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तुगलक वंश – के संस्थापक कौन थे? मुहम्मद बिन तुगलक का इतिहास?

तुगलक वंश 1320 ई० – 1412 ई० :- खिलजी वंश के बाद दिल्ली में तुगलक वंश का शासन स्थापित हुआ। तुगलक वंश के शासकों ने दिल्ली सल्तनत का विस्तार सुदूर दक्षिण तक कर दिया। इस वंश के शासकों ने राज्य के विस्तार के साथ-साथ प्रजा हित के कार्यों जैसे सड़क पुल नहर, चिकित्सालय आदि के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया।

तुगलक वंश (Tuglak Vansh) 1320 ई० – 1412 ई०

तुगलक वंश

गयासुद्दीन तुगलक (1320 ई0-1325 ई०)

तुगलक वंश का प्रथम शासक गयासुद्दीन तुगलक था। इसने अलाउद्दीन खिलजी को कठोर नीति को त्याग कर उदारता की नीति अपनाई। इन्होंने प्रजा के असंतोष को कम करने के लिए कर को कम कर दिया. साथ ही साथ कृषि को प्रोत्साहन दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325 ई०-1351 ई०)

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जोताखी मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से 1325 ई० में सुल्तान बना। इन्हें दिल्ली सल्तनत का सबसे विद्वान सुल्तान माना जाता है। इन्हीं के शासन काल में मोरक्को के यात्री इब्नबतूता भारत आया इब्नबतूता ने अपनी पुस्तक रहला में भारत यात्रा का वर्णन किया है।

मुहम्मद तुगलक की योजनाएँ

सुल्तान ने साम्राज्य की प्रगति और सुव्यवस्था के लिए कई नवीन योजनाएँ चलाई जिससे आर्थिक सुधार हो सके। सुल्तान के द्वारा चलाई गई ये योजनाएँ प्रायः असफल रहीं क्योंकि उसने उनको सही तरीके से लागू नहीं किया। ये योजनाएँ निम्नवत थीं –

दोआब में कर वृद्धि

राज्य की आय बढ़ाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने गंगा एवं यमुना के बीच समृद्ध एवं उर्वरक भूमि “दोआब” में कर बढ़ाने का एक प्रयोग किया। उसने यहाँ भूमिकर में वृद्धि की तथा कुछ अन्य करों की भी वसूली शुरू कर दी।

जिस समय यह कर लगाया गया, उस समय यहाँ भयानक अकाल पड़ा था, किन्तु निरंकुश शासक के भय से अधिकारियों ने सुल्तान को इसकी जानकारी नहीं दी एवं बढ़े कर की वसूली जारी रखी। अत: खेती बर्बाद हो गई तथा किसान अपने घर छोड़कर जंगलों में छिप गए।

इन कारणों से लोगों ने कर देने से इनकार कर दिया और विद्रोह कर दिया। बाद में सुल्तान ने राहत के लिए बीज व ऋण की व्यवस्थ की, किन्तु तब तक विलम्ब हो चुका था। अतः सुल्तान की कर बढ़ाने की योजना असफल हो गई।

राजधानी परिवर्तन

राजधानी परिवर्तन वस्तुतः एक द्वितीय राजधानी की योजना थी। मुहम्मद तुगलक के शासन काल तक दिल्ली सल्तनत का राज्य एक बड़े साम्राज्य का रूप धारण कर चुका था। इसमें मालाबार को छोड़कर दक्कन के सभी राज्य जुड़ चुके थे। अतः दक्षिण के इन राज्यों को कुशल प्रशासक देने के लिए द्वितीय राजधानी की योजना बनाई गई।

दिल्ली से दौलताबाद

सुल्तान ने दिल्ली के स्थान पर देवगिरि को द्वितीय राजधानी बनाने का विचार बनाया। वह दक्षिण भारत को जोड़कर एक-सी-प्रशासनिक व्यवस्था करना चाहता था।

देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा गया दिल्ली से दौलताबाद जाते समय लोगों को रास्ते में कष्ट न हो, इसलिए राज्य द्वारा सुविधाएँ भी दी गई थीं रास्ते का कष्ट तथा दौलताबाद की जलवायु दिल्लीवासियों को रास नहीं आई।

वे वहाँ से दिल्ली वापस आन चाहते थे। दक्षिण का रहन सहन, खान-पान, वेशभूषा तथा मौसम आदि दिल्ली से भिन्न था। करीब दो बाय सुल्तान ने दौलताबाद छोड़ने का निर्णय लिया। उसे महसूस हुआ कि जैसे दिल्ली से दक्षिण पर नियंत्रण कठिन है, उसी प्रकार दक्षिण से दिल्ली पर नियंत्रण रखना कठिन है। इस प्रकार सुल्तान की द्वितीय राजधानी की योजना भी असफल हो गई।

इसी प्रकार अंग्रेजों ने भी दिल्ली के साथ शिमला को अपनी द्वितीय राजधानी के रूप में विकसित किया था। होली के बाद दिल्ली की भीषण गर्मी से बचने के लिए वह शिमला चले जाते थे और वहीं से प्रशासन की देख-रेख करते थे।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन

जिस समय सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन की योजना बनाई उस समय विश्व में चाँदी उत्पादन में काफी कमी आ गई थी। उस समय चाँदी के सिक्कों का प्रचलन था। सुल्तान ने चांदी के सिक्कों के स्थान पर मिश्रित धातु के सिक्के चलाने का आदेश दिया। इन सिक्कों का मूल्य चोंदी के सिक्कों के बराबर ही माना गया।

सांकेतिक सिक्कों के प्रचलित होते ही लोगों ने जाली सिक्के बनाना शुरू कर दिया। थोड़े ही दिनों में इन सिक्कों की भरमार हो गई। विदेशी व्यापारियों ने सिक्कों को लेना बन्द कर दिया। अतः भारत की चाँदी यहाँ से बड़ी मात्रा में बाहर जाने लगी। सुल्तान ने सांकेतिक सिक्के बन्द कर दिए। इन सिक्कों के बदले राजकोष से चाँदी के सिक्के दिए गए।

सांकेतिक मुद्रा (तांबे एवं पीतल के मिश्रित सिक्कों) पर यदि कोई राजचिह्न अंकित होता और सरकारी टकसाल पर उचित नियंत्रण होता तो शायद यह स्थिति न आती इस योजना से राजकोष पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

सुल्तान अपने शासन के अन्तिम काल में राज्य की आन्तरिक अशान्ति से परेशान रहा। उत्तर एवं दक्षिण दोनों भागों में विद्रोह शुरू हो गए। केन्द्रीय शासन प्रणाली होने के कारण सुल्तान स्वयं दोनों स्थानों पर पूर्ण नियन्त्रण न रख सका।

दक्षिण में दो नए राज्यों विजयनगर राज्य तथा बहमनी राज्य का उदय हुआ। पूरब में बंगाल स्वतंत्र हो गया। सुल्तान अपने शासन के अन्तिम सोलह वर्षों तक विद्रोहों को शान्त करने एक तरफ से दूसरी तरफ भागता रहा। सिन्ध में विद्रोह के समय मुहम्मद बिन तुगलक बीमार पड़ा और 1351 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

फिरोजशाह तुगलक (1351 ई०. 1388 ई०)

1351 ई० में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना। मोहम्मद बिन तुगलक के शासन के अन्तिम काल में साम्राज्य के विभिन्न भागों में बार-बार विद्रोह हो रहे थे।

अतः गद्दी पर बैठते ही सुल्तान के लिए पहली समस्या यह थी कि विद्रोहों को शान्त कर साम्राज्य के विघटन को कैसे रोका जाए। इसके लिए उसने अमीरों सेना तथा उलेमा वर्ग को सन्तुष्ट करने का प्रयास किया और इस्लाम के नियमों के अनुसार राज्य प्रशासन चलाया।

सुल्तान ने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कोई सैनिक अभियान नहीं किया। जो भी आक्रमण किए गए वह साम्राज्य की रक्षा के लिए फिरोजशाह तुगलक का मकबरा, दिल्ली किए गए। उसने उन्हीं प्रदेशों को अपने पास रखने की कोशिश की जिनका शासन केन्द्र से आसानी से हो सकता था। उसका शासनकाल जनकल्याणकारी कार्यों के लिए प्रसिद्ध था।

लोकहित के कार्य

कृषि की सिंचाई हेतु उसने कई नहरों का निर्माण कराया जैसे- यमुना नहर, सतलज नहर आदि जिनसे आज भी सिंचाई होती है। इससे कृषि की उन्नति हुई। बंजर भूमि से प्राप्त आमदनी को धार्मिक एवं शैक्षिक कार्यों में खर्च किया।

सुल्तान ने जौनपुर, फिरोजपुर तथा फिरोजाबाद आदि नए नगरों की स्थापना की। उसने प्रजा के लिए सरायों, जानाशयों, अस्पतालों, बगीचों तथा पुल का निर्माण एवं मरम्मत करवाईसाता विभाग की स्थापना की, जिससे विधवाओं, अनाथों एवं लड़कियों के विवाह के लिए आर्थिक सहायता दी जाती थी।

सरकारी खर्च पर योग्य वैद्यों द्वारा औषधियाँ एवं भोजन दिए जाने की व्यवस्था की थी। बेरोजगार लोगों को नौकरी देने हेतु उसने सर्वप्रथम एक रोजगार कार्यालय स्थापित किया।

फिरोज तुगलक ने अशोक के दो स्तम्भों को दिल्ली मँगवाया और उसमें से एक को अपने राजमहल के परिसर में लगवाया। फिरोजशाह कोटला में स्थित अशोक स्तम्भ की ब्राह्मी लिपि को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था।

स्वच्छता के सात आयाम – मानव मल का सुरक्षित निपटान, व्यक्तिगत स्वच्छता, पीने के पानी का रख-रखाव, घर एवं भोजन की स्वच्छता, कूड़ा-करकट का सुरक्षित निपटान, बेकार पानी की निकासी, ग्रामीण स्वच्छता।

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