राष्ट्रीय किसान नीति क्या है राष्ट्रीय किसान नीति का लक्ष्य क्या है।

राष्ट्रीय किसान नीति क्या है :- कृषि की व्यावसायिक लाभदेयता को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के संदर्भ में सुझाव देने के लिए कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग गठित किया गया था। आयोग की सिफारिशों के आलोक में वर्ष 2007 में राष्ट्रीय किसान नीति घोषित की गई। इस नीति में उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ किसानों के कल्याण में वृद्धि पर विशेष जोर दिया गया है।

कृषि आगतों की समय पर उपलब्धता, कृषि श्रमिकों की आय में बढ़ोत्तरी व युवाओं को कृषि क्षेत्र में आकर्षित करना भी नीति के केंद्र में है। किसानों की आय दोगुना करने के लिए वर्ष 2024 तक इस योजना हो चलाया जायेगा।

राष्ट्रीय किसान नीति क्या है

राष्ट्रीय किसान नीति क्या है

राष्ट्रीय किसान नीति 2007

जब तक किसान खुशहाल नहीं होंगे, तब तक देश व समाज का पूर्ण विकास नहीं हो सकता है। इस बात के महत्व को समझते हुए केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता के बाद से ही किसानों के हितों को विशेष तरजीह दी है। सरकार द्वारा उनके संरक्षण व विकास के लिए कई योजनाएं लागू की गई और कई नीतियां भी लाई गईं। राष्ट्रीय किसान नीति भी इस दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। किसान नीति के एक दशक से भी अधिक समय की समाप्ति के बाद भी किसानों के आर्थिक कल्याण व सामाजिक सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका है।

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आज भी बड़े व सीमांत किसानों के मध्य आय की असमानता अत्यधिक है और यह निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इसके अतिरिक्त कृषि व गैर-कृषि क्षेत्रों के मध्य भी आय असमानता अत्यधिक है। कृषि उत्पादन में अस्थिरता व बढ़ती लागत के परिणामस्वरूप अनेक किसान गरीबी व भुखमरी से त्रस्त होकर आत्महत्या के लिए विवश हैं। इस गंभीर कृषि संकट से किसानों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि नीति की समीक्षा करने हेतु अशोक दलवई की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यीय समिति गठित की गई, जिसने अगस्त, 2017 में किसानों की आय को वर्ष 2022 (अब 2024) तक दोगुना करने के संदर्भ में अपना सुझाव प्रस्तुत किया।

किसान नीति का लक्ष्य

  1. किसानों की न्यूनतम शुद्ध आय’ को सुनिश्चित करते हुए कृषि की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार करना।
  2. कृषि संबंधी सभी नीतियों और कार्यक्रमों में मानवीय और लैंगिक
    3.आयामों को मुख्य धारा के साथ जोड़ना। 3. भू-सुधारों के अधूरे एजेंडे को पूरा करना तथा ग्रामीण भारत में परिसंपत्ति और जल-कृषि में व्यापक सुधार आरंभ करना।
  3. किसानों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का विकास करना एवं उसे लागू करना।
  4. भूमि, जल, जैव-विविधता तथा आनुवांशिक संसाधनों के संरक्षण व सुधार में किसानों की आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित करना, जो कि उत्पादकता और लाभकारिता में सतत वृद्धि एवं प्रमुख कृषि प्रणालियों को स्थायित्व के लिए आवश्यक है।
  5. ग्रामीण भारत में समुदाय केंद्रित खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ावा देना तथा प्रत्येक बच्चे, महिला और पुरुष के लिए पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  6. ऐसे उपाय आरंभ करना, जिनसे खेती को बौद्धिक रूप से प्रेरक व आर्थिक रूप से लाभप्रद बनाकर उच्चतर मूल्यवर्धन किया जा सके।
  7. प्रत्येक कृषि और गृह विज्ञान स्नातक को एक उद्यमी बनाने व कृषि शिक्षा को लिंग संवेदी बनाने के लिए शिक्षा शास्त्रीय विधियों और कृषि पाठ्यक्रम की पुनर्संरचना करना।
  8. सतत कृषि के लिए जरूरी आदानों (Inputs) के उत्पादन और आपूर्ति तथा जैव-प्रौद्योगिकी व सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकियों के माध्यम से विकसित उत्पादों व प्रक्रियाओं में भारत को विश्व आउटसोर्सिंग का केंद्र बनाना।
  9. किसानों के लिए बीज, सिंचाई, विद्युत, मशीनरी एवं उपकरण तथा पर्याप्त मात्रा एवं उचित मूल्य पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए समर्थन सेवाओं का विकास करना।
  10. आय बढ़ाने के लिए उचित मूल्य और व्यापार तंत्र का विकास करना।
  11. किसानों के लिए उपयुक्त और समयबद्ध क्षतिपूर्ति के लिए उपयुक्त जोखिम प्रबंधन के उपाय प्रदान करना।
  12. किसान परिवारों को गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार की उपलब्धता हेतु समुचित उपाय करके उपयुक्त अवसर प्रदान करना।

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किसान नीति के प्रमुख तथ्य

  • इस नीति में किसान को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है। इसमें ‘किसान’ शब्द के अंतर्गत प्रत्यक्ष कृषि कार्य में संलग्न किसानों के अतिरिक्त संबद्ध गतिविधियों (पशुपालन, वनोत्पाद संग्रहक आदि) में लगे लोगों को भी शामिल किया गया है।
  • किसानों के सशक्तीकरण के लिए परिसंपत्तियों यथा- भूमि, पशुधन, मत्स्य तालाब, घरेलू फार्म आदि के सुधार हेतु प्रयास पर जोर दिया गया है।
  • साथ ही मिश्रित कृषि प्रणाली का विकास कर ऑर्गेनिक कृषि और बायो-उर्वरकों के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
  • तटीय एवं अंतर्देशीय मात्स्यिकी, जो लाखों परिवारों की रोजगार व आजीविका का प्रमुख स्रोत है, के विकास पर जोर दिया गया है।
  • जैव-विविधता के संरक्षण के लिए पारंपरिक ज्ञान का प्रलेखन किया जाएगा, जिसमें ऐसी महिलाओं की सहभागिता ली जाएगी, जो इसका ज्ञान रखती हैं।
  • ‘स्व-स्थाने फार्म’ (In Situ Farm) संरक्षण परंपराओं को पुनः सक्रिय करने के लिए जनजातीय और ग्रामीण लोगों की मदद की जाएगी।
  • कृषि जैव-विविधता वाले समृद्ध क्षेत्रों में जेनेटिक और विधिक जानकारी देने का कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।
  • औषधीय पौधों के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए पश्चिमी घाट, विंध्य व हिमालयी क्षेत्र में हर्बल ‘बायो वैली’ की स्थापना की जाएगी।
  • अग्रणी प्रौद्योगिकियां जैसे कि जैव-प्रौद्योगिकी, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियां, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी आदि के कृषि क्षेत्र में प्रयोग से उत्पादन सुधारने व धारणीय कृषि के विकास का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा।
  • किसानों को सही समय व पर्याप्त मात्रा में कृषि आदानों, जिनमें उत्तम कोटि के बीज, मृदा स्वास्थ्य की जांच, यंत्र, कीटनाशक, उर्वरक व अन्य सहायक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसानों को विशेष रूप से छोटे व सीमांत किसानों व भूमिहीन कृषि श्रमिकों को एक व्यापक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत शामिल किया जाएगा।

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