तलाक के नए नियम क्या है? शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकते है?

शादी के बाद जिन जोड़े की आपस में नहीं बनती और वे तलाक लेना चाहते है तो उन्हें तलाक के नए नियम क्या है ( Talak Ke Naye Niyam Kya Hai) 2024 को जानना बहुत ही जरूरी है। कुछ शादी शुदा जोड़े आपसी सहमति से तलाक लेते है और कुछ एकतरफा तलाक भी लेते है इसके लिए क्या नियम है और तलाक के लिए आवेदन प्रक्रिया, तलाक के लिए आवश्यक दस्तावेज क्या लगते है। हिन्दू विवाह में पुरुषों के लिए भारत में तलाक कानून क्या है और कोर्ट मैरिज के बाद तलाक प्रक्रिया क्या है। यहाँ पर आपको कोर्ट मैरिज के बाद तलाक प्रक्रिया की प्रक्रिया के लिए भी नियम बने है के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।

तलाक के नए नियम क्या है

तलाक के नये नियम क्या है

Talak Ke Naye Niyam Kya Hai

अब नहीं करना पड़ेगा तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार सुप्रीम कोर्ट ने बदले नियम। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के कुछ नियमों में बदलाव किया है और यह कहा है कि अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति से एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो उन्हें नहीं करना पड़ेगा 6 महीने का इंतजार।

पहले हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक अगर पति पत्नी आपसी सहमति से एक दूसरे से तलाक लेकर अलग होना चाहते थे तो उन्हें 6 महीने का इंतजार करना पड़ता था क्योंकि कोर्टद्वारा उन्हें 6 महीने का समय दिया जाता था। जिसमें वह अपना फैसला दोबारा सोच समझकर बदल सकते हैं। 6 महीने के अवधि को कूलिंग पीरियड कहा जाता है। हमारे हिंदू धर्म के अनुसार पति- पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का रिश्ता माना गया है। लेकिन कभी-कभी इस रिश्ते में कुछ दरारें भी आ जाती हैं।

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जीवन के किसी ऐसे मोड़ पर कुछ ऐसी परिस्थितियां उभरने लगती हैं। जिसके कारण पति- पत्नी के रिश्ते में लड़ाई झगड़े शुरू हो जाते हैं।और कभी-कभी यह इतने बढ़ जाते हैं कि किसी भी रूप में एक दूसरे के साथ रहना पसंद नहीं करते ।ऐसी परिस्थितियों में पति- पत्नी के बीच के संबंध खराब होने लगते हैं। जिसके कारण वह अलग होने का निर्णय लेते हैं। किसी भी शादीशुदा जोड़े को अलग होने के लिए कानून की सहायता लेनी पड़ती है इस कानूनी प्रक्रिया को तलाक कहा जाता है।

तलाक कैसे होता है

जब कभी कोई शादीशुदा जोड़ो के बीच किसी कारण कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें दोनों कानून की सहायता से अलग होने का निर्णय ले लेते हैं तब उन्हें भारतीय हिंदू लॉ अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक करवाया जाता है। और धारा 13 के अंतर्गत पूरी तलाक की प्रक्रिया पूरी की जाती है। जिसके बाद पति- पत्नी अपने आपसी रिश्ते को सामाजिक और कानूनी तरह से समाप्त कर देते हैं।

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तलाक के प्रकार

देश में तलाक की दो प्रक्रियाएं हैं पहला आपसी सहमति से और दूसरा एकतरफा तलाक यानी किसी भी एक पक्ष के द्वारा न्यायालय में अर्जी लगाकर।

पहलाआपसी सहमति
दूसराएकतरफा तलाक

आपसी सहमति द्वारा तलाक

आपसी सहमति द्वारा तलाक लेने की प्रक्रिया सरल होती है क्योंकि इसके अंतर्गत दोनों पक्ष आपस में सहमति के बाद ही तलाक लेने का निर्णय करते हैं साथ ही इस प्रक्रिया में किसी भी तरह का कोई आरोप या फिर किसी प्रकार का वाद विवाद नहीं होता।

एकतरफा तलाक

इस प्रकार के तलाक की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है क्योंकि इसमें सिर्फ एक पक्ष द्वारा तलाक की मांग की अर्जी लगाई जाती है और दूसरा पक्ष तलाक नहीं लेना चाहता। ऐसी परिस्थिति में तलाक की मांग करने वाले पक्ष को कुछ ऐसे सबूत और तथ्य सामने रखने पड़ते हैं।

जो यह प्रमाणित कर सके की इनकी परिस्थिति में तलाक लेना बेहतर होगा। अगर ऐसी परिस्थिति में तलाक हो भी जाता है तो गुजारा भत्ता और बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी माता और पिता में से किसी एक को दी जाती है जिसका निर्णय कोर्ट द्वारा लिया जाता है।

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गुजारा भत्ता क्या होता है

भारत देश में गुजारा भत्ता के लिए किसी प्रकार की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है इसका निर्णय दोनों पक्षों द्वारा आपसी सहमति (तलाक के नए नियम क्या है) से लिया जा सकता है। लेकिन ऐसी परिस्थिति में सबसे पहले कोर्ट पति की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए गुजारे भत्ते का निर्णय लेता है। पति की आर्थिक स्थिति जितनी अच्छी या बुरी होगी उस हिसाब से उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा।

बच्चों की देखभाल

तलाक की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बच्चों की जिम्मेदारी का आता है। इसमें यह निर्णय कर पाना बहुत मुश्किल होता है कि आखिर बच्चे की देखरेख की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए। अगर माता और पिता दोनों ही बच्चे की कस्टडी पाना चाहते हो तो कोर्ट द्वारा ज्वाइंट कस्टडी या शेर चाइल्ड कस्टडी सुनिश्चित करती है। यदि बच्चे की उम्र 7 वर्ष से कम होती है और दोनों में से कोई एक बच्चे की जिम्मेदारी लेना चाहता हो ऐसी परिस्थिति में बच्चे की कस्टडी मां को सौंपी जाती है।

यदि बच्चे की उम्र 7 साल से अधिक होती है तो उसकी कस्टडी पिता को सौंप दी जाती है। लेकिन अधिकांश मामलों में इस फैसले पर दोनों पक्ष सहमत नहीं होते। अगर बच्चे की जिम्मेदारी मां को सौंप दी जाए और ऐसी परिस्थिति में यदि पिता यह साबित कर दें कि मां बच्चे की पूर्ण रूप से और अच्छी तरह से देखभाल करने में असमर्थ है तो ऐसी परिस्थिति में बच्चे की 7 साल से कम उम्र में थी उसकी कस्टडी कोर्ट द्वारा पिता को सौंप दी जाती है।

तलाक के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • मैरिज सर्टिफिकेट
  • शादी का कोई प्रमाण या फिर शादी की फोटो
  • आईडी प्रूफ
  • अन्य दस्तावेज

आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन प्रक्रिया

पति पत्नी के लिए आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया सरल होती है। आपसी सहमति से तलाक लेने के दौरान नियम अनुसार दोनों को 1 साल तक अलग-अलग रहना पड़ता है। 1 साल के बाद ही केस दर्ज किया जाता है साथ ही कई अन्य प्रक्रियाओं का भी पालन किया जाता है:-

  • इस प्रक्रिया के दौरान न्यायालय में एक याचिका दायर की जाती है जिसमें दोनों पक्षों को स्पष्ट रूप से यह लिखना पड़ता है कि आपसी सहमति से दोनों एक दूसरे से अलग होकर तलाक लेना चाहते हैं।
  • न्यायालय दोनों पक्षों का बयान दर्ज करता है साथ ही कुछ दस्तावेजों पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर भी लिए जाते हैं।
  • न्यायालय में तलाक के लिए याचिका दायर करने के बाद न्यायालय दोनों को लगभग 6 महीने का समय देती है जिसके दौरान दोनों दोबारा साथ में रहने का निर्णय ले सकते हैं।
  • 6 महीने का समय समाप्त होने पर अंतिम सुनवाई होती है जिसमें अगर दोनों पक्ष तालाब चाहते हैं तो कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय के दौरान दोनों का तलाक सुनिश्चित करता है।
  • जिसके बाद आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया 6 महीने बाद समाप्त हो जाती है।

एक तरफा तलाक

एकतरफा तलाक के दौरान 6 महीने की अवधि नहीं दी जाती इस तलाक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा इसकी कोई सीमा नहीं। एकतरफा तलाक की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक होता है।

जैसे:-मानसिक रोगी, धर्म परिवर्तन ,गंभीर यौन रोग ,मानसिक क्रूरता, शारीरिक क्रूरता, किसी बाहरी व्यक्ति से यौन संबंध बनाना, दो या दो से अधिक साल से अलग रहने की स्थिति में, धर्म संस्कार को लेकर दोनों में मतभेद इत्यादि ऐसी परिस्थिति में दोनों के बीच तलाक हो सकता है।

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