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समय का सदुपयोग पर निबंध? गया वक्त फिर हाथ आता नहीं?

समय का सदुपयोग पर निबंध:- एक मूर्तिकार ने मूर्ति बनाई और दर्शकों के देखने के लिए उसे बाजार के चौक में रख दिया। देखने वालों की एक बहुत बड़ी भीड़ एकत्र हो गई। जब मूर्ति के ऊपर से पर्दा हटाया तो लोगों ने देखा की उसका मुख बालों से ढका है और सिर का पीछे का भाग बिल्कुल गंजा है। जब मूर्तिकार से इसका रहस्य पूछा गया तो उसने बताया कि वह ‘समय की मूर्ति’ है। यदि व्यक्ति इसे आते ही इसके साम का बाल पकड़ लेता तो वह आगे निकल जाता है, पर सिर गंजा होने के कारण यह पीछे से पकड़ा नहीं जा सकता।

समय का सदुपयोग पर निबंध

समय का सदुपयोग पर निबंध

जीवन की सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग

इस मूल्य वास्तव में जीवन की सफलता का रहस्य इसी में है कि समय को उसके आगे के बालों से पकड़कर वश में कर लिया जाए। जो व्यक्ति समय को नहीं जानता, वह अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता, चाहे उसके पास कितनी ही बड़ी सामर्थ्य क्यों न हो? समय के मूल्य को पहचानना ही समय का सदपयोग है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसी घड़ियां आती हैं, जिन पर उसके भाग्य का बनना या बिगड़ना निर्भर करता है। उन क्षणों में यदि मन जरा-सा हिचकिचाया या डरा तो जीवन का सब कुछ समाप्त हो जाता है।

आलस्य और प्रमाद के कारण व्यक्ति काम को आगे के लिए छोड़ देता है, पर जो काम एक बाद दूसरे समय के लिए छोड़ा, वह सदा के लिए गया। यदि आज के काम को आज ही कर दिया जाए तो कल और आगे बढ़ने का अवसर मिल सकता है। ‘वर्तमान’ सबसे अच्छी घड़ी है, ‘भूतकाल’ तो मर चुका है और ‘भविष्य’ का अभी कुछ पता नहीं। तब मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा वर्तमान ही है। जिन लोगों ने आज का काम कल पर छोड़ा वे पीछे रहे गये। उनसे पीछे रहने वाले समय के साथ-साथ चलते रहे और आगे बढ़ गये।

समय किसी के साथ नहीं चलता, वह अपनी गति से सदा आगे बढ़ता रहता है। समय का उचित उपयोग ही जीवन की सफलता की कुंजी है। यदि हम अपने जीवन के बीतने वाले एक-एक क्षण का ठीक से उपयोग कर सकें तो संसार का बड़े से बड़ा कार्य भी हमारे लिए सरल हो सकता है। संसार के जितने भी महान् व्यक्ति हुए हैं, सबने पहले समय के मूल्य को पहचान कर ही आगे कदम बढ़ाया था और अन्त में प्रतिष्ठा के उच्च शिखर पर चढ़ने में सफल हुए।

नेपोलियन की महती विजय के मूल्य में समय का ही हाथ रहता था। अर्थात् वह अनुकूल समय को पहचानता था और कभी भी आलस्य में उसे हाथ से नहीं जाने देता था। ‘पाँच’ मिनट के मूल्य को न पहचानने के कारण ही आस्ट्रिया वाले नेपोलियन के सामने हार गए थे। वाटरलू ने युद्ध में नेपोलियन की हार का मुख्य कारण ‘पाँच मिनट’ ही थे। उसके साथी ग्रूशी के आने में पाँच मिनट की देर हो गई थी और उसी विलम्ब ने नेपोलियन को बन्दी बनवा दिया था।

एक खरगोश और कछुवे की दौड़ लगाने की शर्त हुई। दोनों ने दौड़ प्रारम्भ की। एक ही छलांग में खरगोश आधे रास्ते पर पहुँच गया और बाकी मार्ग पूरा करने का काम आगे लिए छोड़ पेड़ की शीतल छाया में आराम लेने के लिए लेट गया। उसे नींद आई और मीठे सपनों में खो गया। जब नींद खुली तो देखा कि समय बहुत बीत चुका है। सोचा, कछुआ अभी लक्ष्य तक नहीं पहुँचा होगा। तब उसने, दूसरी छलांग लगाई और अपने निश्चित स्थान पर पहुँच गया। जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसकी लज्जा का और आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि धीरे-धीरे घिसटने वाले कछुए ने बिना एक क्षण भी आराम किए समय के साथ-साथ चलकर तेज चलने वाले खरगोश को हरा दिया था। समय के सदुपयोग का यह उदाहरण कितना उत्तम है!

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समय रुकता नहीं

आज का दिन घूमने में खो दिया तो कल भी वही बात होगी और फिर अधिक सुस्ती आएगी। इसलिए आज जिस काम को करना चाहते हो, को आज ही कर लेना चाहिए। ‘कल’ तो कभी आता ही नहीं। कबीर जी ने कहा है –

काल करै सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब ।।

यदि रेल चलाने वाला ड्राइवर अपने मार्ग पर आने वाले प्रत्येक अन्तिम मिनट की देर करता चले, तो उसको अपने अन्तिम स्टेशन तक पहुँचने में हो सकता है कि घंटों की देर हो जाए और यह भी सम्भव है कि उसकी इस देर के कारण मार्ग में ही कोई दुर्घटना हो जाए।

किसी काम को आगे के लिए स्थगित कर देने का तात्पर्य है- प्रायः उसे सदा के लिए छोड़ देना। ‘अब करने ही वाला हूँ का मतलब होता है, नहीं करने वाला हूँ।’ कहा भी है ‘आषाढ़ का चूका किसान और डाल का चूका बंदर कहीं का नहीं रहता।’ इसीलिए जो व्यक्ति आलस्य-वश किसी कार्य से चूक जाता है, कभी भी फिर उस अवसर को नहीं पा सकता, क्योंकि गया वक्त फिर हाथ आता नहीं।’ समय निकल जाने पर पश्चात्ताप ही हाथ आता है। तब वह कहता है-

उड़ गया मेरा समय जैसे विहंगम,
और खाली हाथ जीवन रह गया।

इस बात को ध्यान में रखकर उन्नति के अभिलाषी व्यक्ति को ठीक समय पर ही काम में जुट जाना चाहिए।

उपसंहार

गाँधी जी का विचार था कि प्रत्येक कार्य के करने न करने का एक समय होता है। यदि आपने समय को परखने की कला भी सीख ली तो आप को किसी प्रसन्नता या सफलता को खोजने की आवश्कयता नहीं, वह स्वयं आकर आपका द्वार खटखटायेगी।

समय हाथ में तभी आ सकता है, जब हम अपने को नियमित कर डालें। प्रत्येक कार्य के लिए कार्यक्रम बना लें तो फिर उस पर अटल होकर आगे बढ़े। यदि कार्यक्रम बनाकर दीवार पर टांग भी दिया और उसके अनुसार आचरण नहीं किया, तो वह व्यर्थ है, उसका कोई महत्त्व नहीं। समय का सदुपयोग रंक को राजा और समय का दुरुपयोग राजा को भिखारी बना देता है। अतः समय के मूल्य को पहचानना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।
तभी तो कहा गया है-

का बरसा जब कृषि सुखानी।
समय चुके पुनि का पछतानी।।

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