स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध? स्वास्थ्य रक्षा के उपाय?

स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध:- वैज्ञानिक चरमोत्कर्ष के आधुनिक युग में मनुष्य जीवन को सुविधापूर्ण में बनाने वाले नये-नये साधनों के निर्माण में व्यस्त है। पर कभी उसने सोचा है कि इन सभी साधनों से अधिक उपयोगी और अनिवार्य साधन कौन-सा है? जिसके अभाव में इन सभी साधनों का निर्माण तथा इन साधनों से प्राप्त होने वाले सुख भोग भोगना असम्भव है। यह सर्वाधिक उपयोगी साधन है।

“हमारा – शरीर।” शेष सभी साधनों का उपयोग तभी सम्भव है, जबकि शरीर स्वस्थ्य हो । शरीर की स्वस्थता निर्भर करती है – स्वास्थ्य-रक्षा पर। महाकवि कालिदास के अनुसार, ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’; अर्थात् संसार में कर्त्तव्यपालन के लिए पहला साधन (स्वस्थ ) शरीर ही है।

स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध

स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध
Swasthya Raksha Par Nibandh

स्वास्थ्य-रक्षा आवश्यक

अंग्रेजी में कहावत है Health is wealth (अर्थात् स्वास्थ्य ही धन है) शरीर ही यदि स्वस्थ नहीं तो स्वस्थ मन की कल्पना व्यर्थ है। अस्वस्थ मन अस्वस्थ विचारों का आश्रय स्थल है जो मनुष्य को अविवेकी, अकर्मण्य, क्रोधी और विचार-शून्य कर देता है। तभी तो कहा गया है -‘पहला सुख नीरोगी काया’ अर्थात् सबसे बड़ा सुख स्वस्थ शरीर है। आत्मा की पवित्रता शुद्धत्ता एवं स्वच्छता उसके निवास (शरीर) की स्वस्थता और स्वच्छता पर निर्भर करती है; अतः उसे स्वच्छ और शुद्ध रखना अत्यावश्यक है। स्वास्थ्य रक्षा के प्रमुख साधन हैं-व्यायाम, संतुलित और नियमित भोजन, स्वच्छता, संयमपूर्ण जीवन तथा ब्रह्मचर्य का पालन ।

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नियमित व्यायाम

व्यायाम स्वास्थ्य रक्षा का प्रथम और प्रमुख साधन है। जिस प्रकार किसी मशीन से बहुत समय तक काम न लेने से उसमें जंग लग जाता है और वह उपयोगी नहीं रह जाती, ठीक उसी प्रकार शरीर रूपी यंत्र भी काम न लेने पर अनुपयोगी हो जाता है। इस यंत्र को आजीवन उपयोगी रखने का मुख्य साधन है- व्यायाम।

व्यायाम द्वारा शरीर में रक्त संचार होता है, मांसपेशियों में बल आता है और इन्द्रियाँ शक्ति-सम्पन्न होती हैं। शरीर की शिशिलता, मन और मस्तिष्क की निष्क्रियता दूर होती है, शरीर सुगठित होता है, बुद्धि का विकास होता है और मन पर संयम रहता है।

व्यायाम नित्य और नियमित रूप से करना चाहिए। व्यायाम की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए और थकान अनुभव होते ही छोड़ देना चाहिए। भोजन के पहले या एकदम बाद भी व्यायाम वर्जित है। ब्राह्ममूहूर्त या प्रातःकाल में शुद्ध और खुली हवा में व्यायाम करना अत्यन्त लाभकारी होता है, व्यायाम के पश्चात् स्नान अनिवार्य है।

स्वच्छता

स्वास्थ्य रक्षा का दूसरा नियम है-स्वच्छता। स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है। अतः स्वच्छता की ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए। शुद्ध और स्वच्छ वायु का सेवन आयु वृद्धि की औषध है। शारीरिक स्वच्छता, परिधानों की (वस्त्रों की) स्वच्छता; घर और आस-पास के वातावरण की स्वच्छता आवश्यक है।

स्रान से शारीरिक स्वच्छता आती है, बस्त्रों को धोने से वे स्वच्छ होते है और झाडू-बुहारी से घर-बाहर की स्वच्छता प्राप्त होती है। इसी प्रकार पीने का जल की स्वच्छता भी स्वास्थ्य रक्षा के लिए अनिवार्य है। अस्वच्छ होने की अवस्था में पानी को पहले उबालकर स्वच्छ कर लेना चाहिए और तभी इसका सेवन करना चाहिए।

शुद्ध भोजन

स्वास्थ्य रक्षा का तीसरा नियम है-पौष्टिक, संतुलित एवं स्वास्थ्यकर भोजन। भूख लगने पर तथा नियत समय पर ही भोजन करना चाहिए। भोजन सादा, सुपाच्य तथा पौष्टिक होना चाहिए। शारीरिक प्रकृति और ऋतु के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। घी, दूध, फल, सब्जियों आदि का प्रयोग भोजन में पौष्टिकता लाता है। गरिष्ठ और तले हुए पदार्थों का उपयोग कम करना चाहिए। अधिक मात्रा में या बार-बार भोजन करना भी स्वास्थ्य की हानि करता है। शराब, अफीम, चरस, गाँजा, आदि नशीले द्रव्यों से बचकर रहना चाहिए। ये स्वास्थ्य के शत्रु हैं।

निद्रा

स्वास्थ्य रक्षा का चौथा नियम है-निद्रा। गहरी और शान्त निद्रा से शरीर की थकावट दूर होती है, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है और चेतना जागृत होती है। निद्रा तो स्वास्थ्य की सहचरी है, अतः परिश्रमी, सदाचारी और संतोषी व्यक्ति को स्वयं ही समय पर निद्रा आ जाती है। महाकवि ‘प्रसाद’ निद्रा को अत्यन्त प्यारी वस्तु बताते हुए लिखते हैं ‘घोर दुख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।’ शरीर स्वस्थ हो तो काँटों पर भी नींद आ जाती है, वरना तो फूलों की सेज भी सुख ब्रह्मचर्य नहीं दे पाती।

ब्रह्मचर्य

स्वास्थ्य रक्षा का पाँचवाँ मूल मंत्र है – ब्रह्मचर्य । अर्थात् मन, वचन और – कर्म से समस्त इन्द्रियों का संयम, जो स्वास्थ्य रक्षा का मूल आधार है। अथर्ववेद के अनुसार ब्रह्मचर्य रूपी तपोबल से ही विद्वान् लोगों ने मृत्यु को जीता है। “ब्रह्मचर्येण तपसा देवाः मृत्यु मुपाध्नत।” मन और इन्द्रियों के संयम तथा वीर्यरक्षा से स्वास्थ्य बढ़ता है। अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना उचित है। ब्रह्मचर्य के लिए सन्ध्या-उपासना आदि परमावश्यक साधन हैं।

उपसंहार

“स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है”, एक जग प्रसिद्ध कहावत है। यदि हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा चित्त सदा प्रफुल्लित रहेगा, तन में अपना जीवन सुखी बनायेंगे, अपितु अपने राष्ट्र को शक्तिशाली, उन्नत और समृद्ध बनाने में भी अपना सहयोग दे सकेंगे। अतः अपने स्वास्थ्य की रक्षा का सदैव ध्यान रखना चाहिए। स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध

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