शेरशाह सूरी का शासन काल? शेरशाह सूरी का मकबरा किसने बनवाया था?

शेरशाह सूरी का शासन काल (1540ई0-1545ई0), शेरशाह सूरी का शासनकाल मात्र 5 वर्ष का ही था इतने अल्प समय में उसके द्वारा किए गए सुधारों एवं पूजा की भलाई के लिए किए गए कार्यों ने आगामी शासकों के लिए पथप्रदर्शक का कार्य किया।

शेरशाह सूरी का शासन काल

शेरशाह सूरी का शासन काल

Sher Shah Suri Ka Shasan Kal in Hindi (1540ई0-1545ई0)

बचपन का नाम फरीद था। उसने अपने मालिक को बचाने के लिए शेर को मार डाला था। तभी से फरीद का नाम शेरखौं पड़ गया। जौनपुर में उसने अरबी. फारसी, इतिहास तथा साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया।

शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात फरीद अपने पिता की जागीर देखभाल करने सासाराम वापस आ गया। थोड़े ही दिनों में वह जनता में लोकप्रिय हो गया। जागीर की देखभाल करने के अनुभव ने उसे शासक बनने पर सफल एवं लोकप्रिय बनाया।

कुछ समय के पश्चात उसने बिहार के शासक के यहाँ नौकरी कर ली। वह बाबर की सेना में भी भर्ती हुआ था। इस कारण उसे मुगलों के सैन्य संगठन का अच्छा ज्ञान प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे शेरखों ने बिहार में अपना प्रभाव स्थापित कर लिया और सम्पूर्ण बिहार का शासक बन गया।

चौसा के युद्ध में हुमायूँ को हरा कर वह 1540 ई० में शेरशाह सूरी के नाम से भारत का सुल्तान बना। अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य संगठन एवं लगान सम्बन्धी नीतियों से वह काफी प्रभावित हुआ था। अतः उसने अपने राज्य की व्यवस्था सुधारने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए।

राजस्व सम्बन्धी सुधार

  • उसने भूमि की विविधता के आधार पर अलग-अलग लगान निर्धारित किया।
  • उपजों की किस्मों के आधार पर कर निर्धारण किया जाता था।
  • भूमि की नाप पटवारी द्वारा रस्सी से की जाती थी। नाप की इकाई ‘गज’ थी।
  • किसान भूमि का विवरण सरकार को लिखित रूप में देते थे जिसे कबूलियत कहा जाता था। इससे किसानों का सम्पर्क सीधे सरकार से होने से उनका उत्पीड़न बंद हो गया।
  • नगद रूप में कर देने का आदेश था।
  • अकाल अथवा संकट के कारण फसल का नुकसान होने पर सरकार द्वारा इसकी क्षतिपूर्ति की जाती थी।
  • उसने राज्य और किसानों के बीच सीधा सम्बन्ध स्थापित किया। इसे रैयतवाड़ी व्यवस्था’ कहते थे।

सैन्य संगठन एवं चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था

  • सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए अपनी सेना का संगठन किया।
  • डाक व्यवस्था के लिए डाक चौकी होती थी। यहाँ से डाक घोड़े द्वारा पहुँचायी जाती थी।
  • अधिकारियों को नियमित रूप से वेतन दिया जाता था।
  • अधिकारियों को नियमित रूप से वेतन दिया जाता था।

प्रजा हित के कार्य

  • सोनार गाँव (बंगाल) से पेशावर को जोड़ने वाली सड़क बनवाई जिसे ग्राण्ड ट्रंक रोड कहते हैं। इससे यातायात और संचार व्यवस्था में गति आई।
  • बुरहानपुर तथा जौनपुर को दिल्ली से जोड़ दिया गया। इससे व्यापार को बढ़ावा मिला।
  • सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगवाए, विश्राम के लिए सराय बनवाई तथा पानी के लिए कुएँ खुदवाए।
  • उसने शिक्षा के विकास के लिए कई मदरसे व मकतब भी खुलवाए।
  • शेरपुर (दिल्ली के निकट) नामक नगर यमुना के किनारे बसाया।
  • शेर-ए-मंडल शेरशाह द्वारा दिल्ली के पुराने किले में बनवाया गया था जिसको हुमायूँ ने बाद में पुस्तकालय का रूप दे दिया था।

सूरवंश का पतन

1545 ई० में कालिंजर के युद्ध में वह घायल हो गया तथा कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। शेरशाह की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारियों ने 10 वर्षों तक शासन किया लेकिन ये उत्तराधिकारी इतने योग्य नहीं थे कि वे शेरशाह द्वारा स्थापित साम्राज्य की देखभाल कर सकते। अन्ततः उनके हाथ से साम्राज्य निकल गया तथा उसके वंश का पतन हो गया।

शेरशाह सूरी ने यद्यपि मात्र 5 वर्ष के लिए शासन किया परन्तु उसने एक ऐसा सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था का ढाँचा तैयार किया जिससे बाद में मुगलों को मुगल साम्राज्य की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में लाभ मिला।

सासाराम में स्थित शेरशाह का मकबरा स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। यह उसने अपने जीवन काल में निर्मित कराया था।

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