रक्षाबंधन पर निबंध: प्रत्येक देश और जाति के लोग त्योहार मनाते हैं। त्योहार मनुष्य के जीवन में आनन्द पैदा करते हैं। भारत त्योहारों का देश है। यहाँ अनेक त्योहार मनाये जाते हैं उनमें रक्षाबन्धन एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार प्राचीन काल में विद्या और विद्वानों का था, परन्तु आज यह भाई-बहिन का त्योहार हो गया है।
रक्षाबंधन पर निबंध (Raksha Bandhan Par Nibandh)

मनाने का समय
रक्षाबन्धन प्रति वर्ष श्रावण मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है। इसे राखी और सनूनों का त्योहार भी कहा जाता है।
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मनाने के कारण
रक्षाबन्धन (रक्षाबंधन पर निबंध) बहुत पुराना त्योहार है। इस त्योहार को श्रावणी कहा जाता था। जिस प्रकार आज सात जुलाई को बालक पढ़ने के लिए विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं, उसी प्रकार प्राचीन काल में इस दिन बालक ऋषियों के आश्रम में प्रवेश लेते थे।
इसी से इसे ब्राह्मणों का त्योहार कहा जाता है। लेकिन बाद में राजा बलि की माँ ने अपने पुत्र की रक्षा के लिए उसके हाथ में राखी बाँधी और मुगलों के समय में महारानी कर्मवती ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हुमायूँ के पास राखी भेजी। यह त्योहार सदा रक्षाबन्धन के नाम से प्रसिद्ध रहा है।
त्योहार से पूर्व तैयारी
रक्षाबन्धन के एक सप्ताह पूर्व बहिनें अपने घरों में गेहूँ के बीज बो देती हैं। उसके पीले अँखुओं को सूजी कहते हैं। बाजारों में मिठाइयाँ बनती हैं। धागे और चित्रों की सहायता से बनी विभिन्न प्रकार की राखियों की दुकानें लगाई जाती हैं। इस समय चावल के आटे की एक विशेष प्रकार की मिठाई बनती है, जिसे अनरसा कहते हैं।
मनाने की विधि
रक्षाबन्धन के दिन प्रत्येक बहिन एक थाली में मिठाई, रोली, रक्षा-सूत्र और सूजी को लेकर भाई के पास जाती है। वह भाई को तिलक करती है तथा उसके कानों पर सूजी रखती है। हाथों में रक्षा-सूत्र बाँधती है तथा मिठाई खिलाती है। भाई उसके बदले में अपनी बहिन को उपहार देता है। ग्रामीण क्षेत्र में रक्षाबन्धन के अवसर पर नव विवाहित युवक अपनी-अपनी ससुरालों में बूरा खाने जाते हैं। नव विवाहित युवती के मायके में ससुराल से ‘सौगी’ भेजने की भी प्रथा है।
त्योहार का महत्व
यह त्योहार भाई-बहिन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। भारत का हिन्दू समाज ही विश्व का ऐसा समाज है, जिसमें भाई-बहिन के सम्बन्ध इतने पवित्र और अटूट हैं। अन्य समाजों के व्यक्तियों में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। महिलाएँ इसी बहाने अपने मायके चली जाती हैं तथा अपनी बाल्यावस्था की सखियों से मिलने का अवसर प्राप्त कर लेती हैं।
मध्यकालीन रूप
काल-क्रमानुसार इस रीति में कुछ परिवर्तन हुआ। ब्राह्मणों के साथ-साथ बहनें भी रक्षा बन्धन की अधिकारिणी हो गई थीं। बहनें प्राय: अपने भाइयों के हाथों में ही रक्षा बन्धन करती थीं। कभी-कभी अन्य व्यक्ति भी किसी महिला द्वारा राखी बांधे जाने पर अपने को उस स्त्री का मुँह बोला भाई समझने में अपने गौरव का अनुभव करता था। उस काल में इस प्रथा का बड़ा महत्त्व रहा।
रक्षा बन्धन करवाने वाले व्यक्ति अपने प्राणों को भी संकट में डालकर राखी की पवित्रता की रक्षा करते थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि हुमायूँ ने चित्तौड़ की महारानी कर्मवती की राखी प्राप्त करके अपने सैनिकों के विरोध करने पर भी गुजरात के मुसलमान शासन के दाँत खट्टे किए थे सम्भवतः इसी घटना को ध्यान में रखते हुए श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है
मैंने पढ़ा शत्रुओं को भी, जब जब राखी भिजवाई, ग
रक्षा करने दौड़ पड़े थे, राखी बंधवे भाई।
आधुनिक रूप
आजकल प्रातः काल से ही ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधने के लिए। निकल पड़ते हैं। ये यजमानों के हाथ में राखी बाँधकर उनसे दक्षिणा प्राप्त करते हैं। बहनें भी राखी बाँधकर अपने भाइयों से दक्षिणा या उपहार प्राप्त करती हैं। इस दिन घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं। मिष्टान्न वितरण होता है। सारा दिन उल्लास में बीतता है।
रक्षा बंधन की उपयोगिता
यह त्यौहार भाई-बहिन के पवित्र स्नेह का द्योतक है। भारत का हिन्दू समाज ही विश्व में ऐसा समाज है, जिसमें बहन-भाई के सम्बन्ध इतने पवित्र और अटूट हैं। अन्य समाजों के व्यक्ति इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते स्त्रियाँ इसी बहाने अपने मायके चली जातीं तथा अपनी बाल्यकाल की सखियों से मिलने का अवसर प्राप्त कर लेती हैं। झूला, गाना तथा आमोद-प्रमोद इस पर्व को मनाने के लिए अत्यन्त सुन्दर साधन हैं बहनें भाइयों के हाथ पर राखी बाँधती हैं और मिठाई खाने को देती हैं; भाई बहन की मान-मर्यादा की रक्षा का उत्तरदायित्व निभाने का भार ग्रहण करके उत्सव के महत्त्व को निभाता हुआ बहन को कुछ दक्षिणा देकर प्रसन्न करता है। देश के उत्तरी भाग में इस उत्सव को उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
उपसंहार
रक्षाबन्धन का त्योहार बड़ा महत्वपूर्ण है। अगर इस त्योहार को विशेष ढंग से मनाया जाये तो हमारे देश में हिन्दू-मुसलमानों की एकता बहुत दृढ़ हो सकती है। ब्राह्मण वर्ग भी देशवासियों को रक्षा-सूत्र मंगलमय कामना लेकर प्रदान करें, ताकि हम यशस्वी बनें और अपने शत्रुओं का मर्दन कर सकें। श्रावणी तुम्हारा दिव्य सन्देश देश की जागृति के लिए प्रतिवर्ष आये, ताकि हम कल्याण पथ की ओर अग्रसर हो सकें।