सती सावित्री का जीवन परिचय: भारत में उत्पन्न जिन पतिव्रता स्त्रियों ने अपने पतिव्रत धर्म के प्रभाव से अनेक विचित्र विचित्र काम किये, उनमें सती सावित्री (Sati Savitri Biography in Hindi) का नाम सर्वप्रथम आता है। सावित्री के पिता भाद्र देश के राजा थे। उनका नाम अश्वपति था। अश्वपति ने सावित्री देवी की उपासना कर एक कन्या प्राप्त की, जिसका नाम सावित्री रखा गया।
सती सावित्री का जीवन परिचय

सती सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म के प्रभाव से न केवल अपने मृत पति को यमराज के चंगुल से बचा लिया बल्कि अन्धे सास-ससुर को नेत्रों की ज्योति दिला दी तथा उनका गया राज्य भी दिला दिया। सावित्री के इन्हीं अनोखे कार्यों के कारण सौभाग्यवती स्त्रियाँ पति की लम्बी आयु पाने के लिए जेठ की अमावस्या को सावित्री की पूजा करती हैं।
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परिचय
जब सावित्री विवाह योग्य हो गई तब राजा अश्वपति ने उसको अपना पति स्वयं चुनने की आज्ञा दी। उसे एक मन्त्री की देख-रेख में रथ में बिठा दिया। चलते समय उससे यह भी कह दिया कि पति सोच-समझकर चुनना क्योंकि आर्य कन्याएँ एक ही बार वर चुनती हैं।
सावित्री का रथ अनेक स्थानों पर घूमते-घूमते घने वन में पहुँचा सावित्री ने एक स्वस्थ, सुन्दर और राजसी गुणों से युक्त युवक को देखा। सावित्री उस युवक की ओर आकृष्ट हो गई। मन्त्री ने युवक से कहा, “तुम राजकुमार प्रतीत हो रहे हो। अपना परिचय दो ?”
सत्यवान ने बताया, “मैं शाल्व देश के राजा द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान हूँ। शत्रुओं ने मेरे पिता का राज्य छीन लिया है। मेरे माता-पिता बूढ़े और अन्धे हैं, वे जंगल में रहते हैं। मैं लकड़ियाँ काटकर परिवार का पालन-पोषण करता हूँ।”
परिचय पाकर मन्त्री ने सत्यवान से कहा, “रथ में बैठी यह कन्या मद्र देश के राजा की पुत्री है। इसका नाम सावित्री है। यह आपको अपना पति बनाना चाहती है। क्या तुम इससे विवाह करना स्वीकार करोगे?”
सत्यवान ने उत्तर दिया, “राजमहल में पली राजकुमारी मेरे साथ वन में कैसे रहेगी?” मन्त्री ने कहा, “यह तुम्हारे साथ सब कष्टों को सह लेगी। तुम स्वीकृति दे दो।” सत्यवान ने कहा, “फिर जैसी इसकी इच्छा।” सावित्री ने सत्यवान के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया।
मन्त्री ने घर लौट चलने के लिए कहा। जब सावित्री घर पहुँची, तब पिता के पास महर्षि नारद भी बैठे हुए थे। सावित्री ने पिता को बताया कि, “उसने शाल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान को अपना पति चुना है।” सावित्री के चुनाव को सुनकर महर्षि नारद ने कहा, “सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष शेष है।”
नारद की बात सुनकर सावित्री के पिता ने कहा, “सावित्री तुम दूसरा वर चुनो, क्योंकि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष ही है।” सावित्री ने उत्तर दिया, “आपने ही कहा था कि आर्य कन्या केवल एक बार पति चुनती है। मैं सत्यवान के अलावा दूसरा पति नहीं चुनूँगी। आप मुझे आशीर्वाद दीजिये।” सावित्री के पक्के निश्चय को जानकर पिता ने उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया।
सावित्री सत्यवान के साथ कुटी में रहने लगी। वह अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी और सत्यवान के साथ लकड़ी काटने लगी।
नारद की भविष्यवाणी को ध्यान में रखकर वह सत्यवान की आयु का एक-एक दिन गिनने लगी। वह उसकी दीर्घायु के लिए कठिन व्रत करने लगी। सत्यवान की आयु के अन्तिम दिन से तीन दिन पहले उसने उपवास रखना आरम्भ कर दिया। आयु के अन्तिम दिन वह सत्यवान के साथ लकड़ी काटने के लिए गई।
सत्यवान लकड़ी काट ही रहा था कि उसके सिर में दर्द हुआ। सावित्री ने उसके सिर को गोद में रख लिया। उसने देखा भैंसे पर सवार एक लाल वस्त्रधारी पुरुष उसकी ओर आ रहा है। उसने सावित्री से कहा, “मैं यमराज हूँ और सत्यवान के प्राण लेने आया हूँ।” यह कहकर यमराज सत्यवान के प्राण लेकर यमलोक के लिए पड़े।
सावित्री ने सत्यवान के मृत शरीर को भूमि पर रख दिया और यमराज के पीछे-पीछे चल दी। यमराज ने उससे लौट जाने को कहा। उत्तर में सावित्री ने कहा, “आर्य कन्या पति के पीछे-पीछे चलती है। अतः मुझे भी पति के साथ चलने की आज्ञा दें।”
यमराज ने कहा, “मनुष्य अपनी आयु पूरी होने पर ही प्राण छोड़ता है। तुम्हारी आयु पूरी नहीं हुई है। तुम लौट जाओ।” सावित्री के न लौटने पर यमराज ने वर माँगने को कहा। सावित्री ने वर माँगा, “मेरे अन्धे सास-ससुर के नेत्रों में ज्योति आ जाये और उन्हें अपना राज्य मिल जाय।” यमराज ने यह वर दे दिया।
सावित्री के फिर भी पीछा करने पर यमराज ने दूसरा वर माँगने को कहा। सावित्री ने वर माँगा, “मेरे पिता पुत्रहीन हैं उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो जाय।” यमराज ने वर दे दिया। फिर भी सावित्री के पीछा करने पर यमराज ने एक वर माँगने को और कहा सावित्री ने वर माँगा, “मैं पुत्रवती हो जाऊँ।”
मराज ने वर दे दिया। सावित्री फिर भी यमराज के पीछे ही चलती रही, तब यमराज ने पूछा, “अब मेरे पीछे क्यों आ रही हो?” सावित्री ने कहा, “मैं जीवित पति के बिना पुत्रवती कैसे होऊँगी?” यमराज ने यह सुनकर सत्यवान के प्राण लौटा दिये।
उपसंहार
लौटने पर सावित्री ने सत्यवान को जीवित पाया। दोनों ने आकर देखा कि माता-पिता के नेत्रों में ज्योति आ गई है। थोड़े दिन बाद द्युमत्सेन को अपना राज्य मिल गया। सत्यवान को सावित्री के गर्भ से पुत्र प्राप्त हो गया। अब सावित्री सत्यवान के साथ राजमहल में बड़े आनन्द के साथ रहने लगी।
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