सच्ची भक्ति – चिकित्सक के हाथों में जादू, कोई भी रोगी निराश नहीं जाता था।

सच्ची भक्ति:- एक था राजा। उसके राज्य में एक बहुत ही अच्छे चिकित्सक थे- देवदत्त। उनके हाथों में न जाने क्या जादू था कि कोई भी रोगी उसके पास से निराश होकर नहीं जाता था। राजा भी देवदत्त का बहुत सम्मान करता था।

एक दिन देवदत्त ने सोचा- “बहुत दिन हो गए संसार की मोह माया में रहते हुए। अब मुझे मोहमाया को त्याग भगवान का भजन करना चाहिए। जिससे मेरा परलोक सुधरे।” यह सोचकर उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया।

सच्ची भक्ति

सच्ची भक्ति

जब राजा को यह समाचार मिला तो वह बहुत चिंतित हुआ। वह देवदत्त के पास गया और बोला- “मैंने सुना है आपने संन्यास लेने का फैसला किया है। क्या यह उचित है? आपके वन में चले जाने के बाद लोगों का क्या होगा? इसीलिए मेरी विनती है कि आप यहीं रहिए। “

लेकिन देवदत्त ने तो पक्का निश्चय कर लिया था। वह बोले- “राजन, तुम्हारे राज्य के कामों के लिए मैं अपना परलोक नहीं बिगाड़ सकता। यदि ईश्वर की भक्ति नहीं करूंगा तो मेरी गति कैसे होगी? इसलिए मैं संन्यास तो लूंगा ही। तुम कोई अन्य प्रबंध कर लो।” देवदत्त का यह उत्तर सुनकर राजा निराश होकर अपने महल में लौट आया कुछ दिनों बाद उसे समाचार मिला कि देवदत्त वन में चले गए हैं।

देवदत्त तो वन में चले गए परंतु राजा के लिए एक गंभीर समस्या खड़ी कर गए। वह जानते थे कि राज्य में अन्य कोई ऐसा चिकित्सक नहीं है जोकि समस्त प्रजा के हर रोग का इलाज कर सके, इसलिए वो रात-दिन इसी सोच में डूबे रहते कि किस तरह इस समस्या का निदान हो। अन्य कोई हल न देखकर उन्होंने भगवान शिव की आराधना करनी शुरू कर दी।

उधर वन में देवदत्त तपस्वियों का सा जीवन जीने लगे तथा भगवान की आराधना करते रहते। एक दिन वह भगवान का भजन कर रहे थे कि अचानक भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए। ‘भगवान ने मुझे दर्शन दिए, मेरी तपस्या सफल हुई यह सोचकर देवदत्त भगवान शिव के चरण-स्पर्श करने के लिए उद्यत हुए। परंतु वह ज्यों ही भगवान के करीब पहुंचे तो देखा उनके स्थान पर एक रोगी मनुष्य पड़ा कराह रहा है। वे अचंभित हो गए।

उन्होंने फिर दूसरे स्थान पर भगवान शिव को देखा। परंतु जैसे हो वह भगवान तक पहुंचे, तब तक भगवान शिव का स्थान फिर रोगी मनुष्य ने ले लिया था। जब कई बार ऐसा हुआ तो देवदत्त अधीर हो उठे। अधीर होकर उन्होंने भगवान शिव को मदद के लिए पुकारा।

देवदत्त की पुकार सुनकर भगवान शिव अपने सौम्य रूप में प्रकट हुए तथा बोले- “क्या बात है देवदत्त, तुमने क्या देखा जो इतने अधीर हो गए हो?”

यह सुनकर देवदत्त बोला- “भगवन, मैं देखता हूं कि आप हैं, फिर देखता हूं आप नहीं रोगी मनुष्य है। यह क्या माया है प्रभु?”

यह सुनकर भगवान शिव हंसे और बोले- “इसमें आश्चर्य की क्या बात है। यह तो सत्य है कि मैं ही रोगी मनुष्य हूँ। मेरा वास तो सभी मनुष्यों में है। फिर तुम मेरे लिए वन-वन क्यों भटकते हो। यदि मेरी सच्ची भक्ति करना चाहते हो तो अपने राज्य में वापस लौट जाओ और रोगी तथा दुखी मनुष्यों की सेवा करो मैं सदा तुम्हारे साथ रहूंगा।” यह कहकर भगवान शिव अंर्तध्यान हो गए।

भगवान शिव का उपदेश सुनकर देवदत्त को अपनी भूल समझ में आ गई। वह वापिस अपने राज्य में लौट आए और फिर से बीमार व दुखी मनुष्यों की सेवा में जुट गए।

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