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सदाचार पर निबंध? सच्चरित्रता का महत्व पर निबंध?

सदाचार पर निबंध (Sadachar Par Nibandh) :- आज का युग अर्थ प्रधान युग है। इसमें व्यक्ति की श्रेष्ठता का मापदंड धन है। अतः व्यक्ति धन के पीछे पागल हुआ फिरता है। इसके लिए कोई भी ऐसा ऊँच-नीच काम नहीं जो वह नहीं करता, किन्तु धन ही तो श्रेष्ठ नहीं? उससे भी श्रेष्ठ है-स्वास्थ्य । बहुत बड़े-बड़े धनपति हैं, सब सुख-सुविधाएँ हैं, पर दो रोटी और पाव भर दूध भी नहीं पचा सकते। बेचारे नित्य बीमार रहते हैं। बड़े-बड़े वैद्यों, डाक्टरों के इलाज से भी रोग नहीं जाता। स्वास्थ्य ठीक रहने से धन तो कमाया जा सकता है, पर धन से स्वास्थ्य तो नहीं खरीदा जा सकता?

सदाचार पर निबंध (Sadachar Par Nibandh)

सदाचार पर निबंध

किन्तु स्वास्थ्य से भी एक श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण वस्तु है-चरित्र । चरित्र के सामने स्वास्थ्य भी कुछ नहीं। और पैसा? पैसा तो हाथ का मैल है। अंग्रेजी में एक उक्ति है, जिसका भाव है कि -“धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और यदि चरित्र गया तो सब कुछ ही नष्ट हो गया।” वस्तुतः सच्चरित्रता के सामने धन और स्वास्थ्य का भी कोई मूल्य नहीं।

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चरित्र का महत्त्व

सच्चत्रिता या सदाचार ही वस्तुतः जीवन का सार है। ‘चरित्र है मूल्य जीवन का, सुचरित है प्रभा धन की। संसार की बड़ी से बड़ी सम्पत्ति, महान् साम्राज्य, कोई भी लौकिक वस्तु चाहे उसका कितना मूल्य क्यों न हो, चरित्र के सामने उसका कोई भी मूल्य नहीं। हम विद्वान् की महत्ता स्वीकार करते हैं, शक्तिशाली से भयभीत रहते हैं और घनी के सामने उसकी प्रशंसा करते हैं, किन्तु यदि ये सच्चरित्र नहीं तो हम उनका आदर व विश्वास नहीं करते।

सदाचार या सच्चरित्रता का आशय

सच्चरित्रता या सदाचार अनेक गुणों के समुच्चय का नाम है। सत्य आचरण, सद्-व्यवहार, अच्छा चाल-चलन, इन्द्रिय-संयम, उदारता, पवित्रता, नम्रता, प्रेम, मन-वचन और कर्म की एकता, लोभ का अभाव, ईमानदारी आदि गुण इसके अन्दर आते हैं, जेस व्यक्ति में ये गुण आते हैं, वही सच्चरित्र या सदाचारी कहा जाता है। ‘सत्+आचार’ ये सदाचार शब्द बनता है, जिसका अर्थ ही श्रेष्ठ आचरण है। मन, वचन और कर्म के सदाचार का पालन करने वाला व्यक्ति ही महात्मा और पूज्य होता है। सदाचारी व्यक्ति पराई स्त्री को माता के सम्मान, पराए धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान ही समझता है। वह सब में अपनी ही आत्मा के दर्शन करता है।

बड़ी से बड़ी सम्पत्ति, बड़े से बड़ा साम्राज्य, जब प्रकार का मान-सम्मान या कोई भी बहुमूल्य लौकिक वस्तु ये सब सच्चरित्रता के सामने तुच्छ हैं। विद्वान् की विद्वता, शक्तिशाली की शक्ति, धनी का धन चरित्र से ही शोभित होते हैं। बिना सुचरित्र के उनकी विद्या, बल और धन का कोई मूल्य नहीं।

सच्चरित्रता वह धन है, जिसके सामने अन्य धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य सब तुच्छ हैं। संसार के समस्त सुख-वैभव सच्चरित्र व्यक्ति का चरण चुम्बन करते हैं। अपनी सच्चरित्रता के बल पर, जन-मन पर उसका अधिकार होता है। एक निर्धन सच्चरित्र पर करोड़ों धनवान् दुश्चरित्रों को न्यौछावर किया जा सकता है। दुराचारी ब्राह्मण से सदाचारी शूद्र श्रेष्ठ होता है। “आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः” अर्थात् दुराचारी व्यक्ति को तो वेद भी पवित्र नहीं करते।

सच्चरित्र होना सरल भी है और कठिन भी। इसके लिए व्यक्ति को अनवरत साधना करनी होती है। वह सावधानी से अपने गुणों का संचय करता है-अपने गुणों को छिपाता है परन्तु पुष्प की सुगन्धि क्या कहीं छिपती है? ऐसे सच्चरित्र व्यक्ति सदा समाज में सम्माननीय होते हैं।

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कुछ उदाहरण

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम सदाचार की प्रत्यक्ष मूर्ति थे। आद्य शंकराचार्य का जीवन चरित्र किसके लिए अनुकरणीय नहीं? जिन्होंने अपने आदर्श चरित्र के बल पर वेदों का पुनरुद्धार करके जगद्गुरु की पदवी प्राप्त की। महाराणा प्रताप और शिवाजी भी ऐसे चरित्रवान् महापुरुष हुए, जिन्होंने अपने चरित्र से इतिहास के पृष्ठों को उज्ज्वल कर दिया। शिवाजी के जीवन की वह घटना किसे याद नहीं होगी?

जब उसके सामने सैनिकों ने एक अत्यन्त सुन्दरी मुगल तरुणी को प्रस्तुत किया और मन में सोचा कि छत्रपति इसे महारानी बनायेंगे, – परन्तु शिवाजी ने उसे देखकर कहा- ‘यदि मेरी माता भी इतनी मुन्दर होती तो मैं भी इतना सुन्दर होता।’ इस उक्ति में उनके चरित्र का दिव्य तेज झलकता है। महाराणा प्रताप ने भी मुगल सरदार की पत्नी को इसी प्रकार आदर के साथ उसके पति के पास पहुँचाया था। इसी प्रकार चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, बिवेकानन्द आदि महात्मा अपनी सच्चरित्रता के बल पर ही समाज का उद्धार कर सके।

उपसंहार

सच्चरित्र व्यक्ति बाह्य दृष्टि से भले ही दीन रहे, परन्तु सबसे मन-मन्दिर में उनके सद्गुणों की मूर्ति सदा रहती है। युग उनके चरण-चिह्नों पर चलता है। वे जिस ज्ञान का प्रकाश देते हैं, समाज उस पर चलकर अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। अतः जीवन में सदाचार रूपी धन का संचय अवश्य करना चाहिए।

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