उड़ता राक्षस – राक्षस ने राजकुमारी को एक कमरे में किया कैद की कहानी

उड़ता राक्षस: एक थी राजकुमारी रूपा। उसको घूमने-फिरने का बहुत शौक था। परंतु उसके पिता अमरसिंह को राजकुमारी का महल से बाहर निकलना पसंद नहीं था। वह हमेशा राजकुमारी पर कड़ी नजर रखते ताकि वह बाहर जाकर अपनी सहेलियां न बनाए। इसीलिए रूपा की कोई सहेली नहीं थी। वह महल में अकेली बैठी-बैठी उकता जाती महल में खाने-पीने की सब सामग्री थी। मनोरंजन की हर सुविधा थी। फिर भी रूपा का मन वहां नहीं लगता था। वह पर्वतों तथा हरे-भरे मैदानों की सैर करना चाहती थी।

उड़ता राक्षस

उड़ता राक्षस

एक दिन वह महल में उदास बैठी कुछ सोच रही थी, तभी उसके दिमाग में एक योजना आई। महल की एक दासी चंद्रा दिखने में हू-ब-हू राजकुमारी जैसी थी। अंतर था तो शाही लिबास का। एक दिन राजकुमारी ने चंद्रा को बुलाया। उसे अपने कपड़े पहनने को कहा। चंद्रा राजकुमारी के कपड़े पहनकर शीशे के सामने खड़ी हुई। अपना रूप देखकर एक क्षण तो वह उगी-सी रह गई। उन कपड़ों में वह भी राजकुमारी लग रही थी।

इसके बाद राजकुमारी ने दासी चंद्रा के कपड़े पहन लिए। फिर उसने चंद्रा से कहा–“मैं कुछ दिनों के लिए इसी वेश में घूमने-फिरने जा रही हूं। जब तक वापस न आऊं, मेरी जगह तुम ही राजकुमारी बनी रहना। देखो, पिताजी को मेरे बाहर जाने का पता नहीं चलना चाहिए। यदि वह चंद्रा के बारे में पूछें, तो कहना कि वह अपने ननिहाल गई हुई है।” राजकुमारी की बात सुनकर चंद्रा चिंता में पड़ गई लेकिन मना नहीं कर पाई।

राजकुमारी ने कहा–“तुम मुझे वचन दो कि इस भेद को नहीं खोलोगी। “आखिर चंद्रा ने राजकुमारी को वचन दे दिया।

चंद्रा बनी राजकुमारी महल से चल पड़ी। उसे किसी ने नहीं रोका। बाहर निकलकर राजकुमारी रूपा बहुत खुश हुई। वह चंचल हिरणी को तरह हरे भरे मैदानों में घूमने लगी। घूमते-घूमते राजकुमारी अपने राज्य की सीमा से बाहर निकल गई। वह एक घने जंगल में पहुंच गई। रात होने लगी थी। वह आराम करना चाहती, लेकिन आराम कहां करे? कुछ दूर और चलने के बाद उसे एक हरा-भरा बाग नजर आया। बाग बहुत ही सुंदर था। पेड़ों पर मोठे-मीठे फल लगे हुए थे। “मैं यही आराम कर लूंगी।” यह सोचकर राजकुमारी बाग के अंदर चली गई।

राजकुमारी को भूख लग रही थी। उसने एक पेड़ से फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। तभी एक डरावनी- सौ आवाज सुनाई दी” रुक जाओ।” राजकुमारी डर गई। उसने देखा, आकाश में एक भयानक राक्षस उड़ता हुआ आ रहा है। उसे देखकर राजकुमारी डर के मारे बेहोश हो गई। राक्षस बेहोश राजकुमारी को उठाकर अपने किले में ले गया। वहां उसको एक कमरे में कैद कर दिया।

इधर जब राजकुमारी कई दिनों तक महल में न लौटी, तो राजकुमारी बनी दासी परेशान हो गई। उसने सोचा- “कहीं राजकुमारी किसी मुसीबत में न फंस गई हो!” दासी को रात-दिन यही चिंता सताने लगी। फिर भी वह असली बात किसी को नहीं बता सकती थी। उसने राजकुमारी को वचन जो दिया हुआ था।

इसी चिंता में दासी चंद्रा बीमार पड़ गई। धीरे-धीरे उसकी बीमारी बढ़ती गई। आखिर एक दिन वह चल बसी। सारी नगरी शोक में डूब गई। राजा पर तो मानो बिजली गिरी हो क्योंकि राजकुमारी रूपा राजा की इकलौती संतान थी। उसकी मां पहले ही मर चुकी थी। बेटी के दुख में राजा पागल सा हो गया।

उधर राजकुमारी राक्षस के किले से भाग निकलने का उपाय सोचती, मगर सब बेकार। उसी राक्षस के किले में एक राजकुमार भी कैद था। एक दिन जब राक्षस गहरी नींद में सो रहा था. राजकुमारी रूपा ने राजकुमार की मदद से राक्षस को बेहोश कर दिया। फिर एक मोटी रस्सी से कसकर बांध दिया। इसके बाद दोनों तेज भागने वाले घोड़े पर सवार होकर वहां से भाग निकले।

राजकुमारी को राजधानी तक पहुंचाकर राजकुमार अपने राज्य में लौट गया। उस समय रात हो गई थी, इसीलिए राजकुमारी ने महल में जाने की बजाए बाहर रहना ही उचित समझा। वह रात को सोने के लिए एकांत जगह की खोज में निकल पड़ी।

राजकुमारी एक घर के पास से गुजरी तो उसे कुछ आवाजें सुनाई दीं। एक आदमी दूसरे से कह रहा था–“बेचारा राजा तो बहुत ही दुखी है। इकलौती बेटी रूपा की मृत्यु ने उसे पागल बना दिया है।

राजकुमारी ने यह बात सुनी तो बहुत दुखी हुई। उसको यह समझते देर न लगी कि चंद्रा की मृत्यु हो गई है। राजकुमारी को रात भर नींद नहीं आई। वह सूरज उगने का इंतजार करने लगी।

सुबह होते ही राजकुमारी महल में गई। दरबार बंद था। राजा अमरसिंह निदाल-सा गद्दी पर बैठा था। अपने पिता की यह हालत देख राजकुमारी की आंखों में आंसू आ गए। राजा ने उसे देखा, तो बोला “अरे चंद्रा तू कहाँ चली गई थी? राजकुमारी हम सबको छोड़कर चली गई। तू होती, तो शायद उसे बचा लेती।’

राजकुमारी ने कहा- ‘पिताजी, मैं चंद्रा नहीं आपकी बेटी हूं। चंद्रा शायद मेरी चिंता में ही चल बसी।” यह कहकर राजकुमारी ने पूरी घटना बता दी। राजा अमरसिंह अपनी पुत्री को गले लगाना चाहता था, तभी मंत्री बोला- “महाराज, हो सकता है यह लड़को चंद्रा हो हो। राजकुमारी की हमशक्ल होने का फायदा उठाना चाहती हो। हमें इस पर फौरन विश्वास नहीं करना चाहिए।”

फिर मंत्री ने रूपा की तरफ मुड़कर कहा- “तुम्हारे पास क्या सबूत है कि तुम राजकुमारी रूपा ही हो?”

मंत्री की बात सुनकर राजकुमारी भौचक्की रह गई। उस समय वह दासी के वेश में थी। तभी राजकुमारी को अपनी हीरे की अंगूठी का ध्यान आया। उस पर उसका नाम खुदा था। वह अंगूठी उसके जन्मदिन पर राजा ने भेंट दी थी। उसने वही अंगूठी मंत्री को दिखाई। अंगूठी देखकर मंत्री को विश्वास हो गया, यही असली राजकुमारी है।

बिछुड़ी बेटी को पाकर राजा की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसने रूपा को गले लगा लिया। राजकुमारी के वापस आने की खबर सुनकर सारे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई।

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