सल्तनत कल का पतन: फिरोज तुगलक के उत्तराधिकारी अत्यधिक अयोग्य और शक्तिहीन थे। उन्होंने अपना अधिकांश समय मनोविनोद तथा पारस्परिक संघर्ष में ही लगाया। परिणामस्वरूप प्रान्तीय गवर्नरों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। सल्तनत का बचा-खुचा वैभव दिल्ली में 1398 ई० में हुए तैमूर के आक्रमण से समाप्त हो गया।
सल्तनत कल का पतन

तैमूर का आक्रमण
सन् 1398 में उत्तर भारत पर फिर मध्य एशिया की सेनाओं का आक्रमण हुआ। तुर्क सरदार तैमूर ने जिसे तैमूरलंग भी कहा जाता है, अपनी विशाल सेना लेकर भारत पर आक्रमण कर दिया।
आक्रमण का उद्देश्य केवल उत्तर भारत पर आक्रमण करना और लूट का माल लेकर मध्य एशिया लौट जाना था। तैमूर के सैनिकों ने दिल्ली में प्रवेश किया। उन्होंने नगर को लूटा और नगर निवासियों की हत्या की। जब उन्होंने पर्याप्त मात्रा में धन लूट लिया तब वे समरकंद लौट गए। अपनी राजधानी समरकंद जाते समय तैमूर ने खिज खाँ को पंजाब का गवर्नर (शासक) नियुक्त किया।
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सैय्यद वंश (1414 ई० से 1451 ई०)
अन्तिम तुगलक शासक नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद खिज खाँ ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और सैय्यद वंश की नींव डाली। खिज्र खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण न कर, रैयत-ए-आला उपाधि धारण की। वह जीवन भर तैमूर के वंशजों का वफादार बना रहा और उन्हें राजस्व तथा उपहार भेजता रहा।
लोदी वंश (1451 ई0-1526 ई0)
दिल्ली सलतनत का अन्तिम राजवंश लोदी वंश था। 1451 ई० दिल्ली के अमीरों ने सरहिन्द के सूबेदार बहलोल लोदी को आमंत्रित कर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। लोदी शासक तुर्क न होकर ‘अफगान थे।
बहलोल लोदी (1451 ई0-1489 ई०)
बहलोल लोदी ने सल्तनत को संगठित करने का प्रयत्न किया। उसने जौनपुर पर आक्रमण कर शर्की शासकों को पराजित कर अपने अधीन कर लिया।
सिकंदर लोदी (सन् 1489 ई० से 1517 ई०)
बहलोल लोदी के बाद उसका पुत्र निजाम खाँ सुल्तान सिकन्दर शाह नाम से सिंहासन पर बैठा। उसने 1504 ई० में अपनी राजधानी दिल्ली से हटा कर नये नगर में स्थापित किया। जो बाद में आगरा नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सिकन्दर लोदी की साहित्य के प्रति विशेष रुचि थी। उसके शासन काल में कई ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद हुआ। जिनमें एक आयुर्वेदिक ग्रन्थ का नाम ‘फरहंगे सिकन्दरी रखा। वह स्वयं भी ‘गुलरुखि’ उपनाम से कविता लिखता था।
उसने राज्य की आर्थिक दशा सुधारने के लिए वस्तुओं का मूल्या नियंत्रित किया एवं राजस्व बढ़ाने के लिए भूमि नाप के आधार पर भू-राजस्व निर्धारित किया। उसने नाप के लिए पैमाना गंज-ए-सिकन्दरी चलाया जो 30 इंच का होता था।
इब्राहिम लोदी (सन् 1517 ई० से 1526 ई०)
सिकन्दर लोदी के बाद उसका पुत्र इब्राहिम लोदी सिंहासन पर बैठा इनके समय में सुल्तान तथा अफगान सरकारों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया। अफगान सरदार सुल्तान की शक्तिशाली स्थिति से प्रसन्न नहीं थे।
उन्होंने इब्राहिम लोदी के खिलाफ षड्यन्त्र प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रकार षड्यन्त्रकारी अफगान सरदारों की मदद से काबुल के शासक बाबर ने इब्राहिम लोदी को पानीपत के मैदान में 1526 ई0 में पराजित किया। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी मारा गया और भारत में लोदी वंश के साथ ही दिल्ली सल्तनत का भी अन्त हो गया।
दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण
- दिल्ली सल्तनत में उत्तराधिकार के नियम का अभाव था। शासक की मृत्यु हो जाने के बाद राजपरिवार: में सत्ता के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो जाता। इस प्रकार के आपसी संघर्ष ने आपसी विश्वास की भावना को कम कर दिया, जो आगे चलकर सल्तनत के पतन का कारण बना।
- अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली सल्तनत को सुदूर दक्षिण तक पहुँचाया दिल्ली से अत्यधिक दूरी होने के कारण इन पर नियंत्रण रखना सम्भव नहीं था।
- तैमूर के आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत की शक्ति को कमजोर कर दिया जिससे अधीनस्थ राज्य स्वतन्त्री होने लगे।
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