, जैसी आपकी आज्ञा।’

अगले दिन से ही मंदिरों का निर्माण कार्य शुरू हो गया। विभिन्न राज्यों के कारीगरों को काम पर लगाया गया। राजा कभी-कभी स्वयं जाकर राजधानी के मंदिरों के काम का निरीक्षण करता था। मूर्तिकारों को मूर्तियां बनाने का पारिश्रमिक सोना तथा हीरे-जवाहरातों में दिया जाता था। कारीगरों की पूरी निगरानी भी रखी जाती थी। शीघ्र ही तीन-चार मंदिर बनकर तैयार हो गए। मंदिर बहुत ही दर्शनीय बने थे। भगवान की मूर्तियों की शोभा तो देखते ही बनती थी। राजा कारीगरों की कला देखकर प्रसन्न हो गया।

शुभ मुहूर्त में मंदिर दर्शनार्थियों के लिए खोल दिए गए थे। इन मंदिरों में पुजारी रखे गए। देखभाल के लिए सेवक भी रखे गए। एक दिन राजा सुबह सोकर उठा तो उसे महल के बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। वह बाहर आया। आकर देखा, महल के बाहर काफी लोग इकट्ठे थे। राजा ने पूछा- “क्या बात है? आप सब इतने परेशान क्यों हैं?”

भीड़ में से एक आदमी आगे बढ़ा। बोला- “महाराज, गजब हो गया। सभी मंदिरों में से मूर्तियां गायब हो गई।” यह बात सुनकर राजा भी आश्चर्य में पड़ गया। उसने कहा–“यह कैसे हुआ?” क्या पुजारी ने रात को मंदिर में ताला नहीं लगाया था?”

वह आदमी बोला–“नहीं महाराज, पुजारी जी ने ताला लगाया था। सब दरवाजे भी भली-भांति बंद किए थे. फिर भी चोरी हो गई।” राजा यह सुनकर और भी हैरानी से बोला–“अच्छा, यह तो बड़ी ताज्जुब की बात है”। फिर उसने सिपाहियों से कहा- “तुम जाकर पता लगाओ, चोर किधर से आए?”

सिपाही गए। कुछ देर बाद लौट आए। बोले “महाराज, हमने अच्छी तरह निरीक्षण किया है। दीवारों में सेंध का कोई निशान नहीं है। सभी खिड़कियां तथा दरवाजे सही-सलामत हैं। न ही फर्श कहीं से टूटा-फूटा हुआ है। समझ में नहीं आता, चोर अंदर कैसे आया?”

सारी बात सुनकर राजा ने कहा- “हमारे चलने की तैयारी करो। हम स्वयं देखेंगे कि माजरा क्या है?” जब राजा आखिरी मंदिर देख रहा था, तो उसने मंदिर के सभी दरवाजे तथा खिड़कियां अंदर से बंद कर लिए। फिर वह सभी दीवारें देखने लगा। अचानक उसने देखा, मंदिर के घंटे पर दो कबूतर बैठे हैं। राजा बड़ा हैरान हुआ–“सभी दरवाजे-खिड़कियां बंद हैं। मंदिर में कहीं पर भी इतना बड़ा सूराख नहीं है कि कबूतर अंदर आ जाएं। फिर ये कबूतर कहां से आए?” उसने अपने सिपाहियों से कहा- “कबूतरों को डराकर उड़ाओ। “

सिपाहियों ने कबूतरों को डराया। वे उड़े। काफी देर तक तो वे मंदिर में इधर-उधर चक्कर काटते रहे। फिर मंदिर की छत की ओर उड़ चले। वहां एक-दो चक्कर काटने के बाद वे गायब हो गए। राजा सोचने लगा–” मंदिर की छत पक्की बनी हुई है। इसमें कोई दरार या छेद भी नजर नहीं आता, फिर कबूतर कहां गायब हो गए?” उसने सिपाहियों से कहा–” मंदिर की छत पर चढ़ो पता लगाओ, इसमें कहीं कोई सुराख तो नहीं है।”

सिपाही मंदिर की छत पर चढ़े। उन्होंने देखा, मंदिर की छत इस प्रकार बनी हुई है कि बाहर से देखने पर तो लगता है कि कोई सूराख नहीं है, परंतु उसमें एक बड़ा सूराख ऐसा बनाया गया है जिससे एक आदमी उसमें से मंदिर में प्रवेश कर सकता है। कबूतर उसी में से बाहर निकले होंगे।

नीचे उतरकर उन्होंने राजा को यह बात बताई। सुनकर राजा को कारीगरों पर अत्यंत क्रोध आया। साथ ही उनकी कला पर हैरानी भी हुई। उसने अपने सिपाहियों से कहा–“जिन कारीगरों ने यह मंदिर बनाया है, उन्हें पकड़कर ले आओ। “

सिपाही उन कारीगरों को पकड़ लाए। राजा ने पूछा- “बताओ, किसके कहने पर तुमने। यह काम किया?” कारीगर डर गए। उनकी चोरी पकड़ी गई थी। उन्होंने कहा- “महाराज, हम पड़ोसी राज्य में रहते हैं। अपने राजा के कहने पर ही हमने यह काम किया।

राजा ने पूछा–‘” चुराई हुई मूर्तियां कहां हैं? कारीगरों ने घबराकर जहां मूर्तियां छिपा रखी थीं, वह स्थान बता दिया। “

राजा ने मूर्तियां फिर से मंदिर में स्थापित करवा दीं। कारीगरों को राजा ने छोड़ दिया, क्योंकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। पड़ोसी राजा को अपने दूत के हाथ राजा ने यह संदेश भिजवाया.” आपने यह बहुत ही घटिया काम करवाया है। हमारी मित्रता पुरखों से चली आ रही है। सोने के लालच में आपने जो काम किया है, उससे मुझे पता चल गया है कि आप कितने सच्चे मित्र हैं। साथ ही मैं सचेत भी हो गया हूं- “लालची के साथ मित्रता करना, अपने को धीखे में रखना है। “

पड़ोसी राजा ने यह संदेश पढ़ा, तो शर्म से उसकी गर्दन झुक गई। एक अच्छा मित्र देश खो दिया। सोना भी न मिला और एक शक्तिशाली राजा से दुश्मनी हुई सो अलग।

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