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सिपाही माटी के – सुंदर मिट्टी के खिलौने बनाने बाली बनाती दीपा की कहानी

सिपाही माटी के: एक थी खिलौने वाली। उसकी एक बेटी थी- दीपा खिलौने वाली मिट्टी के सुंदर-सुंदर खिलौने बनाती और उन्हें बाजार में बेच आती। इसी से मां-बेटी का गुजारा चलता था। एक बार खिलौने वाली बीमार पड़ी। कुछ दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। अब दीपा अकेली रह गई थी। ये तो अच्छा हुआ कि उसने अपनी मां से खिलौने बनाने सीख लिए थे। अब वह स्वयं खिलौने बनाती और बेच आती। इसी तरह उसका जीवन चलने लगा।

सिपाही माटी के

सिपाही माटी के

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एक दिन दोपा ने मिट्टी की एक गुड़िया बनाई गुड़िया थी अत्यंत सुंदर ऐसा लगता था, मानो अभी बोल उठेगी। दीपा ने सोचा- ‘मैं इसे बेचूंगी नहीं, अपने ही पास रखूंगी।’ लेकिन बेचारी ऐसा कैसे कर सकती थी तब तो उसे भूखा ही रहना पड़ता। अगले दिन बड़े अनमने मन से उसे बेचने के लिए ले गई। शाम ढलने तक उसके सभी खिलौने बिक गए, किंतु वह गुड़िया न बिकी क्योंकि दीपा ने उसके दाम बहुत ज्यादा बताए थे।

अंधेरा घिरने लगा था। दीपा के अन्य साथी अपने-अपने घर लौट गए थे। दीपा ने सोचा ‘अब मुझे भी चलना चाहिए।’ यह सोचकर वह चलने को उठी। तभी वहां एक बूढ़ा आया। उसने लंबा चोगा पहन रखा था। उसकी लंबी दाढ़ी जैसे जमीन को छू रही थी। चेहरा डरावना सा था। दीपा बूढ़े व्यक्ति को देखकर कुछ डर गई।

बूढ़े ने दीपा से पूछा- “क्या तुम्हीं खिलौने बनाने वाली लड़की हो?” दीपा ने डरते-डरते उत्तर दिया–“हां, मैं ही खिलौने बनाती हूं। “

बूढ़ा फिर बोला–“तुम एक दिन में कितना कमा लेती हो?” दीपा बोली- ” अधिक नहीं, बस दो जून की रोटी मुश्किल से जुटा पाती हूं।’

बूढ़े ने कहा- “मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें अच्छी तरह रखूंगा और खूब मजदूरी दूंगा।’

अच्छी मजदूरी पाने के लालच में दीपा उसके साथ चल तो दी लेकिन रास्ते में कई बार उसके मन में आया कि वह भाग जाए, पर बूढ़ा बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा था। कुछ देर बाद वे दोनों एक विचित्र से मकान के पास पहुंच गए।

बूढ़ा दीपा को मकान में ले गया। एक बड़े कमरे में चारों तरफ लकड़ी, लोहे तथा सोने-चांदी से बनी अनेक प्रतिमाएं थीं। बड़े ने दीपा से बैठ जाने के लिए कहा। फिर उसने ताली बजाई। एक नौकरानी कमरे में दाखिल हुई। बूढ़े ने उसे खाना लाने की आज्ञा दी। दीपा को जोरों की भूख लगी थी। उसने पेट भर भोजन किया।

इसके बाद वह बूढ़ा दीपा से बोला- “तुम्हें रोज इसी तरह बढ़िया भोजन मिलेगा। बस, इसके बदले में तुम्हें मेरा काम करना होगा।” बूढ़े ने दीपा को एक पुतला दिखाया और कहा— “तुम्हें ऐसे ही बीस पुतले और बनाने होंगे। मैं दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूं, तुम कल से ही अपना काम शुरू कर देना।” यह कहकर बूढ़े ने फिर ताली बजाई। नौकरानी दीपा को एक छोटे, किंतु सुंदर कमरे में ले गई दीपा ने सोने की बहुत कोशिश की, पर उसे नींद नहीं आई। वह डर से रोने लगी।

दीपा को रोता देखकर उसकी बनाई गुड़िया बोलने लगी। उसने दीपा को कहा “डरों मत। मैं जो तुम्हारे पास हूं। यह बूढ़ा एक दुष्ट जादूगर है। अपने जादू से इसने कई राजा तथा राजकुमारों को कैद कर रखा है। जादूगर ने एक ऐसी दवा बनाई है, जिसे निर्जीव चीजों पर छिड़कने से वे जीवित हो जाती हैं। जो पुतले वह तुमसे बनवाना चाहता है, वे बहुत ही भयंकर किस्म के हैं। उन पुतलों में प्राण डालकर जादूगर सारे संसार में तहलका मचाना चाहता है। ” गुड़िया बोली- “पर तुम डरो नहीं। वैसा ही करना, जैसा मैं कहूं। अब तुम चैन से सो जाओ।” गुड़िया को बोलते सुन दीपा भौचक्की रह गई।

फिर सोचा- ‘चलो, कोई तो है मेरे साथ।’ अगली सुबह बूढ़ा कहीं चला गया। जाते जाते वह मकान के बाहर ताला लगा गया ताकि दीपा कहीं भाग न सके। जादूगर के जाने के बाद गुड़िया ने दीपा से कहा- “मिट्टी के दस सिपाही बना दो। फिर जादूगर की बनाई हुई दवा ढूंढकर उन पर छिड़क दो। जब वे जीवित हो जाएं तो उनको छिपाकर जादूगर का इंतजार करना।

दीपा ने मिट्टी के दस सिपाही बना लिए। अब उसे वह दवा ढूंढनी थी। उसने सारा घर छान मारा, पर उसे दवा न मिली। दीपा ने नौकरानी से पूछा। उसने सोचा शायद मुझे भी जादूगर के चंगुल से मुक्ति मिल जाए। इसलिए उसने दीपा को गुप्त स्थान बता दिया। वहां अनेक डरावनी चीजें रखी थीं। काफी खोजबीन के बाद दीपा को एक शीशी मिल गई। उसमें रंगीन-सा पानी था। दीपा ने उस पानी की कुछ बूंदें अपने बनाए पुतलों पर छिड़क दीं। वे जीवित हो गए।

ठीक दस दिन बाद जादूगर लौट आया। उसने दीपा से पूछा- “क्या तुमने अपना काम पूरा कर लिया है। “

दीपा ने निर्भीक होकर उत्तर दिया” मैंने एक भी पुतला नहीं बनाया।’

यह सुनकर जादूगर आग-बबूला हो उठा। वह दीपा पर झपटने ही वाला था कि दीपा ने ताली बजा दी। ताली बजाते ही छिपे हुए दसों सिपाही निकल आए। उन्होंने जादूगर को घेरकर मार दिया।

दीपा ने बाकी दवाई उन प्रतिमाओं पर छिड़क दी, जो बड़े कमरे में रखी थीं। वे भी जीवित हो उठीं। उनमें अनेक राजा, राजकुमार थे। सब दीपा का धन्यवाद करके अपने- अपने राज्यों में लौट गए। दीपा उस किलेनुमा मकान में ही रहने लगी।

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