राज्य सभा क्या होती है, राज्य सभा संसद का ‘उच्च सदन’ (Upper House) है। इसके सदस्यों की संख्या अधिक से अधिक 250 हो सकती है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है। ये सदस्य अपने किसी न किसी कार्य के लिये प्रसिद्ध होते हैं। इन सदस्यों को राष्ट्रपति साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, कलाकारों तथा समाज-सेवियों में नामित करता है। और भी जानिए :- वर्तमान में राज्य सभा के सदस्यों की संख्या 245 है।
राज्य सभा क्या होती है

Rajya सभा के शेष सदस्यों का चुनाव राज्यों तथा दिल्ली और पुदुच्चेरी विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं। चूँकि इनका चुनाव सीधे जनता द्वारा नहीं होता है इसलिए इस प्रकार के चुनाव को ‘अप्रत्यक्ष चुनाव कहते हैं।
वही व्यक्ति राज्य सभा का सदस्य हो सकता है जिसकी आयु 30 वर्ष या उससे अधिक हो। शेष योग्यताएँ वही होती हैं जो लोकसभा के सदस्यों के लिए निश्चित की गई हैं। परन्तु कोई व्यक्ति एक ही समय में संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता।
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सदस्यों का कार्यकाल
राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल छः वर्ष है। इसके एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष बाद अवकाश ग्रहण करते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुनकर आते हैं। इस प्रकार राज्य सभा कभी भंग नहीं होती है। इसीलिए इसे स्थाई सदन’ कहा जाता है।
राज्य सभा के पदाधिकारी
भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। वह राज्य सभा की कार्यवाही का संचालन करता है जब सभापति उपस्थित नहीं रहता तब उसके स्थान पर उपसभापति कार्य करता है।
राज्य सभा का अधिवेशन
इसका वर्ष में दो बार अधिवेशन होना आवश्यक है। दो अधिवेशनों के बीच छः माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए।
राज्य सभा का कार्य
लोक सभा की तरह राज्य सभा भी कानून बनाने एवं संशोधन का कार्य करती है। दोनों सदनों द्वारा जब कोई प्रस्ताव (विधेयक) स्वीकार कर लिया जाता है तब राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वह विधेयक कानून बन जाता है।
राज्य सभा भी लोक सभा की भांति मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकती है। विशेष बात यह है कि धन से संबंध रखने वाले विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं। राज्य सभा में उन पर केवल चर्चा की जाती है।
कानून निर्माण की प्रक्रिया
संसद का सबसे महत्त्वपूर्ण काम है देश के लिए कानून बनाना। और कानून बदलना। जिस विषय पर कानून बनाना होता है उसका एक प्रस्ताव तैयार किया जाता है, उसे विधेयक (Bill) कहते हैं। ये विधेयक दो प्रकार के होते हैं- साधारण विधेयक तथा धन विधेयक। कानून बनने की संक्षिप्त प्रक्रिया इस प्रकार है।
विधेयक कितने प्रकार के होते है
जब विधेयक किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तो इसे ‘सरकारी विधेयक’ कहते हैं और जब कोई विधेयक मंत्री के अलावा किसी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है इसे ‘गैर सरकारी’ विधयेक कहते हैं।
साधारण विधेयक (Ordinary Bill)
साधारण विधेयक लोकसभा या राज्यसभा में से किसी में भी पहले पेश किया जाता है। इस विधेयक को कोई भी सदस्य पेश कर सकता है। साधारण विधेयक तीन चरणों में पारित होता है जिसे तीन बाचन कहते हैं।
प्रथम वाचन
इस वाचन में सदन की अनुमति लेकर विधेयक का प्रस्ताव पेश किया जाता है और प्रस्ताव की प्रति उपस्थित सदस्यों को वितरित की जाती है। जब विधेयक सदन में पेश हो जाता है तो इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है।
द्वितीय वाचन
इसमें विधेयक पर विचार-विमर्श होता है। विधेयक के समस्त बिन्दुओं पर चर्चा होती है। इसी समय विधेयक में आवश्यक संशोधन भी किए जाते हैं और द्वितीय वाचन समाप्त हो जाता है।
तृतीय वचन
द्वितीय वाचन के पश्चात विधेयक का प्रारूप निश्चित हो जाता है। इस वाचन में संपूर्ण विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने के सम्बन्ध में चर्चा होती है। इस चरण में विधेयक में कोई भी महत्त्वपूर्ण संशोधन नहीं किया जाता है।
यदि सदन का अपेक्षित बहुमत इसका समर्थन कर देता है, तो विधेयक पारित हो जाता है। यदि विधेयक स्वीकृत हो जाता है तो उसे दूसरे सदन में स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी विधेयक इन तीनों अवस्थाओं में से गुजरता है। यदि दूसरा सदन भी इसे स्वीकृत कर लेता है, तो उस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात वह काननू बन जाता है।
कानून बनाने की प्रक्रिया के मुख्य बिन्दु
- साधारण विधेयक पहले किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है राज्यसभा या लोकसभा में।
- आधे से अधिक उपस्थित सदस्यों का मत यदि विधेयक के पक्ष में होता है तो विधेयक उस सदन में पारित हो जाता है।
- राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से पहले दोनों सदनों से विधेयक पारित होना जरूरी है।
- आमतौर पर जब मत लिए जाते हैं तो सभा का सभापति अपना मत नहीं देता है, पर यदि विधेयक के पक्ष और विपक्ष में बराबर सदस्यों के मत हैं तो सभापति अपना मत दे सकता है। इस स्थिति में उसका मत निर्णायक होगा। यदि साधारण विधेयक एक सदन से पारित हो जाता है पर दूसरे सदन से नहीं पारित होता है तो समस्या उठ खड़ी होती है। इसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
- राष्ट्रपति साधारण विधेयक को सुझावों सहित वापस लोकसभा में भेज सकता है। लोकसभा चाहे तो उस विधेयक को वहीं पर समाप्त कर सकती है परन्तु वही विधेयक लोकसभा द्वारा दुबारा राष्ट्रपति को भेजे जाने पर राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर करने ही होंगे।
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