Telegram Group (100K+) Join Now

राजा की परीक्षा: प्रतापी और दयालु राजा की कहानी

राजा की परीक्षा:- बहुत समय पहले की बात है। श्रावस्ती में सुमति सेन नामक राजा राज्य करता था। वह प्रतापी और दयालु था। सारी प्रजा सुख से रह रही थी। उसके राज्य में न्याय और सुख दुख का ध्यान सबसे पहले किया जाता था। राजा धर्म के कामों में गहरी रुचि लेता था। उसने अहिंसा धर्म को मानने वाले जैन धर्म की दीक्षा ले ली थी। वह नियमपूर्वक जैन मंदिर में जाकर भगवान जिनेन्द्र की पूजा किया करता था।

राजा की परीक्षा

राजा की परीक्षा

राजा के दरबार में सभी को न्याय मिलता था। अच्छे काम के लिए जहां राजा इनाम देता था, वहीं चोरी जैसे बुरे काम करने वालों को कड़ी सजा भी देता था। प्रजा में एक बात फैल चुकी थी कि राजा के पास कोई अनूठी शक्ति है। इसी शक्ति के बल पर राजा बुरा करने वाले को पहचान लेता था और कड़ी सजा देता था। लोग चोरी-चकारी करते ही नहीं थे। अगर कभी कर भी ली, तो राजा की पैनी नजर से बच नहीं सकते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में अपराधी रहे ही नहीं थे। जो इक्का-दुक्का कोई होता भी था, वह राजा के डर से राज्य छोड़कर भाग जाता था। राज्य में सब तरफ शांति थी।

श्रावस्ती में यह बात फैल गई कि राजा सुमति सेन के पास कोई खास शक्ति है। उसी शक्ति के प्रयोग से राजा अपराधी को तुरंत पहचान लेता है। एक दिन रानी ने राजा से पूछ ही लिया-“महाराज! क्या सचमुच आपके पास कोई अनूठी शक्ति है?” “कैसी अनूठी शक्ति की बात कर रही हो?” आश्चर्य से रानी की ओर देखते हुए राजा सुमति सेन ने पूछा। ” राज्यभर में चर्चा है कि आपके पास कोई दिव्य शक्ति है। उसी से आप बुरे आदमी को पहचान लेते हैं, जबकि और लोग आसानी से ऐसा नहीं कर पाते। क्या यह सच है ? मैंने भी यह बात सुनी है, इसीलिए पूछ रही हूं।” रानी ने राजा से आदरपूर्वक कहा।

रानी की बात सुनकर राजा सुमति सेन मुस्कराए। फिर शांत भाव से बोले-“ऐसी कोई विशेष बात नहीं है महारानी। वह शक्ति तो हर सच्चे आदमी के पास होती है। असल में जो व्यक्ति स्वयं बुराई नहीं करता, उसके सामने बुराई करने वाला आदमी ठहर नहीं पाता। बुराई करने वाले के मन में सदा डर रहता है। वह कांपता है। उसका मन दुर्बल हो जाता है। बस, ऐसे आदमी को मैं पहचान लेता हूं। अच्छाई के सामने बुराई टिक ही नहीं पाती।”

राजा सुमति सेन की यह बात सुनकर रानी संतुष्ट हो गई। रानी तो स्वयं जानती थी कि भगवान महावीर के सत्य, प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला राजा सदा धर्म का पालन करता है। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि राजा सुमति सेन प्रजा को पुत्र के समान प्यार करता था। रानी ने कई बार देखा था कि राजा रात के समय साधारण आदमी का वेष बनाकर घूमने जाता था और स्वयं प्रजा के दुखों को जानने का प्रयास किया करता था। रानी ने कई बार पूछा भी था “महाराज! आप अपनी नींद छोड़कर व्यर्थ ही रात को क्यों घूमते हैं? सेनापति और दूसरे रक्षक तो राज्य की रक्षा करते ही हैं।”

तब राजा ने जवाब दिया” जहां राजा ही प्रजा के सुख-दुख का ध्यान नहीं रखेगा, वहां भला सेनापति और दूसरे रक्षक क्या सतर्क रहेंगे ? बताइए, महारानी प्रजा हमें इतना आदर क्यों देती है ? क्यों हमारे इशारे पर सारी प्रजा सिर कटाने को तैयार है ? इसका कारण यही है कि प्रजा को राजा पर भरोसा है। क्या तुम चाहती हो कि हम अपने सुख के लिए प्रजा को धोखा दें, उनका विश्वास तोड़ दें।”

रानी को पति की बात सुनकर गर्व हुआ था वह जानती थी कि प्रजा के लिए राजा की बात पत्थर की लकीर के समान है। रानी भी राजा के समान ही धर्म में रुचि लेती थी। राजा जब कभी कोई धार्मिक यज्ञ या पूजा-पाठ करता था, तो रानी उत्साहपूर्वक राजा के साथ सम्मिलित होती थी।

एक बार भगवान के मन में आया कि राजा की परीक्षा ली जाए। पर्यूषण पर्व के दिन थे। राजा जैन धर्म में बताए दस उत्तम धर्म-लक्षणों के पालन में तत्पर था। राजा के मन में ‘उत्तम ‘क्षमा’ का भाव विद्यमान था।

भगवान साधु बनकर राजा के पास आए राजा तो वैसे ही दयालु और धर्मात्मा था। साधु को देखते ही अपने ऊंचे राजसिंहासन से उतर कर आया। साधु को हाथ जोड़कर प्रणाम करने के बाद राजा ने कहा- “पधारिए, महाराज! आज हमारे धन्य भाग्य हैं कि आपने दर्शन दिए। सचमुच आज बड़ा शुभ दिन है। आज्ञा दीजिए, देव! मैं आपकी क्या सेवा करूं?”

साधु के रूप में आए भगवान शांत खड़े रहे। बिल्कुल गुम सुम चुपचाप । पत्थर की मूर्ति की तरह स्थिर मन-ही-मन भगवान ने सोचा कि सबसे पहले राजा के ‘क्रोध’ की परीक्षा लेनी चाहिए। साधु रूप में आए भगवान ने आंखें लाल करके राजा को घूरा। फिर गुस्से में अपमान करते हुए साधु ने कहा- “अरे ढोंगी, झूठे, तू धर्मात्मा बनकर प्रजा को धोखा क्यों देता है ? प्रजा की मेहनत से कमाए धन पर ऐंठता है? मुझसे पूछता है ‘क्या सेवा करूं।’ तेरी कमाई का यहां है क्या? पापी कहीं का, ढोंग करता है ?”

और इस प्रकार गालियां देते हुए साधु ने भरे दरबार में राजा के मुंह पर थूक दिया। जैसे ही महामंत्री, सेनापति और अन्य दरबारियों ने यह देखा, तो गुस्से में सबने अपनी तलवारें निकाल ली।

राजा सुमति सेन ने तुरंत आगे बढ़कर उन सबको रोक दिया शांत मन से राजा साधु के पास आए। साधु के चरणों को छूकर सुमति सेन ने पूछा- क्या मुझसे भूल हुई है भगवन ? मैं आपसे क्षमा मांगता हूं महाराज कृपा करके मेरा अपराध तो बताइए।” यह कहकर राजा सुमति सेन साधु को आदरसहित राजसिंहासन तक लाए। साधु को सिंहासन पर बैठा दिया ! दरबार में उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो देख रहे थे।

साधु बने भगवान मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने जान लिया कि ‘उत्तम क्षमा’ का पालन करते हुए राजा ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है। अब उन्होंने सोचा कि क्यों न मन में छिपे हुए ‘मोह’ की परीक्षा ली जाए?

तुरंत साधु ने राजा से कहा-” राजा होकर दान देना कौन-सी बड़ी बात है ? जरा यह तो बता कि प्रजा के खून-पसीने की कमाई को तू क्यों उड़ा रहा है? अरे ढोंगी राजा इस धन और राज्य पर तेरा अधिकार क्या है ? क्या इसके बिना तू एक पल भी रह सकता है ?” राजा शांतभाव से साधु की बात सुन रहा था, जबकि दरबार के लोग बेचैन हो रहे थे।

साधु ने उसी प्रकार अपमान के स्वर में कहा- “आंखें हों, तो मेरी तरफ देख? मैं तो एक लंगोटी में भी खुश रहता हूं। क्या तू छोड़ सकता है अपना राजपाट ? पहन सकता है फटे-पुराने चीथड़े? मांग सकता है मेरी तरह हाथ फैलाकर भीख ?” राजा ‘आकिंचन्य धर्म’ का महत्व राजा सुमति सेन ने अपरिग्रह धर्म की साधना की थी। जानते थे। साधु की बात सुनकर शांत मन से हाथ जोड़कर राजा ने कहा- “महाराज! आप मुझे आज्ञा दीजिए। मैं इसी समय राजपाट, धन-दौलत, हीरे-जवाहरात सब कुछ खुशी से त्यागने को तैयार हूं। मुझे इनसे कोई लगाव नहीं है भगवन !” राजा की बात सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। साधु के रूप में आए भगवान बहुत प्रसन्न हुए। वे मन ही मन सोचने लगे कि सुमति सेन ने तो मोह पर भी विजय पा ली है।

उन्होंने तय किया कि अब मैं एक और परीक्षा राजा के ‘आचरण’ की लूंगा। देखना है कि राजा की ‘कथनी’ और ‘करनी’ में कितनी समानता है ?

साधु बोले- “ठीक है, ठीक है। अगर तुम्हें सचमुच राज्य से लगाव नहीं है, तो इसी समय बिना कुछ लिए निकल जाओ। खबरदार, तिनके को भी हाथ मत लगाना।” साधु के आदेश को सुनकर राजा ने विनयपूर्वक दृढ़ स्वर में कहा-” आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है, लेकिन “

राजा की बात काटते हुए साधु गरजते हुए “लेकिन क्या ? सुना नहीं कि इसी बोला समय निकल जाओ।” राजा शांत रहा। फिर उसी दृढ़ स्वर में बोला- “क्षमा करें देव! मैं अभी महल में जाकर अपनी धर्मपत्नी की सहमति लेकर आता हूं। यह मेरा धर्म है कि सुख-दुख में पत्नी को अवश्य साथ लूं। तब तक आप यहीं रुकें, मैं अभी आया।’

इतना कहकर राजा महल में चला गया। थोड़ी ही देर में अपनी महारानी के साथ आकर सुमति सेन ने साधु के चरण छुए और कहा-“महाराज, हम दोनों को आज्ञा और आशीर्वाद दीजिए। आज से यह राज्य और यहां की सारी धन-दौलत आपकी है। हम दोनों पति-पत्नी इस राज्य से दूर जाकर दीन-दुखियों की सेवा में जीवन बिताएंगे।”

राजदरबार में तो जैसे सबको लकवा मार गया। ऐसा लगा जैसे सब सपना देख रहे हों। महामंत्री, मंत्रीगण और दूसरे सभासद देखते ही रह गए।

राजा सुमति सेन समान भाव से राज्य को छोड़कर चल दिए। प्रजा रोती-बिलखती रही। हर आदमी राजा की जयकार कर रहा था। प्रजा ने राजा और रानी के चरणों में फूल बिछा दिए। पूरा श्रावस्ती नगर रो-रोकर दोनों के चरण धो रहा था। प्रजा उन्हें छोड़कर लौटना नहीं चाहती थी। राजा सुमति सेन चलते ही गए। राज्य की सीमा के पास आकर राजा-रानी रुके और प्रजा से विदा ली।

रोती-बिलखती प्रजा लौट आई। उधर राजा सुमति सेन प्रसन्न मन और शांत भाव से रानी को साथ लेकर राज्य से दूर चल दिए। रात हुई, तो एक मंदिर पर जाकर कुछ खाया और विश्राम के लिए चबूतरे पर लेट गए। साधु रूप में आए भगवान बहुत खुश थे। राजा सभी परीक्षाओं में सफल रहा। क्रोध और मोह को राजा ने जीत लिया था। अपने धर्म और आचरण से राजा डिगा नहीं।

अब भगवान ने आखिरी परीक्षा लेने की बात सोची। भगवान देखना चाहते थे कि राजा और रानी गरीबी में ‘लालच’ से बच सकते हैं या नहीं? इस बार साधु रूप में आए भगवान नेदोनों की परीक्षा एक साथ लेने के लिए जंगल में जा रहे राजा और रानी को भटकाना चाहा। राजा सुमति सेन को जंगल में कुछ दूरी पर चमकती हुई चीज दिखाई दी। राजा चौंक पड़ा। तेज कदमों से चलकर आगे आया ताकि उस चमकती चीज को देख ले। राजा ने देखा कि बहुमूल्य हीरों से जड़ा हुआ सोने का आभूषण रास्ते में पड़ा हुआ है।

राजा सुमति सेन ने उस कीमती आभूषण को देखकर मन में सोचा- “कहीं ऐसा न हो कि रानी का मन इस चमकते जड़ाऊ आभूषण को देखकर ललचा उठे। मुझे जल्दी कुछ करना चाहिए। रानी की नजर पड़ गई, तो कहीं इसे उठा ही न ले।” ऐसा सोचते ही राजा सुमति सेन नीचे झुका और उस सोने के आभूषण पर मिट्टी डालने लगा ताकि वह रानी को दिखाई ही न पड़े।

उधर रानी भी उस चमकते हुए आभूषण को देख चुकी थी। वह राजा सुमति सेन के पास आ गई। जब उसने देखा कि राजा आभूषण पर मिट्टी डाल रहा है, तो वह समझ गई कि राजा के मन में उनके प्रति संदेह है। रानी को यह सोचकर पहले तो दुख हुआ। वह सोचने लगी कि क्या मेरे पति मुझ पर विश्वास नहीं करते? आखिर क्या कारण है कि राजा इसके ऊपर मिट्टी डाल रहे हैं?

रानी बढ़कर राजा के पास आ गई और बड़े शांत भाव से बोली-“स्वामी! यह आप क्या कर रहे हैं? इतने ज्ञानी और धर्मात्मा होकर भी आप मिट्टी के ऊपर मिट्टी डाल रहे हैं?

भला बताइए तो स्वामी! इस प्रकार मिट्टी को मिट्टी से ढककर आपको क्या लाभ होगा ?” रानी के ये शब्द जंगल में गूंज उठे “मिट्टी पर मिट्टी डालने से क्या लाभ ?” राजा ने जब सुना तो रानी का मुंह देखने लगा। रानी कितना बड़ा सच कह रही थी।

तभी दोनों ने एक साथ विचित्र बात देखी। उस घने जंगल में बहुत तेज प्रकाश फैल गया। भगवान वहां स्वयं प्रकट हो गए। राजा और रानी आश्चर्य में डूब गए। प्रसन्न होकर भगवान ने उनसे कहा- “तुम दोनों धन्य हो, राजन्! इस कठिन परीक्षा में तुम खरे उतरे हो। मैं साधु बनकर तुम्हारी परीक्षा लेने आया था। तुम धर्म पर अडिग रहे, मैं खुश हूं।”

राजा सुमति सेन अपनी रानी सहित भगवान के चरणों में गिर पड़े। भगवान ने राजा की ओर देखकर कहा- “राजन्! एक पल के लिए तुम तो अपने धर्म से डिगे भी तुमने अपनी धर्मपत्नी पर संदेह किया और आभूषण पर मिट्टी डालने लगे। लेकिन तुम्हारी धर्मपत्नी सच्ची निकली। इसने होरों के कंगन को मिट्टी बताकर ‘संदेह की कालिमा’ को तुम्हारे पवित्र मन से धो डाला।’

राजा क्षणभर के लिए विचलित-सा हुआ। भगवान ने कहा- “लेकिन तुम्हारा संदेह स्वार्थ के लिए नहीं था, इसीलिए पाप नहीं है। रानी तुम्हारी पत्नी है, धर्म को साथ लेकर तुमने रानी को अपनाया है। अब कभी भी रानी पर संदेह न करना मैं जाओ राजन्! अपनी प्रजा का कल्याण करो।” तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूं।

राजा और रानी को आशीर्वाद देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। तभी जादू सा हुआ और राजा सुमति सेन रानी के साथ पलभर में ही अपने राज्य में पहुंच गए। प्रजा में हर्ष छा गया। ऐसा लगा जैसे सारी प्रजा के प्राण ही लौट आए हों। सब तरफ खुशियों का सागर उमड़ पड़ा। राजा और रानी धर्म का पालन करते हुए अपनी प्रजा के कल्याण में लग गए।

यह भी पढ़े – चतुर मां और तीन बेटियां : तीन बेटियां और चतुर मां की कहानी

Subscribe with Google News:

Telegram Group (100K+) Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *