टूटा हुआ संदूक: किसी गांव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। उसके पास एक गाय और एक टूटे-फूटे संदूक के सिवाय कुछ नहीं था। वह गाय का दूध दुहती तथा उसे बेचकर अपना गुजारा करती थी। वह बिल्कुल अकेली थी। उसे गरीब और बेसहारा देखकर गांव के लोग उसकी मदद के लिए आते पर बूढ़ी औरत उन्हें यह कह कर लौटा देती कि मेरे पास सब कुछ है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। इस पर गांव के लोग उसका मजाक उड़ाते- “घर में बस एक टूटा-फूटा संदूक है। फिर भी कहती है, मेरे पास सब कुछ है। यह बुढ़िया जरा सनकी है।”
टूटा हुआ संदूक

उसी गांव में एक अनाथ लड़का शम्भू भी रहता था। शम्भू बूढ़ी औरत की गाय के लिए घास लाता तथा उसके अन्य काम भी कर देता था। इसके बदले में बूढ़ी औरत शम्भू को थोड़ा दूध दे देती थी। शम्भू का दुनिया में कोई नहीं था। वह उस ख़ुदी औरत को ही अपना सब कुछ समझता था। बूढ़ी औरत भी शम्भू को अपने बेटे के समान चाहती थी।
एक दिन शम्भू गाय को नहला रहा था कि बूढ़ी औरत ने उसे गाय के मुंह में देखने को कहा। शम्भू ने गाय के मुंह में देखा। उसे गाय के पेट में सैकड़ों गायें दिखाई दीं। वह बड़ा हैरान हुआ पर कुछ न बोला।
काफी दिन बीत गए। बूढ़ी औरत बहुत बीमार हो गई। उसने शम्भू को अपने पास बुलाया और कहा- “बेटा, मेरी मृत्यु अब निकट आ रही है। मैं अपने जीवन के शेष दिन किसी शिवालय में गुजारना चाहती हूं इसीलिए मैं गाय को लेकर तीर्थयात्रा पर जा रही हूं। मेरा संदूक तुम अपने पास रख लो, शायद तुम्हारे कुछ काम आए। ‘
बूढ़ी अम्मां के तीर्थयात्रा पर जाने की बात सुनकर शम्भू उदास हो गया पर अम्मां के कहे अनुसार वह संदूक लेकर चला गया। रास्ते में उसने सोचा कि यदि अम्मां मुझे गाय देकर जाती तो शायद मेरे काम भी आती, यह टूटा-फूटा संदूक मेरे किस काम का। यही सब सोचते हुए वह चलता जा रहा था कि अचानक ठोकर खाकर गिर पड़ा और संदूक भी गिर गया। गिरने से संदूक का ढक्कन खुल गया।
संदूक में से एक सुंदर खरगोश निकल कर भागा। खरगोश के पीछे-पीछे भागता शम्भू काफी दूर निकल गया। रास्ते में कई तालाब, नाले तथा अन्य बाधाएं आईं। इनके बावजूद शम्भू ने खरगोश का पीछा नहीं छोड़ा।
पीछा करते-करते वह अपने गांव से मीलों दूर पहाड़ी स्थान पर पहुंच गया। पर खरगोश तो रूकने का नाम ही नहीं लेता था !
काफी दूर निकल जाने के बाद शम्भू ने देखा कि खरगोश एक विशालकाय गाय के पास जाकर रूक गया। शम्भू भी उस दिशा में बढ़ा, जिधर गाय खड़ी थी। करीब जाकर उसने देखा कि जिसे वह गाय समझ रहा था, वह गाय नहीं, बल्कि गाय की आकृति की गुफा थी।
गुफा के द्वार पर कांटेदार झाड़ियां उगी हुई थीं, जिससे अंदर जाने का रास्ता बंद था। शम्भू ने बड़ी मेहनत से कुछ झाड़ियां साफ की तथा अंदर जाने का रास्ता बनाया। कुछ अंदर जाने पर उसे गुफा में से तरह-तरह की भयंकर आवाजें सुनाई दीं। पर वह डरा नहीं, आगे बढ़ता ही गया।
अंदर पहुंचकर उसने जो देखा उससे उसकी आंखें आश्चर्य से फैली रह गई। गुफा के अंदर के हिस्से में, जो गाय के पेट की भांति था, सैकड़ों स्वस्थ गायें खड़ी घास चर रही थीं।
शम्भू को उसी क्षण बूढ़ी औरत की गाय के पेट में सैकड़ों गायें नजर आने वाली बात याद आई। उसने हैरानी से चारों तरफ देखा । गुफा के एक कोने में उसे जानी-पहचानी आकृति दिखाई दी। वह समीप गया तो देखा कि यह और कोई नहीं, बल्कि उसकी बूढ़ी अम्मां ही थी।
आज बूढ़ी अम्मां शम्भू से बोली–“बेटा, आज तुम्हारा साहस, परिश्रम और धैर्य देखकर मुझे यकीन हो गया कि तुम मेरी गायों की देखभाल भली-भांति कर सकोगे। आज से यह सभी गायें तुम्हारी हैं।” यह कहकर बूढ़ी औरत अदृश्य हो गई। उस दिन से शम्भू गायों की देखभाल करने लगा।
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