Telegram Group (100K+) Join Now

शिलाजीत के फायदे? शिलाजीत पहचानने का सही तरीका और उसके उपयोग क्या है?

शिलाजीत एक ऐसी औषधि है जो पूर्ण रूप से प्रकृति से प्राप्त होता है। शिलाजीत के फायदे जानकर रेह जायेंगे हैरान। शिलाजीत दरअसल पत्थर की शिलाओं से पैदा होता है, इसीलिए इसको शिलाजीत (Shilajit Ke Fayde) कहा जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीनों में सूर्य की प्रखर किरणों से अत्यंत तप्त होकर लाल हो चुकी पर्वत-शिलाओं से निकला हुआ लाख की तरह का पिघला हुआ जो द्रव्य बहता है उसे इकट्ठा किया जाता है। यही शिलाजीत कहलाता है।

शिलाजीत के फायदे (Shilajit Ke Fayde)

शिलाजीत के फायदे

शिलाजीत का गुणधर्म

शिलाजीत चरपरा, कड़वा, गर्म, पाक होने पर चरपरा, रसायन, मलछेदन करने वाला, योगवाही तथा कफ, मेद (चर्बी), पथरी, शर्करा (मधुमेह), मूत्रकृच्छ (पेशाब में रुकावट), क्षय, श्वास, वात, बवासीर, पाण्डु, मृगी, उन्माद, सूजन, कोढ़, उदर रोग और पेट के कीड़ों का नाश करने में सहायक है। स्वस्थ मनुष्य भी यदि शिलाजीत का विधिपूर्वक प्रयोग करे तो उसे उत्तम बल प्राप्त होता है।

इसका सेवन तभी करना चाहिए जब वह सुनिश्चित जान-समझ शिलाजीत शुद्ध और असली है या इसमें कोई मिलावट नहीं है। शिलाजीत के फायदे हिंदी?

शिलाजीत पहचानने का सही तरीका

  • शिलाजीत के जरा से टुकड़े को कोयले के अंगारे पर डालने से धुआँ न उठे और वह खूँटे की तरह खड़ा हो जाए तो उसे असली समझें।
  • पानी में डालते ही वह तार-तार होकर तली में बैठ जाए तो शिलाजीत शुद्ध हैं।
  • सूख जाने पर उसमें गोमूत्र जैसी गंध आए, रंग काला और पतले गोंद के समान हो, हलका व चिकना हो तो उसे शुद्ध और उत्तम समझें।

इस तरह परीक्षा करके शुद्ध और असली सिद्ध होने पर ही शिलाजीत को सेवन योग्य माना जाता है। शिलाजीत चार प्रकार के होते है-

शिलाजीत के उपयोग

आयुर्वेद ने सावधान किया है कि शिलाजीत का प्रयोग करने से पहले वमन, विरेचन, आस्थापन आदि क्रियाओं को करके, (जिन्हें कर्म कहते है) शरीर को शुद्ध पानी यानी विकार रहित किया जाए तो अधिक लाभ होगा।

साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि इसका सेवन प्रातः सूर्योदय से पहले दूध या शहद के साथ किया जाए और इसके बाद में दूध, चावल, जौ के आटे की बनी रोटी या अन्य कोई चीज जो जौ से बनी हो, उसका सेवन किया जाए। इसके विविध प्रयोगों का विवरण प्रस्तुत करने से पहले इसकी मात्रा और सेवन विधि के विषय में जानकारी देना जरूरी है।

शिलाजीत की मात्रा और सेवन विधि

चिकित्सकों ने लंबे अनुभव और परीक्षणों के बाद अधिकतम मात्रा 12 रत्ती (146 ग्राम यानी डेढ़ ग्राम) और कम से कम मात्र 2 रत्ती की तय की है। अतः रोगी की आयु, शारीरिक स्थिति और पाचन शक्ति के अनुसार 12 से 2 रत्ती के बीच की उचित मात्रा तय कर लेनी चाहिए।

शिलाजीत प्रयोग की विविध

प्रमेह

शिलाजीत का प्रयोग मूत्र रोग, प्रमेह और मधुमेह के लिए सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। दो रत्ती शिलाजीत, एक चम्मच शहद और एक चम्मच त्रिफला चूर्ण- तीनों को मिलाकर प्रातः सूर्योदय से पहले चाटकर सेवन करने से प्रमेह रोग नष्ट होता है।

दिमागी ताकत

एक चम्मच मक्खन के साथ शिलाजीत का सेवन करने से दिमागी ताकत बढ़ती है और दिमागी थकावट नहीं होती।

यौन दौर्बल्य

यौन शक्ति की कमी, इंद्रिय की शिथिलता और शीघ्र पतन जैसे यौन विकार और दौर्बल्य को दूर करने के लिए शिलाजीत का सेवन मिसरी मिले आधा लीटर दूध के साथ करने से सब शिकायतें दूर हो जाती है।

मूत्र विकार

मूत्रावरोध, पीड़ा जलन और प्रमेह दूर करने के लिए छोटी इलायची और पीपल का समभाग मिलाया हुआ चूर्ण एक चम्मच और शिलाजीत का सेवन करना चाहिए।

मधुमेह

पथ्य-अपथ्य का पालन करते हुए मधुमेह का रोगी निरंतर रूप से उचित मात्रा में शिलाजीत का तब तक सेवन करता रहे जब तक पाँच सेर शिलाजीत उसके शरीर में न पहुँच जाए। मधुमेह रोग तो दूर होगा ही, उसकी कायापलट भी हो जाएगी, ऐसा महर्षि वाग्भट का कहना है।

स्वप्नदोष

आजकल अधिकांश युवक स्वप्नदोष से पीड़ित रहते हैं। ऐसे रोगियों को यह नुस्खा तैयार कर लेना चाहिए :

बहुमूत्रता

बार-बार पेशाब आए, रात को भी पेशाब करने के लिए उठना पड़े, एक साथ भारी मात्रा में पेशाब होना आदि बहुमूत्रता के लक्षण हैं। इस व्याधि को दूर करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है शिलाजीत, बंगभस्म, छोटी इलायची के दाने और वंशलोचन असली- इन चारों को समान मात्रा में लेकर शहद के साथ मिलाकर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बना लें।

कुंभकामला

शिलाजीत 2 रत्ती मात्रा में गोमूत्र के साथ सेवन करने से कुंभकामला रोग नष्ट होता है।

उच्च रक्तचाप

शिलाजीत हाई ब्लडप्रेशर के रोगी को भी लाभ पहुँचाती है । काली सारिवा 5 ग्राम और मुलहठी 10 ग्राम 2 कप पानी में डालकर काढ़ा बनाएँ। जब पानी आधा कप रह जाए तब उतारकर छान।

अपथ्य

शिलाजीत एक लाभकारी और पौष्टिक द्रव्य है, पर कुछ स्थितियों में इसका सेवन वर्जित भी हैं। शिलाजीत का सेवन पित्त प्रधान प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए। पित्त प्रकोप हो, आँखों में लाली रहती हो, जलन होती हो और शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो तो ऐसी स्थिति में भी शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए।

पथ्य

शिलाजीत का सेवन रोग या कमजोरी दूर होने तक तो करना ही चाहिए, बाद में भी कुछ दिन तक किया जाता रहे तो हर्ज नहीं। शिलाजीत का सेवन करने के बाद कम से कम 3 घंटे तक भोजन या अन्य कोई ठोस पदार्थ नहीं खाना चाहिए ताकि शिलाजीत के पचने में बाधा न पड़े।

यह भी पढ़े –

Subscribe with Google News:

Telegram Group (100K+) Join Now