सूचना का अधिकार पर निबंध | Right To Information Essay In Hindi

सूचना का अधिकार पर निबंध:- भारत में 15 जून, 2005 को सूचना का अधिकार, (आरटीआई) अधिनियम पारित हुआ और 13 अक्टूबर, 2005 को इसे पूरे भारत (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जहाँ प्रत्येक नागरिक को सभी प्रकार की गतिविधियों से सम्बन्धित सूचनाएँ जानने का अधिकार है।

उसे यह भी जानने का पूरा अधिकार है कि उसके द्वारा दिए गए कर का उपयोग कैसे किया जाता है। किन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि कुछ वर्ष पूर्व तक भारत के नागरिकों के पास ऐसी कोई कानूनी (Right To Information) व्यवस्था नहीं थी, जिसके माध्यम से वे सरकारी कार्यालयों से सूचनाएँ प्राप्त कर पाते।

सूचना का अधिकार पर निबंध

सूचना का अधिकार पर निबंध

सूचना का अर्थ क्या है

जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि सूचना का अर्थ क्या है और उसके बाद सूचना का अधिकार क्या है। दरअसल, किसी भी स्वरूप में कोई भी सामग्री, जिसके अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक रूप से धारित अभिलेख, दस्तावेज, विज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागज-पत्र, नमूने, मॉडल, आँकड़ों सम्बन्धी सामग्री इत्यादि शामिल हैं, ‘सूचना’ कहलाती है। इसमें किसी निजी निकाय से सम्बन्धित ऐसी सूचना भी शामिल है जिसे लोक प्राधिकारी तत्काल लागू किसी कानून के अन्तर्गत प्राप्त कर सकता है।

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ITR सबसे पहले किस देश में शुरू हुआ

देश की शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने एवं भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण रखने तथा जनता को शोषण से बचाने एवं नौकरशाही की लालफीताशाही को खत्म करने के लिए देश में जरूरी सूचना प्राप्त करने के अधिकार सम्बन्धी कानून की आवश्यकता बहुत पहले से महसूस की जा रही थी, ताकि जनता सूचनाओं से अवगत होकर अपनी शक्तियों का प्रभावी रूप से सदुपयोग कर सके।

दुनिया के अन्य कई देशों में नागरिकों को यह अधिकार पहले से ही प्राप्त है। लोकतान्त्रिक देशों में स्वीडन पहला देश था, जिसने अपने देश के नागरिकों को सन् 1766 में संवैधानिक रूप से सूचना का अधिकार प्रदान किया। इस समय नीदरलैण्ड, ऑस्ट्रिया, संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त है। भारत भी अब इन देशों की सूची में शामिल हो गया है।

भारत सूचना का अधिकार अधिनियम कब पारित हुआ

भारत को सही अर्थों में लोकतान्त्रिक बनाने के दृष्टिकोण से 15 जून, 2005 को सूचना का अधिकार, (आरटीआई) अधिनियम के रूप में पारित हुआ और 13 अक्टूबर, 2005 को इसे पूरे भारत (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया, जिसमें सरकार की अधिसूचना के तहत आने वाले सभी निकाय शामिल हैं। इसमें ऐसे गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हैं जिनका स्वामित्व, नियन्त्रण अथवा आंशिक निधिकरण सरकार द्वारा किया जाता है।

आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को लोक प्राधिकरण द्वारा धारित सूचना की अभिगम्यता का अधिकार प्रदान करता है। यदि किसी व्यक्ति को किसी सूचना की अभिगम्यता से मना किया जाता है, तो वह केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष अपील/शिकायत दर्ज करा सकता है।

आरटीआई का अर्थ है ‘राइट टू इन्फॉर्मेशन’ अर्थात् ‘सूचना का अधिकार’। इसे संविधान की धारा 19(1) के तहत एक मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया गया है। इस धारा के तहत प्रत्येक नागरिक को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। इसलिए प्रत्येक नागरिक को सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार है कि वह कैसे कार्य करती है, उसकी क्या भूमिका है, उसके क्या कार्य हैं आदि। सूचना का अधिकार पर निबंध

ITR का मूल उद्देश्य

‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ का मूल उद्देश्य नागरिकों को अधिकार सम्पन्न बनाना, सरकार की कार्य प्रणाली में पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को कम करना तथा लोकतन्त्र को सही अर्थों में लोगों के हित में काम करने में सक्षम बनाना है। सूचनाओं से अवगत नागरिक वर्ग शासन-तन्त्र पर आवश्यक निगरानी रखने तथा शासन को अधिक उत्तरदायी बनाने में सक्षम होता है।

ITR अधिकार अधिनियम के बनने की यात्रा

हमारे देश में सूचना के अधिकार की विकास यात्रा सन् 1952 से प्रारम्भ होती है, जब भारत में पहला प्रेस आयोग बना। सरकार ने आयोग से प्रेस की स्वतन्त्रता सम्बन्धी जरूरी प्रावधानों पर सुझाव माँगा, तो इसने पारदर्शिता की वकालत तो की, किन्तु सूचना के अधिकार को अनावश्यक माना। 1966 में प्रेस परिषद् की स्थापना की गई, जिसने सूचना से सम्बन्धित कुछ प्रस्ताव दिए, किन्तु इसका भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला।

उसके बाद 1967 में सरकारी गोपनीयता कानून में संशोधन के प्रस्ताव आए, लेकिन उन प्रस्तावों को खारिज कर इस कानून को और अधिक सख्त बना दिया गया। 1977 में जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में सूचना का अधिकार देने का वादा किया और 1978 में इसके लिए प्रेस आयोग की स्थापना की गई, किन्तु लोगों तक सूचना का अधिकार पहुँचाने की दिशा में सार्थक प्रयास 1989 में बनी वी.पी. सिंह की सरकार ने किया। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में सूचना के अधिकार से सम्बन्धित कानून बनाने की बात की।

1997 में इस सम्बन्ध में दो विधेयक लाए गए, लेकिन ये दोनों विधेयक विधायी का रूप नहीं ले सके। दिसम्बर 2002 में इससे सम्बन्धित कानून पारित हुआ, किन्तु इसमें इतनी खामियाँ थीं कि इसे दोबारा तैयार करना पड़ा। अन्ततः 15 जून, 2005 को सूचना का अधिकार एक अधिनियम के रूप में पारित हुआ और 13 अक्टूबर, 2005 को इसे पूरे देश (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। आर टी आई अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना जिसे संसद एवं राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को देने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार की सूचना कितने दिन में देना अनिवार्य है

सूचना के अधिकार के अन्तर्गत माँगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध कराना कानूनन जरूरी है। किसी के जीवन या स्वतन्त्रता से जुड़ी सूचना 48 घण्टे के भीतर देना अनिवार्य है। सभी मन्त्रालयों एवं विभागों में इस कार्य के लिए खास तौर पर जनसूचना अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है। यदि कोई नागरिक अधिनियम के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करना चाहता है, तो उसे लोक प्राधिकरण के सम्बन्धित केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अंग्रेजी, हिन्दी या उस क्षेत्र की राजकीय भाषा में लिखित रूप में आवेदन कर सकता है।

आवेदनकर्ता अपना आवेदन डाक द्वारा, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अथवा व्यक्तिगत रूप से लोक प्राधिकारी के कार्यालय में भेज सकते हैं। आवेदनकर्ता को आवेदन के साथ सूचना माँगने के लिए निर्धारित शुल्क ₹10 का माँग पत्र अथवा बैंकर्स चेक अथवा भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में लोक प्राधिकारी के लेखा अधिकारी के नाम से भेजना होता है। शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी अथवा केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी को नकद भी किया जा सकता है।

आवेदनकर्ता को सूचना प्रदान करने में आने वाली लागत के लिए अतिरिक्त शुल्क भी अदा करना पड़ सकता है। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों के लिए यह प्रक्रिया निःशुल्क है, किन्तु उन्हें इसके लिए आवेदन के साथ गरीबी रेखा के नीचे होने का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होता है। जहाँ तक सूचना माँगने के लिए आवेदन के लिए निर्धारित प्रपत्र की बात है, तो इसके लिए कोई प्रपत्र निर्धारित नहीं है, आवेदन सादे कागज पर भेजा जा सकता है।

ITR की सीमाएँ

सूचना के अधिकार से सम्बन्धित इस कानून में कुछ सीमाएँ भी निर्धारित की गई हैं। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण देश के 22 संगठनों को इस अधिनियम से मुक्त रखा गया है। इनमें से केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, आसूचना ब्यूरो, सीमा सुरक्षा बल, प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख हैं। सरकारी अधिकारी की ओर से फाइल पर लिखी गई नोटिंग देखना भी इस कानून के तहत सम्भव है। अपराध रोकने या कानून व्यवस्था लागू करने का मामला हो तो अधिकारी जानकारी को छुपा भी सकते हैं।

भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण के इस दौर में जब निजी क्षेत्र की कम्पनियों, उद्यमों एवं संस्थाओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है, ऐसे में इनसे सम्बन्धित सूचनाओं का इस अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं होना निश्चय ही इस कानून की एक बड़ी खामी है, क्योंकि देश एवं समाज के विकास में आज निजी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इस कानून की एक और बड़ी खामी यह है कि इसमें कुछ क्षेत्रों से सम्बन्धित सूचनाओं को भारत की सम्प्रभुता, अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों तथा विदेशी सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के नाम पर गोपनीयता के दायरे में रखा गया है।

प्रश्न यह उठता है कि यह तय करने का अधिकार किसे है कि कौन-सी सूचना इन उद्देश्यों के लिए गोपनीय रखना आवश्यक है। कानूनन यह अधिकार सूचना आयुक्त के पास है। अतः ऐसी स्थिति में पूर्ण पारदर्शिता की बात असम्भव-सी लगती है। इन सबके बावजूद यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इस अधिनियम ने एक ऐसी शासन प्रणाली सृजित की है जिसके माध्यम से नागरिकों को लोक प्राधिकारियों के नियन्त्रण में उपलब्ध सूचना तक पहुँचना सुलभ हुआ है। आशा है कि आने वाले समय में देश से भ्रष्टाचार के उन्मूलन में इस अधिकार की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी।

कानूनी जुर्माने का भी प्रावधान

इस कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि वह जानकारी नहीं दी जाएगी जो किसी की निजता भंग करती हो। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि कोई अधिकारी किसी व्यक्ति को सूचना देने से मना करता है या देर से अथवा गलत सूचनाएँ देता है तो वह अधिकारी निजी तौर पर दण्ड का भागीदार होगा तथा उस पर प्रतिदिन के हिसाब से ₹250 का जुर्माना लगेगा, जिसकी अधिकतम राशि ₹25000 तक हो सकती है। सूचना का अधिकार पर निबंध

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