सनकी राजा: सोनपुर में राजा विचित्रसिंह राज्य करता था। विचित्रसिंह बहुत ही बुद्धिमान और वीर था, परंतु कुछ सनकी भी था। सोनपुर राज्य की पूर्वी सीमा पर ऊंची-ऊंची पहाड़ियां थीं। एक बार की बात है पहाड़ियों की खुदाई करते समय कुछ सोने की खानों का पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी- “राज्य के सभी मजदूरों को राज्य की पूर्वी सीमा पर भेज दो।” राजा की आज्ञानुसार राज्य के सभी मजदूर सोने की खानों में काम करने के लिए भेज दिए गए।
सनकी राजा

मजदूर दिन-रात खानों में काम करते तथा सोना निकालकर राजा के पास भिजवा देते। इधर ज्यों-ज्यों राजा के पास सोना बढ़ता गया, त्यों-त्यों उसका लालच भी बढ़ता गया। एक दिन उसने सोचा- ‘क्यों न मैं राज्य के अन्य युवकों को भी इसी काम में लगा दूं। जितने ज्यादा लोग काम करेंगे उतना ही अधिक सोना मिलेगा और में कुछ ही दिनों में संसार का सबसे अमीर राजा बन जाऊंगा।’ सो उसने देश के सभी युवकों को इसी काम में लगा दिया।
राजा का एक मंत्री था- चतुरसिंह, बहुत ही बुद्धिमान व समझदार उसे राजा की बात समझ नहीं आई। उसने राजा को कहा- “महाराज, राज्य के सभी युवकों को इसी काम में लगा देना उचित नहीं है। राज्य की अन्य जरूरतें भी हैं, वह कैसे पूरी होंगी?” परंतु राजा पर तो इस समय सोना इकट्ठा करने की सनक सवार थी। उसने मंत्री को एक न सुनी।
इधर बुवाई का समय पास आता जा रहा था परंतु अभी तक न तो खेतों में हल हो चला था न अन्य कोई व्यवस्था ही थी। सभी किसान तो खानों में काम कर रहे थे। कौन करता यह काम! फलस्वरूप इस बार खेतों में बुवाई नहीं हुई। फसल न होने के कारण पिछले साल के बचे-खुचे अनाज से काम चलाया गया। इसी प्रकार कुछ समय बीत गया। मंत्री ने फिर राजा से कहा- “महाराज, बुवाई का समय फिर नजदीक आता जा रहा है। पिछली बार की तरह फिर समय न निकल जाए। आप कम-से-कम किसानों को तो वापस बुलवा ही लीजिए वरना जनता भूखों मर जाएगी।” परंतु राजा ने माना। उल्टा वह मंत्री की बात पर क्रोधित हो गया। मंत्री बेचारा चिंता में पड़ गया।
एक दिन की बात है इसी उधेड़बुन में डूबा हुआ मंत्री दक्षिण दिशा की ओर जा रहा था। चलते-चलते वह दूर पहाड़ियों के समीप पहुंच गया। वहां उसे एक बूढ़ा आदमी मिला, जिसके पास एक घोड़ा था। उसने मंत्री से उसके दुख का कारण पूछा। मंत्री के बताने पर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा- “मेरे पास यह घोड़ा है, इसे तुम ले लो। जब तुम्हें किसी मुसीबत का सामना करना पड़े तो कहना ओ सफेद घोड़े मेरी मदद करो। ” यह कहकर बूढ़ा व्यक्ति गायब हो गया।
मंत्री ने देखा उसकी बगल में एक स्वस्थ सफेद घोड़ा अभी भी हिनहिना रहा है। मंत्री ने सोचा- ‘अगर यह घोड़ा सोने की खानों पर काम करने वालों को वहां से भगाने में मेरी मदद करे, तो कितना अच्छा हो।’ यह सोचकर उसने सफेद घोड़े की और देखा। कहा- “सफेद घोड़े, मेरी मदद करो। “
यह सुनकर घोड़ा हिनहिनाया और घुटने मोड़ कर बैठ गया। मंत्री उस पर सवार हो गया। मंत्री को लेकर घोड़ा हवा की गति से पूर्वी पहाड़ियों की ओर चल पड़ा, जहां सोने की खानें थी। घोड़ा इतनी तेजी से दौड़ रहा था कि वह जिधर भी जाता, तेज आंधी चलने लग जाती। खूब मिट्टी उड़ने लगी, जिससे सभी काम करने वालों के आंख, नाक, कान व मुंह मिट्टी से भर गए।
जब आंधी ने रुकने का नाम ही नहीं लिया तो वे परेशान होकर राज्य की ओर भागने लगे। जब सभी लोग वहां से काम छोड़कर भागने लगे तो चतुरसिंह भी राज्य की ओर चल पड़ा। उसने घोड़ा अपने घर में बांध दिया और आराम से सो गया।
उधर जब राजा के पास यह खबर पहुंची तो वह आगबबूला हो उठा। उसने पूछा- “कौन है जिसने यह सब करने की हिम्मत की है।” सबने चतुरसिंह को घोड़े पर बैठे हुए देख लिया था, सो उन्होंने चतुरसिंह का नाम बता दिया। राजा तो चतुरसिंह पर पहले से ही नाराज था इसलिए उसने अपने सिपाहियों को तुरंत आज्ञा दी कि चतुरसिंह को पकड़ लाओ।
जब सिपाही चतुरसिंह को पकड़ लाए तो राजा ने पूछा- “क्या तुम अपना अपराध मानते हो?” इस पर चतुरसिंह बोला- “हां महाराज, यह सब मैंने ही किया है परंतु इसी में हमारी भलाई है।” तब राजा ने कहा- “मैं तुम्हें इस अपराध की सजा दूंगा। उससे पहले अपनी कोई इच्छा पूरी करना चाहते हो, तो कर लो। “
चतुरसिंह राजा की यह बात सुनकर बड़ा दुखी हुआ। उसने राजा से कहा- “महाराज, मेरा एक घोड़ा है जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं। मरने से पहले मैं उस पर सवारी करना चाहता हूं। राजा ने आज्ञा दे दी। राजा की आज्ञा पाकर चतुरसिंह घोड़े पर सवार हुआ। उसने धीरे से घोड़े के कान में कहा- “ओ सफेद घोड़े, मेरी मदद करो।” यह सुनते ही सफेद घोड़ा चतुरसिंह को लेकर उड़ चला। राजा और सभी लोग देखते ही रह गए।
घोड़े के वहां से उड़ते ही सोनपुर में चारों ओर अंधकार- सा छा गया। अंधेरे में ही राजा ने देखा कि उसके राज्य के सभी लोग भूख से व्याकुल हैं। चारों और सिर्फ सोना ही सोना बिखरा पड़ा है। वह तथा उसका परिवार भी भूख से व्याकुल हैं।
यह सब देखकर राजा की आंखें खुल गई। उसने अपने सिपाहियों से कहा- “चतुरसिंह जहां भी हो, उसे ढूंढकर लाओ और मेरा संदेश दो कि राजा को तुम्हारी बहुत जरूरत है। तुम्हारी बात न मानकर राजा ने जो भूल की, उसका उसे बहुत पछतावा है। “
कुछ ही दिनों में सिपाही चतुरसिंह सहित सोनपुर में आए। राजा ने चतुरसिंह को सम्मानपूर्वक अपने पास बैठाया तथा उसे मुख्य सलाहकार बना लिया। अब राजा ने खेती तथा राष्ट्रहित की ओर सारा ध्यान लगा दिया। एक वर्ष उपरांत उसके राज्य में फिर समृद्धि लौट आई।
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