सूरदास का जीवन परिचय: सूरदास का जन्म संवत् 1540 में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास (गायक) था। सूरदास का जन्म स्थान आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता गाँव में हुआ था। भक्तिकाल काव्य की श्रेष्ठता की दृष्टि से हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल (Surdas Ka Jeevan Parichay) कहलाता है। इस काल के कवियों में प्रमुख कृष्णभक्त सूरदासजी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
सूरदास का जीवन परिचय

Surdas Biography in Hindi
जन्म | संवत् 1540 |
जन्म स्थान | आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता गाँव |
पिता का नाम | रामदास (गायक) |
मृत्यु | संवत् 1642 |
जीवन परिचय
सूरदास सगुणमार्गी कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनका जन्म संवत् 1540 में आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता गाँव में हुआ था। कुछ विद्वान सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट सीही गाँव में मानते हैं। ये बचपन से ही विरक्त हो गये थे और गऊघाट में रहकर विनय के पद गाया करते थे।
वल्लभाचार्य ने इनको कृष्ण की लीला का वर्णन करने का सुझाव दिया। ये वल्लभाचार्य के शिष्य बन गये और कृष्ण की लीला का गान करते थे। वल्लभाचार्य ने इनको गोवर्धन पर बने नाथजी के मन्दिर में कीर्तन करने के लिए नियुक्त किया।
वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथ ने अष्टछाप के नाम से आठ कृष्ण-भक्त कवियों का संकलन किया। सूरदास अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनकी मृत्यु पारसौली ग्राम में संवत् 1640 के लगभग हुई।
साहित्य
सूरदास के पदों का संकलन सूरसागर नाम से है। सूरसारावली तथा साहित्य-लहरी इनकी अन्य रचनाएँ हैं। यह प्रसिद्ध है कि सूरसागर में सवा लाख पद हैं। पर अभी तक केवल दस हजार पद ही प्राप्त हुए हैं।
सूरदास ने कृष्ण की बाल लीलाओं का बड़ा ही विशद् तथा मनोरम वर्णन किया है। बाल-जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं, जिस पर इस कवि की दृष्टि न पड़ी हो। इसलिए इनका वात्सल्य वर्णन भी बहुत आकर्षक है। संयोग और वियोग दोनों का मर्मस्पर्शी चित्रण सूरदास ने किया है।
सूरसागर का एक प्रसंग भ्रमरगीत कहलाता है। इस प्रसंग में गोपियों के प्रेमावेश ने ज्ञानी उद्धव को भी प्रेमी एवं भक्त बना दिया। सूर के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी तन्मयता। ये जिस प्रसंग का वर्णन करते हैं उसमें आत्म-विभोर कर देते हैं। इनके विरह-वर्णन में गोपियों के साथ ब्रज की प्रकृति भी विषाद-मग्न दिखायी देती है।
भक्ति भाव
सूर की भक्ति मुख्य रूप से सखा भाव की है परन्तु उसमें विनय, दाम्पत्य और माधुर्य भाव का भी मिश्रण है। सूरदास ने ब्रज के लीलापुरुषोत्तम कृष्ण की लीलाओं का ही विशद् वर्णन किया है।
सूरदास का सम्पूर्ण काव्य संगीत की राग-रागिनियों में बँधा हुआ पद शैली का गीतकाव्य है। उसमें भाव-साम्य पर आधारित उपमाओं, उत्प्रेक्षाओं और रूपकों की छटा देखने को मिलती है। इनकी कविता ब्रजभाषा में है।
माधुर्य की प्रधानता के कारण इनकी भाषा बड़ी प्रभावोत्पादक बन गयी है। व्यंग्य वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। पद शैली में कृष्ण की लीलाओं के गान की यह परम्परा हिन्दी काव्य में आधुनिक काल तक चलती रही।
उपसंहार
महाकवि सूरदासजी ने लीलापुरुषोतम श्रीकृष्ण की विविध हृदय स्पर्शी लीलाओं के द्वारा जन-जीवन को सरस और रोचक बनाने का अद्भुत प्रयास किया। इनकी मृत्यु संवत् 1642 को हुई थी।
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