राष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति क्या है:- वर्तमान भारत में राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दोनों स्तर पर खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित कराना प्रमुख चुनौती है। राष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति को इसलिए बनाया गया है। की भारत एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पादक देश होने के बावजूद आज भी भारत की एक बड़ी आबादी दो जून के पर्याप्त भोजन से वंचित है। इस आलोक में भारतीय नीति नियंताओं के समक्ष कृषि मूल्य नीति के माध्यम से दोहरे लक्ष्यों की पूर्ति की चुनौती है। राष्ट्रीय कृषि नीति कब घोषित की गई थी? कृषि मूल्य आयोग का गठन कब हुआ था, इससे जुड़ी सारी जानकारी यहाँ दी गई है।
राष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति क्या है (Rashtriya Krishi Mulya Niti Kya Hai)

राष्ट्रीय कृषि नीति
कृषि नीति के माध्यम से सरकार उत्पादक एवं उपभोक्ताओं दोनों के मध्य संतुलन साधते हुए। जहां एक ओर किसानों को उनके उत्पादों का उचित तथा उत्साहवर्धन मूल्य को सुनिश्चित करवाती है, जिससे वे कृषि में निवेश तथा उत्पादन कार्य के लिए प्रोत्साहित हों, तो वहीं दूसरी ओर इसके माध्यम से उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर खाद्यान्नों की उपलब्धता को सुनिश्चित कराना भी सरकार का प्रमुख ध्येय है।
राष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य
- घरेलू आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु खाद्यान्न उत्पादन में संतुलित वृद्धि को प्रोत्साहन देना।
- कृषि उत्पादों में मूल्य स्थिरता की प्राप्ति।
- उपभोक्ताओं विशेष तौर पर समाज के कमजोर वर्गों को वहनीय कीमत पर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए बफर स्टॉक का निर्माण करना।
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राष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति के उपकरण
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price)
- किसानों को उनकी फसलों का उचित तथा लाभप्रद मूल्य सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा प्रति वर्ष रबी तथा खरीफ की 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है। यह मूल्य किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम गारंटी के रूप में होता है। अर्थात यह वह मूल्य है, जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेची जाने वाली अनाज की संपूर्ण मात्रा क्रय करने के लिए तैयार रहती है।
- जब बाजार में अनाजों के मूल्य गिर रहे होते हैं, तब सरकार किसानों के अनाजों को खरीदकर उनके हितों की रक्षा करती है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा फसल की बुआई के पूर्व ही कर दी जाती है, जिससे कि किसान फसल उत्पादन संबंधी निर्णय ले सकें।
- MSP का निर्धारण कृषि लागत तथा मूल्य आयोग की सिफारिशों पर आधारित होता है।
2. वसूली या अधिप्राप्त मूल्य (Procurement Price)
कृषि लागत और मूल्य आयोग
- कृषि लागत’ एवं मूल्य आयोग’ (CACP- Commission for Agricultural Cost & Price) जनवरी, 1965 में कृषि मूल्य आयोग’ के नाम से अस्तित्व में आया।
- वर्ष 1985 में इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग कर दिया गया।
- इसका प्रमुख कार्य सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य के संदर्भ के में सलाह देना है।
- वर्तमान में यह 23 अधिसूचित फसलों जिसमें से 7 खाद्यान्न फसलें (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ तथा रागी), 5 दालें (चना, अरहर, मूंग, उड़द तथा मसूर), 7 तिलहन फसलें (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम एवं राम तिल) तथा 4 वाणिज्यिक फसलें (नारियल, गन्ना, कपास एवं कच्चा जूट) शामिल हैं, के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करता है।
- ध्यातव्य है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अंतिम निर्णय आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा किया जाता है।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा गन्ना के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य की अनुशंसा करता है। तोरिया और सूखा नारियल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: रेपसीड/सरसों तथा नारियल के समर्थन मूल्य के आधार पर खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग निर्धारित करता है। इस प्रकार सरकार कुल 25 फसलों के लिए समर्थन मूल्य घोषित करती है।
- वह मूल्य जिस पर सरकार किसानों से अनाज की खरीद करती है, वसूली मूल्य कहलाता है।
- वसूली कीमत की घोषणा केंद्र सरकार द्वारा फसल की कटाई के समय की जाती है।
- वसूली मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या उससे अधिक होता है।
3. निकासी मूल्य ( Issue Price )
- यह वह मूल्य है, जिस पर केंद्र सरकार केंद्रीय भंडारों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानों को अनाज निर्गमित करती है।
- इस प्रकार यह वह मूल्य है, जो भारतीय खाद्य निगम राज्यों या राज्य अधिकृत एजेंसियों को अनाज देने के बाद प्राप्त करता है।
4. बफर स्टॉक
- कुछ आकस्मिक परिस्थितियों यथा- बाढ़, सूखा, अकाल आदि स्थिति में खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने तथा उनके मूल्यों में वृद्धि को रोकने के लिए सरकार खाद्यान्नों का अतिरिक्त स्टॉक (भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से) रखती है, जिसे बफर स्टॉक की संज्ञा दी जाती है।
- इसका प्रमुख उद्देश्य खाद्यान्नों की आकस्मिक स्थिति में उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।
भारतीय खाद्य निगम (FCI)
- भारतीय खाद्य निगम की स्थापना खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत 14 जनवरी, 1965 को की गई।
- यह केंद्र सरकार की खाद्य नीति के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी मुख्य एजेंसी है।
- भारतीय खाद्य निगम का प्रमुख कार्य खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन (दुलाई), वितरण तथा बिक्री करना है।
FCI के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- किसानों के हितों के संरक्षण हेतु प्रभावी मूल्य संरक्षण।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत देशभर में खाद्यान्नों का वितरण।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्नों के प्रचालन तथा बफर स्टॉक को संतोषजनक स्तर तक बनाए रखना।
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